बीजेपी ने तय रोडमैप के अनुसार अपने संविधान में संशोधन कर पार्टी के सीनिय
र नेता लालकृष्ण आडवाणी को शुक्रवार को पार्टी के संसदीय दल का चेयरमैन बना दिया। आडवाणी ने चेयरमैन बन कर लोकसभा में सुषमा स्वराज को और राज्यसभा में अरुण जेटली को नेता प्रतिपक्ष मनोनीत किया है। उपनेता का मनोनयन बाद में किया जाएगा। आरएसएस द्वारा तय इस रोडमैप में अगले कदम के तौर पर पार्टी की राष्ट्रीय स्तर पर कमान यंग नेताओं को सौंपने का काम शनिवार को किया जाएगा, जब पार्लियामेंटरी बोर्ड की बैठक में महाराष्ट्र के बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी राजनाथ सिंह से राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभालेंगे। राजनाथ ने हालांकि इस बात से इनकार किया है कि आडवाणी की जिम्मेदारियों में परिवर्तन के लिए संघ से कोई विचार विमर्श किया गया लेकिन आरएसएस की कमान संभालने के बाद मोहन भागवत ने बीजेपी में बढ़ती अंतर्कलह और उसके गिरते ग्राफ को मद्देनजर रखते हुए पार्टी को यंग हाथों में सौंपने का रोडमैप तैयार किया था।
राजनाथ ने पार्टी की व्यवस्था में दायित्वों में बदलाव को स्वाभाविक प्रक्रिया बताते हुए कहा कि आरएसएस का इससे कोई लेना-देना नहीं है। संसदीय दल का चेयरमैन बनना आडवाणी का प्रमोशन है या डिमोशन, इस सवाल पर राजनाथ ने कहा कि इसका सवाल ही नहीं उठता। पद से उनके कद का आकलन नहीं किया जा सकता। उनके योगदान से ही उनका कद है। बीजेपी को इस स्थान तक लाने में आडवाणी के योगदान को देखते हुए पार्टी उन्हें गरिमापूर्ण स्थान देना चाहती थी। वह संसदीय दल के चेयरमैन का पद ही हो सकता था। संसदीय दल की बैठक की अध्यक्षता खुद राजनाथ ने की। पार्टी संविधान में चेयरमैन पद के सृजन के लिए खुद ही प्रस्ताव रखा, जिस संसदीय दल ने सर्वसम्मति से पास कर दिया। बाद में यशवंत सिन्हा ने आडवाणी को इस पद पर चुने जाने का प्रस्ताव किया, जिसका अनुमोदन अनंत कुमार, एस.एस. आहलूवालिया, सुषमा स्वराज, बलबीर पुंज, रमेश बैस, शाहनवाज हुसैन, रविशंकर प्रसाद आदि सांसदों ने किया। आडवाणी को छोड़कर बाकी सब ने उसे स्वीकार कर लिया। राजनाथ के अनुसार लोकसभा चुनावों में पार्टी की हार के बाद आडवाणी ने नेता प्रतिपक्ष न बनने की इच्छा जताई थी लेकिन उस वक्त संसदीय दल के आग्रह पर उन्होंने वह पद संभाल लिया था। बाद में उन्होंने जब फिर यह पद छोड़ने का आग्रह किया तो दो दिन पहले ही राजनाथ ने कोर ग्रुप की बैठक बुलाकर सारी स्थिति पर विचार किया और पार्टी संविधान में संशोधन के लिए संसदीय दल की बैठक बुला ली। एक घंटे की इस बैठक में संविधान संशोधन कर दिया गया। संशोधन में संसदीय दल के चेयरमैन का पद सृजित कर दिया गया, जो संसदीय दल के बाकी पदाधिकारियों को मनोनीत करेगा।
र नेता लालकृष्ण आडवाणी को शुक्रवार को पार्टी के संसदीय दल का चेयरमैन बना दिया। आडवाणी ने चेयरमैन बन कर लोकसभा में सुषमा स्वराज को और राज्यसभा में अरुण जेटली को नेता प्रतिपक्ष मनोनीत किया है। उपनेता का मनोनयन बाद में किया जाएगा। आरएसएस द्वारा तय इस रोडमैप में अगले कदम के तौर पर पार्टी की राष्ट्रीय स्तर पर कमान यंग नेताओं को सौंपने का काम शनिवार को किया जाएगा, जब पार्लियामेंटरी बोर्ड की बैठक में महाराष्ट्र के बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी राजनाथ सिंह से राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभालेंगे। राजनाथ ने हालांकि इस बात से इनकार किया है कि आडवाणी की जिम्मेदारियों में परिवर्तन के लिए संघ से कोई विचार विमर्श किया गया लेकिन आरएसएस की कमान संभालने के बाद मोहन भागवत ने बीजेपी में बढ़ती अंतर्कलह और उसके गिरते ग्राफ को मद्देनजर रखते हुए पार्टी को यंग हाथों में सौंपने का रोडमैप तैयार किया था।
राजनाथ ने पार्टी की व्यवस्था में दायित्वों में बदलाव को स्वाभाविक प्रक्रिया बताते हुए कहा कि आरएसएस का इससे कोई लेना-देना नहीं है। संसदीय दल का चेयरमैन बनना आडवाणी का प्रमोशन है या डिमोशन, इस सवाल पर राजनाथ ने कहा कि इसका सवाल ही नहीं उठता। पद से उनके कद का आकलन नहीं किया जा सकता। उनके योगदान से ही उनका कद है। बीजेपी को इस स्थान तक लाने में आडवाणी के योगदान को देखते हुए पार्टी उन्हें गरिमापूर्ण स्थान देना चाहती थी। वह संसदीय दल के चेयरमैन का पद ही हो सकता था। संसदीय दल की बैठक की अध्यक्षता खुद राजनाथ ने की। पार्टी संविधान में चेयरमैन पद के सृजन के लिए खुद ही प्रस्ताव रखा, जिस संसदीय दल ने सर्वसम्मति से पास कर दिया। बाद में यशवंत सिन्हा ने आडवाणी को इस पद पर चुने जाने का प्रस्ताव किया, जिसका अनुमोदन अनंत कुमार, एस.एस. आहलूवालिया, सुषमा स्वराज, बलबीर पुंज, रमेश बैस, शाहनवाज हुसैन, रविशंकर प्रसाद आदि सांसदों ने किया। आडवाणी को छोड़कर बाकी सब ने उसे स्वीकार कर लिया। राजनाथ के अनुसार लोकसभा चुनावों में पार्टी की हार के बाद आडवाणी ने नेता प्रतिपक्ष न बनने की इच्छा जताई थी लेकिन उस वक्त संसदीय दल के आग्रह पर उन्होंने वह पद संभाल लिया था। बाद में उन्होंने जब फिर यह पद छोड़ने का आग्रह किया तो दो दिन पहले ही राजनाथ ने कोर ग्रुप की बैठक बुलाकर सारी स्थिति पर विचार किया और पार्टी संविधान में संशोधन के लिए संसदीय दल की बैठक बुला ली। एक घंटे की इस बैठक में संविधान संशोधन कर दिया गया। संशोधन में संसदीय दल के चेयरमैन का पद सृजित कर दिया गया, जो संसदीय दल के बाकी पदाधिकारियों को मनोनीत करेगा।
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