भले ही विधानसभा चुनावों से पहले दिल्ली सरकार ने गरीब तबके के लोगों के लिए 'राजीव रत्न आवास योजना' के तहत 60 हजार फ्लैट तैयार होने व कुछ दिनों में उनके आवंटित होने का प्रचार प्रसार किया था। लेकिन चुनावों के बाद सरकार का वादा हवाई साबित होने पर दिल्ली की लोकायुक्त अदालत ने मामले को गंभीरता से लिया है। लोकायुक्त अदालत में अब तक हुई सुनवाई के दौरान जो तथ्य सामने आएं हैं, उसे आधार मानते हुए शुक्रवार को जस्टिस मनमोहन सरीन ने मुख्यमंत्री शीला दीक्षित तथा दिल्ली सरकार के शहरी विकास विभाग के सचिव को नोटिस किया है। साथ ही विस्तृत ब्योरा मांगा है कि योजना के तहत दिल्ली के जिन अलग-अलग इलाकों में कुल 60 हजार फ्लैट तैयार होने के बारे में जनता के बीच प्रचारित किया था इसके बारे में विस्तृत रिपोर्ट सौंपे।
लोकायुक्त ने सुनीता भारद्वाज नामक एक याचिकाकर्ता की शिकायत पर सुनवाई करते हुए यह नोटिस जारी किया है। शुक्रवार को जब मामले की सुनवाई लोकायुक्त के समक्ष चली तो मुख्यमंत्री की तरफ से पेश अधिवक्ता ने इस बात पर एतराज किया कि सुनवाई के दौरान मीडिया क्यों उपस्थित है। मगर जस्टिस मनमोहन सरीन ने साफ किया है मीडिया पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता और इससे केस का कोई लेनादेना नहीं है। लोकायुक्त द्वारा जारी नोटिस का जबाव 16 दिसंबर तक देने को कहा है। उसी दिन मामले की अगली सुनवाई।
पेश मामले में याचिकाकर्ता सुनीता भारद्वाज जो पेशे से वकील हैं। लोकायुक्त से याची ने एक आरटीआई को आधार मानते हुए मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ शिकायत की थी। अधिवक्ता भारद्वाज ने दिल्ली सरकार से सितंबर माह में आरटीआई के तहत राजीव रत्न आवास योजना के नाम पर दिल्ली के किन हिस्सों में कितनी जमीन फ्लैट बनाने के लिए हासिल किया है? इसकी जानकारी मांगी। वहीं उन्होंने पूछा कि इस योजना के तहत पांच सितंबर तक कुल कितने फ्लैट लोगों को आवंटित किए गए हैं। इसके साथ ही योजना के प्रचार प्रसार में कितना खर्च हुआ? साथ ही याचिकाकर्ता ने इस योजना के तहत सन 2000 से लेकर अबतक क्या कार्रवाई की इसकी भी जानकारी मांगी थी।
इसके जबाव में दिल्ली राज्य औद्योगिक एवं अवसंरचना विकास निगम व अन्य विभागों ने जो जबाव दिए वह चौंकाने वाले थे। डीएसआईआईडीसी के अधिकारियों ने बताया कि राजीव रत्न आवास योजना के तहत दिल्ली भर में सिर्फ 9436 फ्लैट बनकर तैयार हुए हैं। इसमें भी सिर्फ बाहरी दिल्ली स्थित पूठ खूर्द गांव में एक प्लाट इस योजना के तहत फ्लैट निर्माण के लिए दिए गए थे। बाकी अन्य फ्लैट अन्य योजना के लिए स्वीकृत जमीन पर बने हैं। जबकि योजना जिसके तहत 5 अगस्त से 5 सितंबर 2008 के बीच निम्न आयवर्ग के लोगों से आवेदन मांगे गए थे। सौ रूपये के आवेदन पत्र के साथ कुल 2,77,518 आवेदकों ने फ्लैट की चाह में फार्म भरा था। इसके अलावा एमसीडी के स्लम विभाग और शहरी विकास विभाग ने भी आरटीआई के तहत जो जबाव दिया था उसे याचिकाकर्ता संतुष्ट नहीं हुई और इसकी शिकायत लोकायुक्त से करना बेहतर समझा।
लोकायुक्त ने सुनीता भारद्वाज नामक एक याचिकाकर्ता की शिकायत पर सुनवाई करते हुए यह नोटिस जारी किया है। शुक्रवार को जब मामले की सुनवाई लोकायुक्त के समक्ष चली तो मुख्यमंत्री की तरफ से पेश अधिवक्ता ने इस बात पर एतराज किया कि सुनवाई के दौरान मीडिया क्यों उपस्थित है। मगर जस्टिस मनमोहन सरीन ने साफ किया है मीडिया पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता और इससे केस का कोई लेनादेना नहीं है। लोकायुक्त द्वारा जारी नोटिस का जबाव 16 दिसंबर तक देने को कहा है। उसी दिन मामले की अगली सुनवाई।
पेश मामले में याचिकाकर्ता सुनीता भारद्वाज जो पेशे से वकील हैं। लोकायुक्त से याची ने एक आरटीआई को आधार मानते हुए मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ शिकायत की थी। अधिवक्ता भारद्वाज ने दिल्ली सरकार से सितंबर माह में आरटीआई के तहत राजीव रत्न आवास योजना के नाम पर दिल्ली के किन हिस्सों में कितनी जमीन फ्लैट बनाने के लिए हासिल किया है? इसकी जानकारी मांगी। वहीं उन्होंने पूछा कि इस योजना के तहत पांच सितंबर तक कुल कितने फ्लैट लोगों को आवंटित किए गए हैं। इसके साथ ही योजना के प्रचार प्रसार में कितना खर्च हुआ? साथ ही याचिकाकर्ता ने इस योजना के तहत सन 2000 से लेकर अबतक क्या कार्रवाई की इसकी भी जानकारी मांगी थी।
इसके जबाव में दिल्ली राज्य औद्योगिक एवं अवसंरचना विकास निगम व अन्य विभागों ने जो जबाव दिए वह चौंकाने वाले थे। डीएसआईआईडीसी के अधिकारियों ने बताया कि राजीव रत्न आवास योजना के तहत दिल्ली भर में सिर्फ 9436 फ्लैट बनकर तैयार हुए हैं। इसमें भी सिर्फ बाहरी दिल्ली स्थित पूठ खूर्द गांव में एक प्लाट इस योजना के तहत फ्लैट निर्माण के लिए दिए गए थे। बाकी अन्य फ्लैट अन्य योजना के लिए स्वीकृत जमीन पर बने हैं। जबकि योजना जिसके तहत 5 अगस्त से 5 सितंबर 2008 के बीच निम्न आयवर्ग के लोगों से आवेदन मांगे गए थे। सौ रूपये के आवेदन पत्र के साथ कुल 2,77,518 आवेदकों ने फ्लैट की चाह में फार्म भरा था। इसके अलावा एमसीडी के स्लम विभाग और शहरी विकास विभाग ने भी आरटीआई के तहत जो जबाव दिया था उसे याचिकाकर्ता संतुष्ट नहीं हुई और इसकी शिकायत लोकायुक्त से करना बेहतर समझा।
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