सोनिया गांधी के लगातार चौथी बार कांग्रेस अध्यक्ष निर्वाचित होने के एक दिन बाद शिवसेना ने शनिवार को उनके विदेशी मूल का मुद्दा एक बार फिर उठाते हुए कांग्रेस में किसी 'पुरुष' के होने पर शंका जताई।पार्टी के मुखपत्र 'सामना' में एक तीखे संपादकीय में बाल ठाकरे की पार्टी ने सोनिया पर हमला करते हुए सवाल उठाया कि क्या कांग्रेस में कोई 'मर्द' है जो गांधी परिवार को चुनौती दे सकता है।संपादकीय में कहा गया, "कभी कहा जाता था कि इंदिरा गांधी (दिवंगत प्रधानमंत्री) अपने मंत्रिमंडल में एकमात्र मर्द हैं। सोनिया गांधी के युग में हम पूछ सकते हैं कि क्या कांग्रेस में एक भी मर्द बचा है? यदि ऐसा है तो उन्हें एक विदेशी महिला के सामने पार्टी के गर्व को समर्पित नहीं करना चाहिए।"सामना ने कहा कि कांग्रेस की स्थापना एक विदेशी ए. ओ .ह्यूम ने की थी लेकिन विदेशी होने के कारण वे भी कभी पार्टी अध्यक्ष नहीं बने। इसके बजाए दादाभाई नौरोजी या सुरेंद्रनाथ बनर्जी जैसे भारतीय दिग्गजों को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया।‘सामना’ के अनुसार वर्ष 1998 में जब शरद पवार, माखनलाल फोतेदार और भजनलाल जैसे नेताओं ने तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी को जबरन हटाकर राजीव गांधी की विधवा सोनिया को पार्टी अध्यक्ष बनाया था, तो उनका मानना था कि वे उनसे अपनी मर्जी के मुताबिक काम करवाएंगे।इन सभी नेताओं को सोनिया माइनो गांधी के विदेशी मूल पर सवाल खड़ा करने के कारण पार्टी छोड़ने को विवश होना पड़ा और इसके बाद मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने।
संपादकीय के अनुसार अब सोनिया गांधी के जीवन का प्राथमिक लक्ष्य अपने बेटे राहुल गांधी को देश का प्रधानमंत्री बनाना है, लेकिन पार्टी के किसी भी व्यक्ति में उन्हें चुनौती देने का साहस नहीं है।‘सामना’ ने लिखा है कि जिस पार्टी में कभी महात्मा गांधी के फैसलों पर सवाल उठाए जाते और उन्हें चुनौती दी जाती थी, वहीं अब उसी पार्टी के लोगों में घुटने टेककर सोनिया गांधी के फैसलों को स्वीकार करने की प्रवृत्ति है।
संपादकीय के अनुसार अब सोनिया गांधी के जीवन का प्राथमिक लक्ष्य अपने बेटे राहुल गांधी को देश का प्रधानमंत्री बनाना है, लेकिन पार्टी के किसी भी व्यक्ति में उन्हें चुनौती देने का साहस नहीं है।‘सामना’ ने लिखा है कि जिस पार्टी में कभी महात्मा गांधी के फैसलों पर सवाल उठाए जाते और उन्हें चुनौती दी जाती थी, वहीं अब उसी पार्टी के लोगों में घुटने टेककर सोनिया गांधी के फैसलों को स्वीकार करने की प्रवृत्ति है।
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