नई दिल्ली। पेट्रोल व डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी पर अपने ही सहयोगियों के दवाब व विपक्षी तेवरों को देखते हुए सरकार ने पीछे हटने के संकेत दिए हैं। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने बजट में पेट्रोलियम उत्पादों पर सीमा शुल्क एवं उत्पाद शुल्क में वृद्धि करने का प्रस्ताव किया था। इसके तत्काल बाद पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ गए। बजट पेश करने के बाद मुखर्जी ने साफ कहा था कि शुल्क वृद्धि का प्रस्ताव वापस नहीं लिया जाएगा। पर अब उनके तेवर ढीले पड़ते नजर आ रहे हैं। वह कह रहे हैं, हम इस मुद्दे पर अपने सहयोगी दलों से बातचीत कर रहे हैं। गठबंधन सरकार में ऐसे विचार आते हैं और उन्हें लोकतांत्रिक तरीके से सुलझाया जाता है। माना जा रहा है कि सरकार की इस सोच के पीछे संसद का गणित और पश्चिम बंगाल का आने वाला विधानसभा चुनाव है। दरअसल सरकार की इस रोलबैक मुद्रा के पीछे द्रमुक व तृणमूल कांग्रेस की लामबंदी सबसे अहम है। सूत्रों के मुताबिक सरकार कम से कम इस मामले को लेकर तृणमूल प्रमुख व रेल मंत्री ममता बनर्जी को कतई नाराज नहीं करना चाहती है। उसकी नजर अगले साल विधानसभा चुनाव में ममता से मिल कर पश्चिम बंगाल में वामपंथियों को हटा कर अपने गठबंधन की सरकार बनाने पर है। हालांकि ममता से कांग्रेस के कई प्रमुख नेता खासे नाराज हैं। ममता ने बजट पेश होने से पहले हुई कैबिनेट की बैठक में खाद सबसिडी को लेकर भारी बवाल किया था। उस समय द्रमुक ने भी उनके सुर में सुर मिलाया था। इस बार भी द्रमुक मूल्य वृद्धि वापसी की मांग कर रही है। लेकिन सूत्रों के अनुसार सरकार की कोशिश है कि पेट्रोल की मूल्य वृद्धि जस की तस रखी जाए और डीजल के मामले में पीछे हटा जाए।
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