केन्द्र और राज्य सरकार भले ही शिक्षा को बढावा देने की कोशिशों में जुटी हों पर राज्य का शिक्षा विभाग तो अक्षर मित्र, गुरूजी व कालीबाई जैसे महत्वपूर्ण पुरस्कारों को भी भुला बैठा है जो साक्षरता के लिए काम करने वालों को दिए जाते हैं।
आदिवासी युवती के नाम पर शुरू किए गए कालीबाई पुरस्कार को बंद करने से तो आदिवासी अंचल से जुडे काबीना मंत्री महेन्द्र जीत सिंह मालवीय भी खफा हैं। अब उन्होंने ऎलान किया है कि उनका जनजाति क्षेत्र विकास विभाग यह पुरस्कार बांटेगा।
साक्षरता दिवस पर नहीं बंटे 1996 में शुरूआत के बाद पहली बार ऎसा हुआ है कि मंगलवार को अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस पर राज्य स्तरीय समारोह में किसी तरह का पुरस्कार नहीं बांटा गया। शिक्षा विभाग ने इन पुरस्कारों के लिए किसी का चयन ही नहीं किया। साक्षरता आंदोलन को बढावा देने वाले प्रेरकों के लिए 1996 में अक्षर मित्र पुरस्कार शुरू किया गया। 2008 तक 303 पुरस्कार बांटे जा चुके हैं और इसकी राशि भी बढाकर दो हजार रूपए की गई थी। 2004-05 से शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली चयनित संस्था को पांच हजार रूपए का 'गुरूजी पुरस्कार' और महिला सामाजिक कार्यकर्ता को 11 हजार रूपए का 'कालीबाई पुरस्कार' शुरू किया गया। गुरूजी पुरस्कार पिछले साल तक बांटा गया, जबकि कालीबाई पुरस्कार 2005 व 2006 में दिया गया। 2007 व 2008 में विभाग को कालीबाई पुरस्कार के लिए कोई पात्र महिला ही नहीं मिली।
बलिदानी युवती कालीबाईडूंगरपुर जिले की कालीबाई को पहली ऎसी महिला माना जाता है कि जिसने साक्षरता के लिए अपनी जान गंवा दी। 1946 में अपने गांव में खुले स्कूल को जमींदार की ओर से बंद करवाने का विरोध करते हुए कालीबाई ने सिपाहियों की गोली खाई। आदिवासी अंचल में कालीबाई का नाम आज भी श्रद्धा से लिया जाता है और उसकी प्रतिमा लगी हुई है।
यदि आदिवासी युवती के नाम पर चल रहा कालीबाई पुरस्कार बंद कर दिया गया है तो बहुत गलत है। शिक्षा विभाग ने यह पुरस्कार नहीं दिया तो अब टीएडी (जनजाति क्षेत्र विकास) विभाग यह पुरस्कार देगा।महेन्द्रजीत सिंह मालवीय, टीएडी व तकनीकी शिक्षा मंत्री
कांग्रेस सरकार की शिक्षा के बारे में कोई सोच ही नहीं है। तभी तो साक्षरता को बढावा देने वाले सारे पुरस्कार बंद कर दिए गए। सरकार ने तो कालीबाई का भी अपमान किया है।घनश्याम तिवाडी, पूर्व शिक्षा मंत्री
सत्यनारायण खण्डेलवाल
आदिवासी युवती के नाम पर शुरू किए गए कालीबाई पुरस्कार को बंद करने से तो आदिवासी अंचल से जुडे काबीना मंत्री महेन्द्र जीत सिंह मालवीय भी खफा हैं। अब उन्होंने ऎलान किया है कि उनका जनजाति क्षेत्र विकास विभाग यह पुरस्कार बांटेगा।
साक्षरता दिवस पर नहीं बंटे 1996 में शुरूआत के बाद पहली बार ऎसा हुआ है कि मंगलवार को अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस पर राज्य स्तरीय समारोह में किसी तरह का पुरस्कार नहीं बांटा गया। शिक्षा विभाग ने इन पुरस्कारों के लिए किसी का चयन ही नहीं किया। साक्षरता आंदोलन को बढावा देने वाले प्रेरकों के लिए 1996 में अक्षर मित्र पुरस्कार शुरू किया गया। 2008 तक 303 पुरस्कार बांटे जा चुके हैं और इसकी राशि भी बढाकर दो हजार रूपए की गई थी। 2004-05 से शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली चयनित संस्था को पांच हजार रूपए का 'गुरूजी पुरस्कार' और महिला सामाजिक कार्यकर्ता को 11 हजार रूपए का 'कालीबाई पुरस्कार' शुरू किया गया। गुरूजी पुरस्कार पिछले साल तक बांटा गया, जबकि कालीबाई पुरस्कार 2005 व 2006 में दिया गया। 2007 व 2008 में विभाग को कालीबाई पुरस्कार के लिए कोई पात्र महिला ही नहीं मिली।
बलिदानी युवती कालीबाईडूंगरपुर जिले की कालीबाई को पहली ऎसी महिला माना जाता है कि जिसने साक्षरता के लिए अपनी जान गंवा दी। 1946 में अपने गांव में खुले स्कूल को जमींदार की ओर से बंद करवाने का विरोध करते हुए कालीबाई ने सिपाहियों की गोली खाई। आदिवासी अंचल में कालीबाई का नाम आज भी श्रद्धा से लिया जाता है और उसकी प्रतिमा लगी हुई है।
यदि आदिवासी युवती के नाम पर चल रहा कालीबाई पुरस्कार बंद कर दिया गया है तो बहुत गलत है। शिक्षा विभाग ने यह पुरस्कार नहीं दिया तो अब टीएडी (जनजाति क्षेत्र विकास) विभाग यह पुरस्कार देगा।महेन्द्रजीत सिंह मालवीय, टीएडी व तकनीकी शिक्षा मंत्री
कांग्रेस सरकार की शिक्षा के बारे में कोई सोच ही नहीं है। तभी तो साक्षरता को बढावा देने वाले सारे पुरस्कार बंद कर दिए गए। सरकार ने तो कालीबाई का भी अपमान किया है।घनश्याम तिवाडी, पूर्व शिक्षा मंत्री
सत्यनारायण खण्डेलवाल
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