Sunday, November 30, 2008

शांत मतदाताओं से नेताओ की नींद उडी

चुनावी माहौल हो और शहर में सन्नाटा पसरा हो कहने को यह बात अटपटी लगती है मगर इस बार मतदाता ने साईलैण्ट की पोजीशन लेकर एक बारगी पार्टी नेताओं को भी गहन चिंतन के लिए मजबूर कर दिया है।सामान्यतः चुनावी समर का शंखनाद होते ही शहर में चुनावी गहमा-गहमी की तस्वीर नजर आने लगती है मगर इस बार जबकि मतदान की तिथि आने में महज 4-5 दिन ही बचे है इसके बावजूद शहर में चुनावी रंगत जमती नजर नहीं आ पाई है। पार्टी प्रत्याशी भले ही अपने समर्थन में माहौल बनाने पैदल-पैदल मतदताओं के द्वारे पहुंच रहे है मगर कहीं भी नेताओं के साथ लोगों का कारवा जुड़ने की झलक अब तक नजर नहीं आ पाई है।एक तरह से शहर के मतदाताओं ने इस बार साईलैण्ट पॉजीशन संभाल रखी है। इससे न केवल नेताओं को बल्कि खुफिया तंत्र को भी पता नहीं लग पा रहा है कि वास्तव में शहर की जनता का रूख किस तरफ है ।शहर के मतदाताओं के खामोश बन चुनावी समर में अपना उत्साह नहीं दिखाने से इस बार कोई भी यह कहने की पॉजीशन में नजर नहीं आ रहा है कि इस बार शहर विधान सभा क्षैत्र में चुनावी जीत का अन्तर क्या रहेगा ।मतदाताओं की इस चुप्पी ने एक तरह से नेताओं की निन्द उड़ा रखी है कि तुफान आने के पहले की इस शांति से इस बार कहीं चुनावी समीकरण गड़बड़ा नहीं जाए।शहर के मतदाताओं के साईलैण्ट बने रहने से ही हाल ही में टाउनहाल में भाजपा प्रत्याशी गुलाब चन्द कटारिया के समर्थन में आयोजित भाजपा के राष्ट्रीय नेता लालकृष्ण आडवाणी की चुनावी सभा में शहर के एक हजार लोग भी नजर नहीं आ पाए । जबकि यह सभा बीच शहर में रखी गई थी ।

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