सैलरी और भत्तों के मामले में दिल्ली नगर निगम के 272 पार्षद खासे गरीब हैं। सैलरी के नाम पर पार्षदों को निगम की एक बैठक के लिए मात्र 300 रुपये भत्ता दिया जाता है। लैंडलाइन फोन के बिल के अलावा उनके मोबाइल फोन में हर माह एक हजार रुपये का टॉक टाइम डाला जाता है। सूत्र बताते हैं कि पिछले तीन माह से एमसीडी पार्षदों को उनका यह दुर्लभ वेतन भी नहीं मिल रहा है। वैसे पार्षदों को लैपटॉप तो मिला है लेकिन उसके साथ न तो प्रिंटर है और न ही इंटरनेट की सुविधा। जिस पार्षद को लैपटॉप चलाना नहीं आता, वह उसके घर की शोभा बढ़ा रहा है, क्योंकि उन्हें ऑपरेट करने के लिए कर्मचारी नहीं मिलता है। पिछले साल मेयर डॉ. कंवरसेन ने इस बाबत उपराज्यपाल तेजेंद्र खन्ना को पार्षदों का दुखड़ा सुनाया था और बताया महंगाई के इस दौर में पार्षदों को कुछ न मिलना उनके साथ अन्याय करना है। उन्होंने महामहिम को जानकारी दी थी कि पार्षद को लोगों चिट्ठी आदि लिखवाने के लिए ही हर माह करीब 15 हजार रुपये खर्च हो जाते हैं। इतना ही नहीं शादी और अन्य कार्यक्रमों में पार्षद को गिफ्ट देना होता है। गुजारिश की थी कि पार्षदों का वेतन कम से कम 30 हजार रुपये हो जाए तो उन्हें कई 'परेशानियों' से निजात मिल सकती है। बताते हैं कि उपराज्यपाल निवास से मेयर को आश्वासन तो मिला लेकिन सैलरी आदि नहीं मिले।
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