Monday, November 17, 2008

प्रमोद महानज की कमी खल रही है वसुंधरा को

राजस्थान की मुख्यमंत्री को बार-बार प्रमोद महाजन याद आ रहे हैं क्योंकि विगत चुनाव में उन्हें प्रमोद महाजन के रुप में एक चतुर सहयोगी एवं कुशल विश्लेषक का साथ था। यह सबको मालुम था कि प्रमोद महाजन का चुनाव मैनेजमेंट काफी कारीगर साबित हुआ था। इस चुनाव में राजे बिल्कुल अकेली पड़ गई हैं क्योंकि भाजपा के राज्यप्रमुख ओम प्रकाश माथुर भी राजे है हितैषी नही। वही भी एक अलग ही गुट के समर्थक हैं। यही कारण है कि वसुंधरा राजे को इस चुनाव में दोहरी भूमिका निभानी पड़ रही है। इस चुनाव में वह सवारी व सवार खुद ही हैं। इसी कारण उन्हें बहुत ही संभल कर चलना पड़ रहा है। सन् 2003 के चुनाव में प्रमोद महाजन राजस्थान ईकाई के संयोजक थे उस चुनाव में राजे को पूर्ण रुप से महाजन द्वारा तैयार रुप रेखा प्राप्त हो गई थी जिसमें थोड़ी बहुत काट छांट कर वसुंधरा राजे ने चुनाव में जबरदस्त सफलता पाई थी। मुख्य रुप से विगत चुनाव में कांग्रेस के विरोधी लहर का फयदा राजे को मिला था। चुनाव के समय महंगाई जैसे मुद्दे को उछालकर एवं राजे ने एसएमएस का सहारा लेकर लोगों को भाजपा के पक्ष में लहर पैदा कर दिया था। पिछले चुनाव के पूर्व महाजन ने अपने साथी के साथ मिलकर एक सर्वे किया था जिसमें समूचे राज्य की स्थिति का मान हो गया था लगभग एक लाख लोगों के बीच एव 40 क्षेत्रों में हुए सर्वे के अनुसार भाजपा ने अपनी कमियां दूर करने का प्रयास किया था जिसका प्रतिफल चुनावी नतीजे के रुप में सामने आया था उस चुनाव में भाजपा महामंत्री महाजन ने महाराष्ट्र से 4 विधायकों एवं करीब 200 कार्यकर्ताओं को राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों में छोड़ रखा था जो आम चर्चा को ध्यान देकर अपनी पार्टी एवं कांग्रेस की कमियों को भी उजागर करते थे। राजे को महाजन द्वारा दी गई यह सब सेवाएं इस चुनाव में नहीं मिल रही है। यही कारण है कि वसुंधरा राजे इस चुनाव में अपने को बहुत असहाय महसूस कर रही है।

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