सोलह मई की तिथि के नजदीक आते ही बदलते राजनैतिक घटनाक्रमों ने कांग्रेस के मैनेजरों की चिंता बढा दी है। चिंता की सबसे बडी वजह संख्या गणित को जुटाना है। पिछले हफ्तेभर में जिस तरह के हालात बनते जा रहे हैं उससे कांग्रेस के मैनेजरों की राह कठिन हो सकती है। राजग का कुनबे में बढोत्तरी कर शक्ति प्रदर्शन करना, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का द्रमुक नेता करूणानिधि के साथ रैली कर गठबंधन बनाए रखने की बात करना कांग्रेस के मैनेजरों के लिए तो ठीक-ठाक नहीं कहा जा सकता है।इन दोनों घटनाओं ने फिलहाल नए सहयोगियों के रास्ते पूरी तरह से बंद कर दिए हैं। कांग्रेस ने अन्नाद्रमुक और जद यू को लेकर उम्मीदें बांधी हुई थी। जद यू ने तो मोदी का साथ देकर रास्ता पूरी तरह से बंद कर दिया। अब रहा सवाल अन्नाद्रमुक का। जयललिता फिलहाल अभी तीसरे मोर्चे का हिस्सा बनी हुई हैं। जो हालात दिखाई दे रहे हैं उनमें तीसरा मोर्चा ज्यादा लंबा खिंच सकेगा दिखाई नहीं दे रहा है। टीआरएस ने पहले ही किनारा कर लिया। टीडीपी ने फिलहाल अभी चुप्पी साध ली है। चुप्पी साधने की वजह भी है। तीसरे मोर्चे के लंबरदार वामदल स्वयं ही भ्रमित हैं। नेताओं के बयानों में ही एका नहीं है। वामदल समझ रहे हैं कि उनके बिना कांग्रेस सरकार नहीं बना सकती है। इसलिए अपने हिसाब से वे बयान देने में लगे हैं। कांग्रेस भी समझ रही है कि वामदलों के बिना काम नहीं बनेगा। वजह साफ है कि पुराने साथी सपा, राजद और लोजपा की सीटें इस बार घटने की संभावना जताई जा रही है। कांग्रेस के मैनेजरों की चिंता यही है कि कैसे संख्या मैनेज की जाए। वामदल तीसरे मोर्चा की सरकार बनाने की बात कर तो रहे हैं, लेकिन यह तभी संभव है जब कांग्रेस समर्थन दे। जो दिखाई नहीं देता। ले देकर वामदलों को कांग्रेस की तरफ ही आना पडेगा। ऎसे में टीडीपी और अन्नाद्रमुक राजग का हाथ थाम सकते हैं। अन्नाद्रमुक का रास्ता कांग्रेस अध्यक्ष ने बंद कर दिया। टीडीपी कांग्रेस के साथ कभी आ नहीं सकती है। टीडीपी भले ही आंध्रप्रदेश में 1999 वाला करिश्मा न दोहरा पाए, लेकिन अन्नाद्रमुक इस बार उलटफेर करने की स्थिति में बताई जा रही है।
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