गांव के विकास के भरोसे ग्रामीणों ने गांव की सरकार चुनी। दावों, वादों और इरादों से जनप्रतिनिधियों ने ग्रामीणों को विकास का आईना दिखाया। विकास का यह आईना कई जनप्रतिनिधियों ने एक झटके में तोडकर रख दिया। हालांकि गांवों में विकास तो हुआ, लेकिन वह ग्रामीणों की अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं हो पाया। विकास कार्य में भेदभाव और अनियमितताओं का जोर रहा।
हालत यह रही कि ज्यों-ज्यों गांव के विकास की राशि आती गई, जनप्रतिनिधियों की अनियमितताएं भी बढती गई। इससे गांवों में विकास की लहर तो पूरी तरह नहीं आ पाई, लेकिन कई जनप्रतिनिधियों ने अनियमितताओं के गहरे जख्म जरूर दे दिए। ग्रामीणों के विकास की जो योजनाएं बनाई गई, उनमें ही सेंधमारी कर ली गई। मिलीभगत की चीनी अफसरों को भी इतनी मीठी लगी कि उन्होंने कार्रवाई करने की अपनी जवाबदेही भी भूला दी।
हालत यह हो गई कि गांव की सरकार की सबसे बडी जिला प्रमुख की सीट भी अनियमितताओं के घेरे में आ गई। निवर्तमान जिला प्रमुख की पुत्रवधू ने एक ही समय में दो जगह कार्य दर्शाकर सरकारी राशि उठा ली। जिले में गांवों की सरकार के पिछले कार्यकाल पर नजर डालें तो कुछ ऎसा ही सामने आता है।
n 16 अयोग्य, 12 लाए स्थगन आदेश
गत कार्यकाल में गंभीर शिकायतों के चलते जिले के 16 सरपंचों को राज्य सरकार ने अयोग्य घोषित कर दिया था। इनमें से 12 जनों ने न्यायालय से स्थगन आदेश प्राप्त कर लिया। अयोग्य घोषित किए गए सरपंचों में से कोई भ्रष्टाचार में लिप्त रहा तो किसी ने गैर मुमकिन भूमि में पंचायत भवन बना दिया।
किसी ने संतान की गलत सूचना देकर चुनाव लड लिया तो किसी ने पट्टा वितरण में हेराफेरी कर ली। अधिकाशं शिकायतें निर्माण सामग्री और निर्माण कार्य की अनियमितताओं से जुडी है। राज्य सरकार तक मामला जाने पर हालांकि कई सरपंचों को निलंबित कर दिया गया, लेकिन अधिकांश ग्राम पंचायतों से संबंधित शिकायतें प्रशासन के कागजों में दबी पडी है। जिले में 339 ग्राम पंचायतें हैं। इनसे संबंधित करीब 165 शिकायतें जिला प्रशासन को मिल चुकी है, जिनमें से जिला स्तर पर मात्र 14 पर कार्रवाई की गई है।
n पूर्व सरपंच भी डिफाल्टर
कई पूर्व सरपंच भी अनियमितताओं के बाद राज्य सरकार की ओर से अयोग्य घोषित किए जा चुके हैं। श्रीमाधोपुर पंचायत समिति में बागरियावास के पूर्व सरपंच भंवर सिंह को डिफाल्टर घोषित किया गया है। वहीं विकास अधिकारी ने फुटाला के पूर्व सरपंच कल्याण सहाय जाट को भी अयोग्य माना है। इसी तरह पंचायतराज विभाग ने राधाकिशनपुरा के पूर्व सरपंच सीताराम सैनी, माकडी के पूर्व सरपंच जगदीशप्रसाद यादव, पचार के पूर्व सरपंच कृष्णादेवी, भादवाडी के पूर्व सरपंच चंदगीलाल, मलिकपुर के पूर्व सरपंच जगदीशप्रसाद शर्मा, कोछोर के पूर्व सरपंच सालिगराम तथा बुर्जा की ढाणी के पूर्व सरपंच सुण्डाराम को भी अयोग्य घोषित किया जा चुका है।
*n शिकायतों की बानगी
जिला प्रशासन को मिली अधिकांश शिकायतें घटिया निर्माण सामग्री, गलत भुगतान, नरेगा में अनियमितता, सरकारी धन के दुरूपयोग, विकास योजनाओं में कागजी निर्माण कार्य और गलत पट्टा जारी करने से संबंधित हैं।
* नरेगा के बाद बढी शिकायतेंराष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) में हर हाथ को कार्य का वायदा भले ही साकार रूप नहीं ले पाया, लेकिन जिले में शिकायतों का ग्राफ जरूर बढ गया है। अधिकांश शिकायतें सरपंचों से जुडी हैं। कहीं सरपंचों ने अपने परिवार को ही नरेगा में लगा दिया है तो कहीं सरपंचों के परिजनों के नाम तो मस्टररोल में दर्ज है, लेकिन वे कार्य पर आते ही नहीं है। इसके अलावा फर्जी हाजरी दर्ज कर मजदूरों के खाते में सेंध लगाना भी आम बात है। नरेगा में निर्माण सामग्री और कार्य में भी कई सरपंचों ने जमकर चांदी कूटी
