एक ओर जहां पूरा प्रदेश भीषण जल संकट से जूझ रहा है वहीं दूसरी ओर प्रदेश सरकार इस समस्या का हल ढूंढने को लेकर गम्भीर नहीं दिख रही। मध्यप्रदेश व उत्तर प्रदेश से जुडी बेहद महत्वाकांक्षी नदी जोड परियोजना "केन-बेतवा लिंक" पर राज्य सरकार की घोर उदासीनता इसकी बानगी है। सात साल से ज्यादा पुरानी इस परियोजना को जमीं पर उतारने का काम लम्बी प्रक्रिया के जंजाल में उलझ कर अटका हुआ है। सरकार की सुस्ती का आलम यह है कि परियोजना की विस्तृत रिपोर्ट तैयार हो जाने के चार माह बाद भी इस पर प्रदेश सरकार अपना अभिमत नहीं दे पाई है।अभी नापनी है लम्बी राह जानकारों के मुताबिक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट पर दोनों राज्यों की सहमति बनने के बाद निर्माण कार्य शुरू करने के लिए भी सहमति पत्र (एमओयू) पर हस्ताक्षर होंगे। डीपीआर तैयार करने के लिए मध्यप्रदेश व उत्तरप्रदेश के बीच 28 अगस्त 2005 को सहमति पत्र पर हस्ताक्षर हुए थे।"काफी बडी है रिपोर्ट"परियोजना की विस्तृत रिपोर्ट (डीपीआर) 31 दिसम्बर 2008 को राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण को सौंपी गई थी। अभिकरण व केन्द्रीय जल संसाधन विभाग ने अध्ययन के बाद इसे राय के लिए गत फरवरी में राज्य सरकार को भेजी थी। सरकार इसमें शामिल प्रस्तावों पर अब तक कोई राय नहीं बना पाई है। जल संसाधन विभाग के प्रमुख सचिव अरविन्द जोशी का कहना है कि रिपोर्ट काफी बडी (10-15 वॉल्यूम में) है। इसका सावधानीपूर्वक परीक्षण करवाया जा रहा है ताकि ऎसी कोई कमी नहीं रह जाए, जिसकी वजह से बाद में पानी के बंटवारे या अन्य मामलों में दिक्कत आए। सरकार को लगेगा तो वह इसमें संशोधन की बात भी करेगी।देरी से बढ रही लागतप्रक्रिया के स्तर पर ही परियोजना की कीमत दो गुना हो गई है। प्रारंभिक प्रस्ताव में परियोजना की कीमत साढे तीन हजार करोड बताई गई थी। डीपीआर के समझौते से पूर्व वर्ष 2002-03 के मूल्य स्तर पर इसकी लागत 4 हजार 263 करोड आंकी गई। डीपीआर में लागत सात हजार करोड आंकी गई है। परियोजना के निर्माण में छह से 8 वर्ष का समय लगेगा। तब तक खर्च आठ हजार करोड या इससे भी ज्यादा हो सकता है।
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