बीजेपी के पूर्व महासचिव के. एन. गोविंदाचार्य ने बीजेपी क
े राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी को पत्र लिख कर आगाह किया है कि पार्टी की आंतरिक गुटबाजी और गड़बड़ियों का उन्हें शिकार न बनाया जाए। उन्होंने कहा कि इससे मेरी छवि को नुकसान पहुंचता है। जनमानस में मेरे बारे में भ्रम पैदा होता है और मेरे काम में भी रुकावट पैदा होती है। वह और उनकी पार्टी के पदाधिकारी मेरे बारे में बीजेपी के प्रति मेरी अरुचि देखते हुए टिप्पणी करना बंद कर दें। एक समाचार पत्र में प्रकाशित गडकरी के इंटरव्यू का जिक्र करते हुए गोविंदाचार्य ने अपने पत्र में गडकरी को अपनी वाणी पर संयम रखने की भी सलाह दी है। उन्होंने लिखा है कि उन्हें (गडकरी को) अपनी वाणी पर संयम रखना चाहिए जिससे उनकी छवि अनर्गल बोलने वाले सतही एवं अक्षम नेता की न बने। पार्टी के प्रति अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए गोविंदाचार्य ने कहा है कि मैं न तो पार्टी से निष्कासित किया गया हूं और न ही मैंने पार्टी से इस्तीफा दिया है। मैंने 9 सितंबर 2000 को अध्ययन अवकाश लिया था। 2003 में बीजेपी की प्राथमिक सदस्यता का पुन: नवीकरण नहीं कराया था। अत: मैंने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से खुद को मुक्त कर लिया था। उन्हें (गडकरी को) और उनकी पार्टी (बीजेपी) के पदाधिकारियों को बयान या इंटरव्यू देने से पहले मेरी विशिष्ट स्थिति का ज्ञान होना चाहिए और वाणी संयम करना चाहिए। गोविंदाचार्य ने यह भी लिखा है कि मैं संघ का स्वयंसेवक हूं और बौद्घिक, रचनात्मक और आंदोलनात्मक तरीकों से देश हित में सक्रिय हूं। बीजेपी की दशा और दिशा के संबंध में मेरा अपना आकलन है। पिछले 10 साल से मैं दर्जन बार कह चुका हूं कि मैं पार्टी या सत्ता का हिस्सा नहीं बनूंगा। लेकिन मेरे कार्य का राजनीति पर प्रभाव पड़ेगा।
े राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी को पत्र लिख कर आगाह किया है कि पार्टी की आंतरिक गुटबाजी और गड़बड़ियों का उन्हें शिकार न बनाया जाए। उन्होंने कहा कि इससे मेरी छवि को नुकसान पहुंचता है। जनमानस में मेरे बारे में भ्रम पैदा होता है और मेरे काम में भी रुकावट पैदा होती है। वह और उनकी पार्टी के पदाधिकारी मेरे बारे में बीजेपी के प्रति मेरी अरुचि देखते हुए टिप्पणी करना बंद कर दें। एक समाचार पत्र में प्रकाशित गडकरी के इंटरव्यू का जिक्र करते हुए गोविंदाचार्य ने अपने पत्र में गडकरी को अपनी वाणी पर संयम रखने की भी सलाह दी है। उन्होंने लिखा है कि उन्हें (गडकरी को) अपनी वाणी पर संयम रखना चाहिए जिससे उनकी छवि अनर्गल बोलने वाले सतही एवं अक्षम नेता की न बने। पार्टी के प्रति अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए गोविंदाचार्य ने कहा है कि मैं न तो पार्टी से निष्कासित किया गया हूं और न ही मैंने पार्टी से इस्तीफा दिया है। मैंने 9 सितंबर 2000 को अध्ययन अवकाश लिया था। 2003 में बीजेपी की प्राथमिक सदस्यता का पुन: नवीकरण नहीं कराया था। अत: मैंने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से खुद को मुक्त कर लिया था। उन्हें (गडकरी को) और उनकी पार्टी (बीजेपी) के पदाधिकारियों को बयान या इंटरव्यू देने से पहले मेरी विशिष्ट स्थिति का ज्ञान होना चाहिए और वाणी संयम करना चाहिए। गोविंदाचार्य ने यह भी लिखा है कि मैं संघ का स्वयंसेवक हूं और बौद्घिक, रचनात्मक और आंदोलनात्मक तरीकों से देश हित में सक्रिय हूं। बीजेपी की दशा और दिशा के संबंध में मेरा अपना आकलन है। पिछले 10 साल से मैं दर्जन बार कह चुका हूं कि मैं पार्टी या सत्ता का हिस्सा नहीं बनूंगा। लेकिन मेरे कार्य का राजनीति पर प्रभाव पड़ेगा।
No comments:
Post a Comment