हालत यह रही कि ज्यों-ज्यों गांव के विकास की राशि आती गई, जनप्रतिनिधियों की अनियमितताएं भी बढती गई। इससे गांवों में विकास की लहर तो पूरी तरह नहीं आ पाई, लेकिन कई जनप्रतिनिधियों ने अनियमितताओं के गहरे जख्म जरूर दे दिए। ग्रामीणों के विकास की जो योजनाएं बनाई गई, उनमें ही सेंधमारी कर ली गई। मिलीभगत की चीनी अफसरों को भी इतनी मीठी लगी कि उन्होंने कार्रवाई करने की अपनी जवाबदेही भी भूला दी।
हालत यह हो गई कि गांव की सरकार की सबसे बडी जिला प्रमुख की सीट भी अनियमितताओं के घेरे में आ गई। निवर्तमान जिला प्रमुख की पुत्रवधू ने एक ही समय में दो जगह कार्य दर्शाकर सरकारी राशि उठा ली। जिले में गांवों की सरकार के पिछले कार्यकाल पर नजर डालें तो कुछ ऎसा ही सामने आता है।
n 16 अयोग्य, 12 लाए स्थगन आदेश
गत कार्यकाल में गंभीर शिकायतों के चलते जिले के 16 सरपंचों को राज्य सरकार ने अयोग्य घोषित कर दिया था। इनमें से 12 जनों ने न्यायालय से स्थगन आदेश प्राप्त कर लिया। अयोग्य घोषित किए गए सरपंचों में से कोई भ्रष्टाचार में लिप्त रहा तो किसी ने गैर मुमकिन भूमि में पंचायत भवन बना दिया।
किसी ने संतान की गलत सूचना देकर चुनाव लड लिया तो किसी ने पट्टा वितरण में हेराफेरी कर ली। अधिकाशं शिकायतें निर्माण सामग्री और निर्माण कार्य की अनियमितताओं से जुडी है। राज्य सरकार तक मामला जाने पर हालांकि कई सरपंचों को निलंबित कर दिया गया, लेकिन अधिकांश ग्राम पंचायतों से संबंधित शिकायतें प्रशासन के कागजों में दबी पडी है। जिले में 339 ग्राम पंचायतें हैं। इनसे संबंधित करीब 165 शिकायतें जिला प्रशासन को मिल चुकी है, जिनमें से जिला स्तर पर मात्र 14 पर कार्रवाई की गई है।
n पूर्व सरपंच भी डिफाल्टर
कई पूर्व सरपंच भी अनियमितताओं के बाद राज्य सरकार की ओर से अयोग्य घोषित किए जा चुके हैं। श्रीमाधोपुर पंचायत समिति में बागरियावास के पूर्व सरपंच भंवर सिंह को डिफाल्टर घोषित किया गया है। वहीं विकास अधिकारी ने फुटाला के पूर्व सरपंच कल्याण सहाय जाट को भी अयोग्य माना है। इसी तरह पंचायतराज विभाग ने राधाकिशनपुरा के पूर्व सरपंच सीताराम सैनी, माकडी के पूर्व सरपंच जगदीशप्रसाद यादव, पचार के पूर्व सरपंच कृष्णादेवी, भादवाडी के पूर्व सरपंच चंदगीलाल, मलिकपुर के पूर्व सरपंच जगदीशप्रसाद शर्मा, कोछोर के पूर्व सरपंच सालिगराम तथा बुर्जा की ढाणी के पूर्व सरपंच सुण्डाराम को भी अयोग्य घोषित किया जा चुका है।
*n शिकायतों की बानगी
जिला प्रशासन को मिली अधिकांश शिकायतें घटिया निर्माण सामग्री, गलत भुगतान, नरेगा में अनियमितता, सरकारी धन के दुरूपयोग, विकास योजनाओं में कागजी निर्माण कार्य और गलत पट्टा जारी करने से संबंधित हैं।
* नरेगा के बाद बढी शिकायतेंराष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) में हर हाथ को कार्य का वायदा भले ही साकार रूप नहीं ले पाया, लेकिन जिले में शिकायतों का ग्राफ जरूर बढ गया है। अधिकांश शिकायतें सरपंचों से जुडी हैं। कहीं सरपंचों ने अपने परिवार को ही नरेगा में लगा दिया है तो कहीं सरपंचों के परिजनों के नाम तो मस्टररोल में दर्ज है, लेकिन वे कार्य पर आते ही नहीं है। इसके अलावा फर्जी हाजरी दर्ज कर मजदूरों के खाते में सेंध लगाना भी आम बात है। नरेगा में निर्माण सामग्री और कार्य में भी कई सरपंचों ने जमकर चांदी कूटी
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