Friday, November 7, 2008

राह आसन नही राठोड की

राजसमन्द विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी हरिसिन्ह राठौड को अपनी ही पार्टी के असंतुष्ट कार्यकर्ताओं को समय रहते मनाना होगा वरना उन्हें इसका सीधा नुकसान उठाना पड सकता है। राठौड के नाम की अधिकृति घोषणा होने के बावजूद कांग्रेस पार्टी संगठन के प्रमुख कार्यकर्ताओं, पंच सरपंचों ने उनसे दूरी बना रखी है। हालांकि अपने नाम की घोषणा होने के बाद हरिसिंह राठौड टिकट के अन्य दावेदार रहे नारायण सिंह भाटी, दिनेश बाबेल, गुणसागर कर्णावट आदि नेताओं से जाकर मिले और और सहयोग करने का अनुरोध किया। मगर कोई उनके साथ चुनाव प्रचार में नहीं उतरा।राजसमन्द नगर कांग्रेस अध्यक्ष गोविन्द सनाढ्य एकमात्र ऐसे नेता हैं जो पार्टी के प्रति वफादार होने से राठौड के नाम की घोषणा होने के बाद उनके साथ चुनाव प्रचार में जुट गए जबकि टिकट दावेदारी के दोरान वो जिलाध्यक्ष नारायणंिसह भाटी के साथ थे तथा उनको टिकट दिलाने की पैरवी करने दिल्ली तक गए थे। सनाढ्य ने सभी को एक जाजम पर एकत्रित करने के लिए दीपावली स्नेहमिलन एवं कार्यकर्ता सम्मेलन का आयोजन कर सभी को आमंत्रित किया। यही नहीं निमंत्रण पत्र भी छपवाए गए लेकिन सम्मेलन में मुख्य अतिथि पूर्व मंत्री लक्ष्मणसिंह रावत, विशिष्ट अतिथि पालिका प्रतिपक्ष नेता चुन्नीलाल पंचोली समारोह के अध्यक्ष जिलाध्यक्ष नारायणसिंह भाटी आदि नेता सम्मेलन में नहीं पहुंचे। कांग्रेस प्रत्याशी राठौड के साथ चुनाव प्रचार एवं जनसम्पर्क में जुटे लोगों में राजनीतिक अनुभव की कमी होने के साथ साथ क्षेत्र में उनकी प्रभावशाली पहचान भी नहीं है। हाल ही में कांग्रेस के एक प्रकोष्ठ के जिलाध्यक्ष बने नेता एवं अपने व्यवसायिक भागीदारों के सहारे ही चुनाव लडना कोई फायदेमंद नजर नहीं आ रहा है।वहीं राठौड के साथ एक दिक्कत यह है कि राजसमन्द विधानसभा क्षेत्र के गांवों में उनकी पहचान नहीं के बराबर है। मार्बल मण्डी एवं जिला मुख्यालय के मतदाता तो फिर भी हरिसिंह राठौड के नाम और चेहरे से वाकिफ है लेकिन ग्रामीण जन तो दोनो से अनजान है। सादगी एवं अच्छे इन्सान राठौड के व्यक्तित्व को मतदाताओं के समक्ष कांग्रेस कार्यकर्ताओं को समय रहते बताना पडेगा। भाजपा प्रत्याशी के नाम की घोषणा होने से पहले तक जो हो जाना चाहिए था वैसा कुछ हुआ नहीं। कांग्रेस में अन्दर ही अन्दर बगावत की लहर चल रही है जिसे असंतुष्ट नेता हवा दे रहे है। तो इधर राठौड उन्ही के साथ दौरे कर रहे हैं जो उनके अपने है। अपने तो अपने है ही परायों को अपना बनाने के बजाय एक घेरे में ही कांग्रेस की चुनावी कसरत चलती नजर आ रही है जो किसी मायने में कांग्रेस के लिए लाभदायक नहीं हो सकती है।

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