Tuesday, December 1, 2009

स्मिता के वेलकम को कांग्रेस में उत्साह नहीं

शिवसेना और कांग्रेस दोनों खेमों में ठाकरे परिवार की बहू स्मिता ठाकरे के मामले पर ज्यादा उत्सुकता का माहौल नहीं दिखाई दे रहा है। उलटे इस घटना को नजरअंदाज करने का ही आलम है। खासतौर से शिवसेना द्वारा यह जाहिर किया जा रहा है कि 'स्मिता यदि कल-परसों के बजाय आज और अभी चली जाएं तो बेहतर होगा।' सूत्रों के अनुसार, शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के दोनों बेटे- जयदेव और उद्धव उन्हें मातोश्री से बाहर निकालने के लिए कब से आतुर हैं। जयदेव से तलाक के बाद से वे स्मिता को ठाकरे परिवार का सदस्य नहीं मानते। हालांकि बाला साहेब के कारण खुले तौर पर यह कहने से बचते रहे हैं। ठाणे में रविवार को एक कार्यक्रम के बाद पत्रकारों से बातचीत में उद्धव ने कहा कि 'आप चित्रे की नहीं, चित्रों की बात करिए' उनका मतलब स्मिता के विवाह पूर्व सरनेम (चित्रे) से था। वह यह संदेश देना चाहते थे कि स्मिता का ठाकरे सरनेम से कोई लेना-देना नहीं है।
तलाक के बाद जयदेव ने एक इंटरव्यू में कहा था कि स्मिता को अब अपने नाम के साथ ठाकरे नहीं लगाना चाहिए। उसके बाद भी मातोश्री में स्मिता का वास्तव्य बना रहा है। इस वास्तु की पहली मंजिल पर वह, दूसरी पर बाला साहेब और तीसरी मंजिल पर उद्धव रहते हैं। कांग्रेस में जाने की इच्छा जाहिर करने के बाद से स्मिता मातोश्री नहीं आईं। वह जुहू स्थित अपने लक्ष्मी बंगले में ही हैं। यह बात सर्वविदित है कि शिवसेना में स्मिता का कभी कोई खास रोल नहीं रहा। युति के शासन काल में वह सत्ता केन्द्र थीं पर पार्टी में उनका कोई योगदान नहीं था। सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर जिसे नकारात्मक योगदान माना जाता है, स्मिता उस श्रेणी में गिनी जाती रही हैं। हालांकि फिल्म और टीवी में उन्होंने सिक्का जमाया है। इसीलिए शिवसैनिकों पर स्मिता के ऐलान का असर नहीं हुआ है और कांग्रेस में भी उनके बारे में ज्यादा उत्सुकता नहीं है। राज्य स्तर पर कांग्रेस में किसी को उनके शामिल होने के बारे में कोई जानकारी नहीं है, न ही यह पता है कि दिल्ली में स्मिता किसके संपर्क में है? चर्चा है कि जिस तरह गांधी परिवार की एक बहू (मेनका) को बीजेपी ने अपने धड़े में स्थान दिया है, उसी तरह कांग्रेस पार्टी ठाकरे परिवार की बहू को अपनी छत्रछाया में रखने का रवैया अपना सकती है। पर राज्य के कांग्रेसियों को लगता है कि स्मिता की राजनीतिक कीमत मेनका जितनी नहीं है। इसलिए उन्हें शामिल करने से पहले इसका जायजा लिया जाना चाहिए कि पार्टी को इससे फायदा ज्यादा होगा या नुकसान! फिलहाल इसी उधेड़बुन में है कांग्रेसी।

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