Tuesday, May 12, 2009

मनमोहन सिंह का प्रधानमंत्री बनना खतरे में

भले ही सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह का नाम भावी प्रधानमंत्री के तौर पर घोषित किया हो और भले ही राहुल गांधी हर भाषण में कहते हो कि 16 तारीख के बाद मनमोहन सिंह शपथ लेंगे मगर हर जानकार कांग्रेसी जानता है कि मनमोहन ंसिह का भविष्य उतना सुरक्षित नहीं हैं। मनमोहन सिंह एक ही हालत में प्रधानमंत्री पद की शपथ दोबारा लेने की सोच सकते हैं और वो तब जब कांग्रेस 200 से ज्यादा सीटे ले आए। अगर मनमोहन सिंह नहीं बने तो दूसरा नाम प्रणब मुखर्जी का सामने आता है लेकिन प्रणब मुखर्जी भी जानते हैं कि चाहे जितने सरिए लगा लो, पंद्रहवी लोकसभा डेढ़ साल से ज्यादा चलने वाली नहीं हैं इसलिए वे इस आफत वाली सरकार का नेतृत्व करने के लिए शायद ही तैयार हो। वैसे अपनी पीढ़ी के वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं में अकेले प्रणब मुखर्जी हैं जिनकी बाईपास सर्जरी नहीं हुई है और जो वाम दलों को साथ ला सकते हैं। चुनाव बाद किसी भी स्थिति में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नाम पर समझौता न करने का अपना रूख स्पष्ट करने के बावजूद कांग्रेस नेतृत्व मान रहा है कि पार्टी यदि 150 का आंकड़ा पार न कर सकी तो इस मुद्दे पर समझौता भी करना पड़ सकता है। पार्टी के रणनीतिकार अब कह रहे हैं कि कांग्रेस की जितनी ज्यादा सीटें आएंगी मनमोहन सिंह का दावा भी उतना ही मजबूत होगा।चुनाव प्रक्रिया समाप्त होने का समय नजदीक आते ही कांग्रेस के रणनीतिकारों ने सरकार बनाने के संभावित विकल्पों पर चर्चा शुरू कर दी है। पार्टी का अपना आकलन कम से कम 160 सीट का है। रणनीतिकारों का तर्क है कि इसके बाद संख्या जुटाने में ज्यादा मुश्किल नहीं आएगी। जिन संभावित परिस्थितियों को ध्यान में रखा गया है उनमें वाम मोर्चे से समर्थन लेना भी शामिल है। यह तभी होगा जब पश्चिम बंगाल में ममता व कांग्रेस 15 से नीचे रहें और तमिलनाडु में डीएमके-कांग्रेस को जयललिता के बराबर सीटें मिलें। कांग्रेस के एक रणनीतिकार ने स्वीकार किया कि डीएमके-कांग्रेस गठबंधन का यदि सफाया होता है तो वह स्थिति ज्यादा मुफीद बैठती है। तब अन्नाद्रमुक से समर्थन लेना आसान होगा। कांग्रेस के रणनीतिकार मान रहे हैं कि 150 से कम सीट आने पर बिना वाम मोर्चा के सरकार बनाना संभव नहीं होगा। पार्टी टीडीपी, बीजेडी या जेडी यू के समर्थन को लेकर बहुत आश्वस्त नहीं है। रणनीतिकारों का कहना था कि फिलहाल केवल अन्नाद्रमुक ही ऐसा दल है जिसे चुनाव बाद के संभावित सहयोगियों में कांग्रेस गिन रही है।लेफ्ट के नरम पड़ते रूख से कांग्रेस उत्साहित है। पार्टी का कहना है कि लेफ्ट में पश्चिम बंगाल से ताल्लुक रखने वाले नेता यूपीए के साथ दोस्ती के हक में है। कांग्रेस प्रवक्ता अश्वनी कुमार कहते हैं कि पार्टी चुनाव नतीजों के बाद की अपनी रणनीति तैयार कर चुकी है। 16 मई के बाद तस्वीर पूरी तरह साफ हो जाएगी। यूपीए केंद्र में सरकार बनाएगा।

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