राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के 13 विधायकों के समर्थन की बदौलत कांग्रेस और एनसीपी के सात उम्मीदवार विधान परिषद की चुनावी वैतरणी पार कर गए। क्या अपने चार विधायकों का निलंबन खत्म करने की शर्त पर MNS ने इन सत्तारूढ़ दलों को समर्थन दिया? राजनीतिक गलियारों में ये सवाल उछल रहा है और इस समर्थन से सबसे ज्यादा फायदा पाने वाली कांग्रेस पार्टी पूरे मामले से हाथ धोने में जुटी है। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष माणिकराव ठाकरे ने शुक्रवार को जब प्रेस सम्मेलन बुलाया तो यही सवाल गूंज रहा था। माणिकराव ने सफाई वही सफाई दी जो एक दिन पहले अशोक चव्हाण दे चुके थे। उन्होंने कहा, 'जब हमारे तीनों उम्मीदवारों को जिताने लायक वोट हमारे पास थे, तब MNS से समर्थन मांगने का सवाल कहां उठता है'। कांग्रेस के समर्थन पर चुनाव लड़ रहे निर्दलीय उम्मीदवार विजय सावंत को मिले वोटों का मामला वे निर्दलीय और छोटे दलों का समर्थन बताकर लगभग टाल गए। इस मामले में उनकी मुश्किल इसलिए भी बढ़ गई है कि चुनाव के तुरंत बाद एनसीपी के उपमुख्यमंत्री छगन भुजबल ने MNS के समर्थन की बात मानी और उन्हें इसके लिए धन्यवाद भी दिया। कांग्रेस की मुश्किल यह है कि वह चौथे निर्दलीय को जितवाने का श्रेय तो चाहती है मगर इसके लिए किए गए समझौतों को सार्वजनिक तौर पर स्वीकारना नहीं चाहती। इधर, शुक्रवार के मतदान के बाद MNS विधायकों में निलंबन रद्द होने को लेकर उत्साह है। बताया जाता है कि मतदान खत्म होने के बाद MNS विधायक रमेश वांजिले और राम कदम ने विधानसभा अध्यक्ष दिलीप वलसे पाटील से मुलाकात की। चार साल के MNS के दौरान विधानभवन परिसर में उनके कदम न रखने का प्रतिबंध वैसे भी शुक्रवार को शिथिल कर दिया गया। जानकार सूत्रों के अनुसार, वर्षाकालीन सत्र की शुरुआत में उनका निलंबन रद्द करने की पूरी तैयारी है। मुख्यमंत्री को जब पत्रकारों ने घेरा तो उन्होंने स्वीकार किया कि निलंबन खत्म करने का मसला फिलहाल विधानसभा की 'कामकाज सलाहकार समिति' के सामने विचाराधीन है। सत्ताधारी कांग्रेस और एनसीपी दलों के समर्थन के बाद निलंबन रद्द होना औपचारिकता भर रह जाएगी। विधान परिषद चुनाव में शिवसेना उम्मीदवार अनिल परब को पटखनी देने में सफल रही कांग्रेस पार्टी की मुश्किल ये है कि अगर वह MNS का समर्थन लेना स्वीकारती है तो समझौते की शर्तें भी उजागर करनी पड़ेंगी। अगर निलंबन रद्द करने को लेकर 'समझौता' नहीं हुआ तो किन शर्तों पर मामला तय हुआ, इस टेढ़े सवाल का जवाब वैसे भी आसान नहीं होगा। उल्लेखनीय है कि MNS के चार विधायकों शिशिर शिंदे, वसंत गिते, वांजिले, कदम को अक्टूबर में विधानसभा की पहली बैठक में हंगामा करने को लेकर चार साल के लिए निलंबित कर दिया गया था।
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