बीजेपी के नए प्रेजिडेंट नितिन गडकरी आजकल दिल्ली में बीजेपी पॉलिटिक्स के ऐसे बादशाह हैं, जिनके पास अपने सिपहासलार नहीं है। इसलिए नितिन गडकरी अब अपनी किचन कैबिनेट बनाने की तैयारी में जुटे हुए हैं, उनकी कोशिश है कि पार्टी की नई कार्यकारिणी का गठन जनवरी के अंतिम हफ्ते तक हो जाए, क्योंकि फरवरी में पार्टी का राष्ट्रीय सम्मेलन होना है। लेकिन कार्यकारिणी गठन में दिल्ली के डी 4 नेता और संघ का एक गुट गडकरी के रास्ते में अपनी ओर से कांटे बिछाने की कोशिश कर रहे हैं। मामला कुछ यूं है कि नितिन गडकरी अपनी टीम में संघ के प्रचारक और बीजेपी के महासचिव रहे संजय जोशी को शामिल करना चाहते हैं। आपको याद दिला दें संजय जोशी वही शख्स हैं जो कुछ सालों पहले अश्लील सीडी प्रकरण को लेकर बीजेपी महासचिव पद से टाटा कह गए थे। लेकिन अब गडकरी के पार्टी प्रेजिडेंट बनने के बाद संजय जोशी की वापसी के काफी आसार दिख रहे हैं। संजय जोशी एक तरह से महाराष्ट्र में नितिन गडकरी के राजनैतिक आका रह चुके हैं और आज भी संघ में अच्छी पैठ रखते हैं। असली कहानी यहीं से शुरू होती है। संजय जोशी को लेकर बीजेपी के अंदर काफी विरोध है। सूत्रों के अनुसार आडवाणी और मोदी कैंप संजय जोशी की वापसी किसी भी हाल में नहीं चाहते हैं और इसके लिए आजकल दिल्ली के डी-4 कैंप खास तौर पर सक्रिय हो गया है।
यह कैंप भलीभांति जानता है कि संजय जोशी आज भी पॉलिटिकली काफी स्ट्रॉन्ग हैं और यदि एक बार वह फिर केन्द्रीय स्तर पर सक्रिय पॉलिटिक्स से जुड़ते हैं, तो कई लोगों को किनारे लगाने में कहीं चूकेंगे नहीं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार संघ का एक गुट भी संजय जोशी की वापसी न हो, इसलिए नितिन गडकरी पर दवाब बनाए हुए हैं। यह गुट गडकरी को बता रहा है कि संजय जोशी की वापसी से शीर्ष केन्द्र गडकरी की बजाय जोशी हो जाएंगे। गौरतलब है कि संजय जोशी को एक समय बीजेपी के अंदर संघ की आवाज माना जाता था और उनकी शख्सियत भी बीजेपी में काफी स्ट्रॉन्ग थी । उन्हें सीडी कांड में फंसाने का आरोप भी बीजेपी के ही कुछ शीर्ष नेताओं पर लगा था। संजय जोशी की वापसी कर गडकरी जहां एक ओर अपनी ताकत दिखाना चाहते हैं, वहीं संघ भी संजय जोशी की वापसी कर बीजेपी के दिल्लीछाप नेताओं पर कंट्रोल करना चाहता है। अब देखना यह है कि नितिन गडकरी की बीजपी में प्रेजिडेंट होते हुए भी कितनी चलती है, क्योंकि अभी तक बीजेपी लालकृष्ण आडवाणी के इशारों पर ही चलती दिखी है और कई बार संघ की सिफारिशों को इग्नोर भी किया जा चुका है । वैसे भगवा बिग्रेड संजय जोशी की वापसी को एक तरह से गडकरी का पहला टेस्ट मान रहा है और इस टेस्ट में उनकी सफलता या असफलता से यह आकलन लगाया जाएगा कि उनकी बीजेपी में अभी उनकी राजनैतिक हैसियत कितनी है।
यह कैंप भलीभांति जानता है कि संजय जोशी आज भी पॉलिटिकली काफी स्ट्रॉन्ग हैं और यदि एक बार वह फिर केन्द्रीय स्तर पर सक्रिय पॉलिटिक्स से जुड़ते हैं, तो कई लोगों को किनारे लगाने में कहीं चूकेंगे नहीं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार संघ का एक गुट भी संजय जोशी की वापसी न हो, इसलिए नितिन गडकरी पर दवाब बनाए हुए हैं। यह गुट गडकरी को बता रहा है कि संजय जोशी की वापसी से शीर्ष केन्द्र गडकरी की बजाय जोशी हो जाएंगे। गौरतलब है कि संजय जोशी को एक समय बीजेपी के अंदर संघ की आवाज माना जाता था और उनकी शख्सियत भी बीजेपी में काफी स्ट्रॉन्ग थी । उन्हें सीडी कांड में फंसाने का आरोप भी बीजेपी के ही कुछ शीर्ष नेताओं पर लगा था। संजय जोशी की वापसी कर गडकरी जहां एक ओर अपनी ताकत दिखाना चाहते हैं, वहीं संघ भी संजय जोशी की वापसी कर बीजेपी के दिल्लीछाप नेताओं पर कंट्रोल करना चाहता है। अब देखना यह है कि नितिन गडकरी की बीजपी में प्रेजिडेंट होते हुए भी कितनी चलती है, क्योंकि अभी तक बीजेपी लालकृष्ण आडवाणी के इशारों पर ही चलती दिखी है और कई बार संघ की सिफारिशों को इग्नोर भी किया जा चुका है । वैसे भगवा बिग्रेड संजय जोशी की वापसी को एक तरह से गडकरी का पहला टेस्ट मान रहा है और इस टेस्ट में उनकी सफलता या असफलता से यह आकलन लगाया जाएगा कि उनकी बीजेपी में अभी उनकी राजनैतिक हैसियत कितनी है।
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