Thursday, January 29, 2009

नकारने वाली याचिका पर सहमति नहीं देगी कांग्रेस

अगर चुनाव में खड़ा कोई उम्मीदवार मतदाताओं को पसंद नहीं है तो उसे नकारने का हक दिए जाने के पक्ष में केंद्र सरकार नहीं है। बुधवार को केंद्र सरकार ने इस तरह का हक मांगने वाली याचिका का सुप्रीम कोर्ट में जम कर विरोध किया और कहा कि इसकी कोई जरूरत नहीं है। चुनाव आयोग ने एक बार फिर मतदाताओं को यह अधिकार दिए जाने की वकालत की।सुप्रीम कोर्ट में पिछले पांच वर्षो से `पीपुल्स यूनियन फार सिविल लिबर्टीज' की एक याचिका लंबित है। इस संस्था ने याचिका में मतदाताओं को उम्मीदवारों को नकारने का हक दिए जाने की मांग की है। बुधवार को इस पर बहस शुरू हुई।केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सालीसिटर जनरल अमरेन्द्र शरण ने याचिका का विरोध किया और उसकी सुनवाई के औचित्य पर भी सवाल उठा दिया। उन्होंने कहा कि यह रिट याचिका अनुच्छेद 32 के तहत दाखिल की गई है, लेकिन इसमें उठाया गया मुद्दा मौलिक अधिकार के हनन का नहीं है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट इस पर सुनवाई नहीं कर सकता है। मत देने का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं, बल्कि नागरिकों को प्राप्त विधायी अधिकार है। वैसे भी याचिका स्वीकार किए जाने लायक नहीं है, क्योंकि इसमें की गई मांग अव्यावहारिक है। उन्होंने संविधान समीक्षा आयोग की राय को उद्धृत करते हुए याचिका के अव्यावहारिक होने के कारण भी गिनाए। शरण ने नियम 49 (ओ) को असंवैधानिक घोषित किए जाने की पीठ की टिप्पणी पर कहा कि यह नियम संविधान सम्मत है। यह मौजूदा कानून के खिलाफ नहीं है। इसमें व्यवस्था है कि यदि कोई व्यक्ति अपना मत नहीं देना चाहता है तो वह चुनाव अधिकारी के पास जाकर अपनी इच्छा बता सकता है और चुनाव अधिकारी उसकी राय को एक रजिस्टर में दर्ज कर हस्ताक्षर कराता है। अनुच्छेद 128 के तहत चुनाव अधिकारी उस राय को गोपनीय रखने के लिए बाध्य है। अन्यथा उसे तीन महीने तक की कैद हो सकती है। उम्मीदवार को नकारने की राय चुनाव अधिकारी को बताए जाने से मत की गोपनीयता के अधिकार का हनन होता है। चुनाव आयोग की वकील ने नकारात्मक अधिकार की पैरवी करते हुए कहा कि आयोग यह अधिकार मतदाताओं को दिए जाने के संबंध में केंद्र सरकार को पहले भी दो-तीन बार लिख चुका है।

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