वरिष्ठ भाजपा नेता और राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरूण जेटली ने माओवादियों के साथ ही उन ''अद्र्ध माओवादियों'' से भी सावधान रहने की सलाह दी है जो अपने बयानों से इस लड़ाई को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं।उन्होंने कहा कि भाजपा सहित पूरा विपक्ष जब नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई में गृहमंत्री पी चिदंबरम का साथ दे रहा है, कांग्रेस और यूपीए के अंदर से ही उनके खिलाफ उठ रही आवाजें इस लड़ाई को कमजोर कर रही हैं।जेटली ने कहा कि माओवादी गरीबी उन्मूलन के नहीं, बल्कि लोकतंत्र उन्मूलन के अभियान में लगे हैं। ये दरअसल, भारतीय राज्य पर कब्जा करना चाहते हैं। लोकतांत्रिक तरीके से चुन कर आई सरकार को हटा कर खुद सत्ता हासिल करने की तैयारी में हैं और संसदीय लोकतंत्र की जगह वैचारिक तानाशाही स्थापित करना चाहते हैं।उन्होंने कहा कि कुछ साल पहले तक लग रहा था कि वामपंथी अतिवाद को काफी हद तक समाप्त कर दिया गया है, लेकिन इस दशक के उत्तराद्र्ध में इसने एक बार फिर से उभार लिया है। साथ ही इसका भौगोलिक विस्तार भी हो रहा है। यूपीए सरकार की पहली पारी के दौरान इसमें खासी बढ़ोतरी हुई। क्योंकि तब सरकार ने इस मुद्दे को पूरी तरह उपेक्षित कर दिया और तब के गृह मंत्री सिर्फ यह कहते रहे कि इन इलाकों में विकास योजनाओं को पहुंचाना है।भाजपा नेता के मुताबिक दूसरी पारी में यूपीए सरकार ने इसकी गंभीरता को समझा है। गृहमंत्री भी गंभीर नजर आते हैं, लेकिन जिस तरह के बयान वे अक्सर देते रहते हैं, उससे समस्या खड़ी हो जाती है। हाल ही में वे पश्चिम बंगाल की यात्रा पर गए तो वहां के मुख्यमंत्री के बारे में ऐसा बयान दे आए जिस पर कड़ी प्रतिक्रिया हुई, लेकिन 48 घंटों के अंदर ही दंतेवाड़ा कांड हो गया जिसके बाद उन्हीं के मुहावरे का इस्तेमाल कर उनको कठघरे में खड़ा किया जाने लगा।इस कांड के बावजूद भाजपा सहित पूरा विपक्ष नक्सलियों के खिलाफ इस लड़ाई में चिदंबरम के साथ खड़ा रहा, लेकिन उन पर कांग्रेस और यूपीए के अंदर से ही हमला होने लगा। जेटली ने कहा, हमें यह समझना चाहिए कि नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई में पहले ही काफी देर हो चुकी है। अब इस तरह के बयान देकर इस लड़ाई को और कमजोर न करें।
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