सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस लिब्रहान ने मीडिया से बात करने से इनकार कर दिया लेकिन जब पत्रकारों ने जबरदस्ती सवाल पूछने की कोशिश की तो उन्होंने उन्हें दफा हो जाओ तक कह दिया।मामला यही नहीं था। जब एक संवाददाता ने उनसे पूछ लिया कि क्या उन्होंने रिपोर्ट लीक की है तो वह आग-बबूला हो उठे। उन्होंने चिल्लाते हुए कहा, मैं ऐसा चरित्रहीन इंसान नहीं हूं। लिब्रहान ने कहा कि मीडिया उनके साथ जैसा सुलूक कर रहा है वह उससे बेहद दुखी हैं।लिब्रहान आयोग का सच6 दिसबंर 1992 को बाबरी मस्सिद को गिराए जाने के बाद लिब्राहन आयोग का गठन हुआ था। आयोग को इस बात की जांच करनी थी कि किन परिस्थितियों में बाबरी मस्जिद ढहाई गई। आयोग को 16 मार्च, 1993 तक अपनी रिपोर्ट सौंपनी थी लेकिन उसके बाद लगातार इसकी अवधि बढ़ाई जाती रही। इस आयोग ने 400 बैठकें कीं और भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के बयान दर्ज किए थे।लिब्रहान आयोग ने संसद के बजट सत्र से ऐन पहले अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह को सौंप दी थी। 17 साल की लंबी कवायद, 8 करोड़ रुपये से अधिक का खर्च और 48 बार आयोग का कार्यकाल बढ़ाए जाने के बाद यह रिपोर्ट तैयार हुई है। संभवत: विश्व इतिहास में किसी आयोग के इतने लंबे समय तक चलने की यह अनोखी दास्तान है। सन 92 से अब तक कांग्रेस, एनडीए और फिर यूपीए कई सरकारों के कार्यकाल में आयोग का कार्यकाल बढ़ता रहा। अंतिम बार मार्च 09 में आयोग को तीन माह का समय और दिया गया था।दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का ढांचा ढहाए जाने के बाद देश में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे थे। विध्वंस के संबंध में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह व उमा भारती जैसे शीर्ष भाजपा नेताओं के खिलाफ आपराधिक मामलों में चार्जशीट दाखिल की गई थी। आयोग ने इस मामले की जांच के बाद मंगलवार को अपनी चार खंड की लंबी रिपोर्ट प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सुपुर्द कर दी। इस दौरान गृह मंत्री पी चिदंबरम भी मौजूद थे। चार वर्ष पहले आयोग ने मामले में सुनवाई पूरी कर ली थी। दो वर्ष पूर्व आयोग के वकील अनुपम गुप्ता ने अध्यक्ष से मतभेद के चलते अपने को जांच से अलग कर लिया था।
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