राजनैतिक अस्थिरता और प्रभावी प्रशासन की कमी के चलते झारखंड राज्य देश में माओ वादियों का सबसे बड़ा गढ़ बन गया है। गृहमंत्री पी. चिदंबरम की नक्सलवादियों की लगाम कसने की कोशिशों के बीच इस राज्य में इस साल के ग्यारह महीनों में लगभग दो नक्सली हमले रोज हुए है। यही कारण है कि नक्सली हिंसा में झारखंड ने छत्तीसगढ़ को काफी पीछे छोड़ दिया है। सरकारी आंकड़ों के हिसाब से इस साल तीस नवंबर तक झारखंड में नक्सली हिंसा से जुड़ी कुल 668 वारदातें हुई है। इन वारदातों में 132 आम नागरिक और 59 सुरक्षा कर्मी मारे गए है। इस अवधि में देश के सर्वाधिक नक्सल प्रभावित 9 राज्यों में कुल 2016 नक्सली हमले हुए है।
इनमें 514 आम नागरिक और 304 सुरक्षा कर्मी मारे गए हैं। पिछले साल कुल 1591 वारदातों में 721 लोग मारे गए थे। 2006 में 1509 वारदातों में 678 और 207 में 1565 वारदातों में 696 मौतें हुई थी। झारखंड में अस्थिर सरकारों का लाभ नक्सलियों ने खूब उठाया है। सरकारी संसाधनों की लूट में जहां उनकी हिस्सेदारी बढ़ी है वहीं आम जनता पर आतंक जमाने के लिए भी उन्होंने कई निर्दोष लोगों को मारा है। आंकड़ों के मुताबिक झारखंड में पिछले तीन साल में नक्सल वारदातों की संख्या लगातार बढ़ी है। 2006 में 310, 2007 में 482, 2008 में 484 के बाद 2009 में 11 महीने में 668 वारदातें हुई। अब झारखंड ने इस मामले में बरसों से आगे चल रहे छत्तीसगढ़ को पीछे छोड़ दिया है। हालांकि मौतों के मामले में छत्तीसगढ़ अभी भी आगे है पर वारदातों के मामले में झारखंड बहुत आगे निकल गया है। ऐसा नहीं है कि इन दोनों राज्यों के अलावा अन्य राज्यों में नक्सली वारदातें कम हो रही है। बिहार, उड़ीसा, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में भी नक्सली वारदातों में लगभग दो गुनी बढ़ोतरी हुई है। पश्चिम बंगाल में इस साल नक्सली हिंसा में करीब आठ गुनी वृद्धि हुई है। 2009 में अब तक वहां 214 वारदातें में 124 लोग मारे गए है। सबसे अहम बात यह है कि गृहमंत्री पी. चिदंबरम पूरे साल यह कोशिश करते रहे है कि नक्सलवाद के खिलाफ राज्य सरकारों को सक्रिय किया जाए। उन्होंने हर प्रभावित राज्यों का दौरा भी किया है। मुंबई हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ डाजियर बनाने की व्यस्तता के बाद भी वह नक्सल प्रभावित राज्यों में घूमते रहे है। उनका नक्सल विरोधी अभियान शुरू होने से पहले ही ठंडा कर दिया गया। अब राज्यों से आ रहे आंकड़े यह साबित कर रहे है कि चिदंबरम की चिंता जायज थी। यह अलग बात है कि 'राजनैतिक लाभ' के लिए उन्हें उनके अपनों ने नीचा दिखा दिया है।
इनमें 514 आम नागरिक और 304 सुरक्षा कर्मी मारे गए हैं। पिछले साल कुल 1591 वारदातों में 721 लोग मारे गए थे। 2006 में 1509 वारदातों में 678 और 207 में 1565 वारदातों में 696 मौतें हुई थी। झारखंड में अस्थिर सरकारों का लाभ नक्सलियों ने खूब उठाया है। सरकारी संसाधनों की लूट में जहां उनकी हिस्सेदारी बढ़ी है वहीं आम जनता पर आतंक जमाने के लिए भी उन्होंने कई निर्दोष लोगों को मारा है। आंकड़ों के मुताबिक झारखंड में पिछले तीन साल में नक्सल वारदातों की संख्या लगातार बढ़ी है। 2006 में 310, 2007 में 482, 2008 में 484 के बाद 2009 में 11 महीने में 668 वारदातें हुई। अब झारखंड ने इस मामले में बरसों से आगे चल रहे छत्तीसगढ़ को पीछे छोड़ दिया है। हालांकि मौतों के मामले में छत्तीसगढ़ अभी भी आगे है पर वारदातों के मामले में झारखंड बहुत आगे निकल गया है। ऐसा नहीं है कि इन दोनों राज्यों के अलावा अन्य राज्यों में नक्सली वारदातें कम हो रही है। बिहार, उड़ीसा, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में भी नक्सली वारदातों में लगभग दो गुनी बढ़ोतरी हुई है। पश्चिम बंगाल में इस साल नक्सली हिंसा में करीब आठ गुनी वृद्धि हुई है। 2009 में अब तक वहां 214 वारदातें में 124 लोग मारे गए है। सबसे अहम बात यह है कि गृहमंत्री पी. चिदंबरम पूरे साल यह कोशिश करते रहे है कि नक्सलवाद के खिलाफ राज्य सरकारों को सक्रिय किया जाए। उन्होंने हर प्रभावित राज्यों का दौरा भी किया है। मुंबई हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ डाजियर बनाने की व्यस्तता के बाद भी वह नक्सल प्रभावित राज्यों में घूमते रहे है। उनका नक्सल विरोधी अभियान शुरू होने से पहले ही ठंडा कर दिया गया। अब राज्यों से आ रहे आंकड़े यह साबित कर रहे है कि चिदंबरम की चिंता जायज थी। यह अलग बात है कि 'राजनैतिक लाभ' के लिए उन्हें उनके अपनों ने नीचा दिखा दिया है।
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