उमा भारती के बाद भारतीय जनता पार्टी आखिरकार अपनी उन कोशिशों में सफल हो गई है जिनमें वह काफी समय से लगी हुई थी। भैरोसिंह शेखावत बीच में लालकृष्ण आडवाणी से काफी नाराज थे और बीच में तो इस मुद्रा में आ गए थे कि प्रधानमंत्री पद के लिए वे अपनी दावेदारी पेश करेंगे। आडवाणी जानते हैं कि चुनाव के दौरान और चुनाव के बाद भी शेखावत की लोकप्रियता उनके काम आएगी और शुरूआती तनातनी के बाद उन्होंने शेखावत को मनाने की हर संभव कोशिश की थी। शेखावत उस समय इस बात पर अड़े हुए थे कि पार्टी या तो उन्हें टिकट दे या उन्हें जयपुर से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे। शेखावत ने आडवाणी का समर्थन करने के लिए बहुत सारी शर्ते रखी है। जैसे वे वसुंधरा राजे के पति अपना वैराग्य और कोप जारी रखेंगे। दरअसल भाजपा से उनकी नाराजगी वसुंधरा राजे के तौर तरीकों को लेकर हुई थी। शेखावत ने कहा कि वे भाजपा के प्राथमिक सदस्य उस दिन से नहीं हैं जिस दिन से उन्हें उपराष्ट्रपति निर्वाचित किया गया था। इसलिए पार्टी का कोई नियम और अनुशासन उन पर लागू नहीं होता। उस समय तो साफ नजर आ रहा था कि आडवाणी के नेतृत्व को शेखावत चुनौती दे रहे हैं और यह चुनौती आसान नहीं हैं। मगर अब शेखावत भी निर्णायक नेता और मजबूत सरकार का नारा बोलते नजर आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि मैं भाजपा का सदस्य भले ही नहीं हूं लेकिन पूरा जीवन मैंने पार्टी को दिया है और भाजपा के नेतृत्व में आडवाणी की सरकार बने इससे ज्यादा देश के हित में और कुछ नहीं हो सकता। शेखावत ने यहां तक कहा कि आडवाणी ने लंबे समय तक संघ और जनसंघ का काम राजस्थान में किया है और वे दिल से राजस्थानी है। मैं एक राजस्थानी के लिए वोट मांगने में संकोच नहीं करूंगा। इसके अलावा वसुंधरा के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि वसुंधरा ने बहुत गलतियां की हैं और प्रदेश में भाजपा सरकार जाने का एक कारण वे भी हैं।
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