Saturday, January 24, 2009

दिल्ली व राजस्थान राज्यों की समीक्षा दो टीमें

बीते साल के आखिर में हुए छह राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों में भाजपा को सबसे ज्यादा धक्का दिल्ली व राजस्थान में ही लगा था। केंद्रीय नेतृत्व ने दोनों राज्यों की अपने स्तर पर समीक्षा करने के साथ दो-दो नेताओं की दो टीमें दोनों राज्यों की समीक्षा के लिए भेजी थीं। सूत्रों के अनुसार इन टीमों ने दोनों राज्यों के स्थानीय नेताओं को आपसी कलह के लिए कड़ी फटकार लगाते हुए लोकसभा चुनाव के लिए नसीहत भी दी थी। बाद में अपनी रिपोर्ट से केंद्रीय नेतृत्व को भी अवगत करा दिया था। लेकिन दोनों राज्यों ने इससे कोई सबक सीखा हो ऐसा नजर नहीं आ रहा है। सबसे ज्यादा समस्या राजस्थान से आ रही है। वहां पूर्व उप राष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत के तेवरों से तो समस्या है ही, प्रदेश के नेताओं के आपसी झगड़े भी खत्म होने का नाम नहीं ले रहे।दिल्ली में हालात सुधारने के लिए भाजपा अपने प्रमुख नेता राष्ट्रीय महासचिव अरूण जेटली को नई दिल्ली सीट से चुनाव मैदान में उतार सकती है, लेकिन बाकी सीटों के लिए उसके पास वही पुराने घिसे-िपटे नाम ही हैं। जेटली चुनाव लड़ते हैं तो उनका पहला लोकसभा चुनाव होगा। ऐसे में उन्हें पूरे क्षेत्र में जाना ही पड़ेगा। उन पर चुनाव प्रबंधन, विभिन्ना राज्यों के उम्मीदवार तय करने से लेकर गठबंधन संभालने तक की जिम्मेदारियां हैं। हालत यह है कि लोकसभा चुनाव के लिए भी पार्टी जिस राज्य में थोड़ा भी उलझती है, वहां जेटली को लगा दिया जाता है। ऐसे में उनके पास जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, दिल्ली व पंजाब जैसे छह राज्यों की जिम्मेदारी है। उनके पास पार्टी के लिए संसाधन जुटाने से लेकर विज्ञापन व मीडिया को संभालने का भी अतिरिक्त दायित्व है। अगले सप्ताह होने वाली केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में पार्टी उत्तर प्रदेश के लिए दूसरी सूची जारी करेगी। इसमें उसका इरादा चालीस उम्मीदवार तय करने का है। इसके अलावा मध्य प्रदेश, दिल्ली, कर्नाटक व जम्मू-कश्मीर के लिए भी उम्मीदवार तय किए जाएंगे।

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