Wednesday, December 10, 2008

लोतंत्र में मतदाता सबसे ऊंचा

चौरासी के पूर्व विधायक सुशील कटारा ने जनता जनार्दन का जनादेश को सिरोधार्य मानते हुए अपनी हार स्वीकार की और कहा कि वे इस क्षेत्र के चहुंमुखी विकास के लिए सतत प्रयास करते रहेगे ताकि विकास को जो गति प्रदान की थी, उसे अनवरत जारी रखा जा सकें।कटारा ने यह बात मंगलवार को 13 वीं विधान सभा चुनावों के परिणाम में डूंगरपुर जिले से चारों विधान सभा सीटों पर भाजपा की हार के बाद अपने क्षेत्र चौरासी की जनता के प्रति आभार जताने तथा चुनावों में रही खामियों के बारे में बताने हेतु बुलाई गई पत्रकार वार्ता में कही।उन्होंने कहा कि विगत 5 सालों में उनके विधायक मद से तथा राज्य की विभिन्न योजनाओं के माध्यम से चौरासी विधान सभा क्षेत्र के वाशिंदो के लिए हर क्षेत्र में काम किया तथा अधिकाधिक ग्रामीणों को फायदा पहुंचाने के उदेश्य से बहुयामी योजनाओं को लागू करवाया। और इसी का परिणाम रहा कि क्षेत्र की जनता ने उन्हे पूरा आशीर्वाद दिया। उन्होने अपनी हार स्वीकार करते हुए कहा कि लोकतंत्र में मतदाता ही सर्वोपरि होता है। लेकिन विधानसभा चुनावों की घोषणा के साथ ही जिस तरह उनके बढते कद को गिराने के उदेश्य से संगठन के ही लोगों ने मुहिम चला दी तथा उसमे सत्ता के कुछ लोगों का भी ऐसे तत्वों को आगे लाने मे सहयोग रहा। यही नहीं उम्मीदवारी के दौरान शक्ति प्रदर्शनों को जिला स्तर के संगठन पर बैठे लोगों ने मौन स्वीकृति देकर भाजपा के बढते स्तर को गिराने का काम किया। साथ ही इस जिले में निवासरत सामान्य व ओबीसी वर्ग भी जनजाति की तरह ही आर्थिक विषमताओ में घिरा हुआ है। ऐसे में इस वर्ग को जनजाति के लाभ के अलावा कुछ श्रेणियो में नौकरियों के लिए लाभ मिलता था। वह समाप्त हो गया। लेकिन संगठन व सत्ता में वरिष्ठ पदों पर बैठे नेताओं ने इस वर्ग की पूरी तरह उपेक्षा की। उनके आन्दोलन के दौरान उन्होंने स्वयं ने इस संबंध में पहल की थी लेकिन इस जिले के सामान्य व ओबीसी वर्ग को संतुष्ठ करने में संगठन पूरी तरह विफल रहा कि आखिरकार ऐसे क्या कारण थे। जिसके चलते इस वर्ग को इस क्षेत्र में ंिमल रही यह विशेष सुविधा बंद कर दी गई। साथ ही सत्ता के दौरान संगठन में कुछ नेताओं ने अपनी मनमर्जी से आम जन को खासा नाराज किया। तथा स्थानान्तरण नीति को लेकर संगठन की काफी किरकिरी भी हुई। कटारा ने बिना किसी का नाम बतायें आरोप लगाया कि इन चुनावों में बागी को तैयार करने के लिए जनजाति मद से लगभग ढाई करोड का काम भी उसे दिया गया था और इस कदर आर्थिक रूप से सक्षम बनाया गया कि वह चुनावों में भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी को ही आंख दिखा सकें। यही नहीं उसे बागी प्रत्याशी से हटाने के लिए भी प्रयास नहीं हुए। यहां तक की संगठन ने निष्कासन की कार्यवाही भी मुख्यमंत्री की सभा के दौरान चौरासी क्षेत्र के कार्यकर्ताआंð द्वारा विरोध किया तब जाकर उसे निष्कासित किया गया। तब तक काफी देर हो चुकी थी। उन्होंने कहा कि वे अपनी हार के लिए आमजनता
को दोषी नहीं मानते और इसी के चलते वे एक सप्ताह के भितर ही मतदाताओं से पुन: रूबरू होकर आगामी 5 सालों के लिए उनके दुख दर्दे में भागीदारी निभायेंगे। साथ ही उन्होने कहा कि संगठन में फेर बदल की काफी आवश्यकता है। ताकि भाजपा के गिरते जनाधार को रोका जा सकें। साथ ही सामान्य वर्ग व जनजाति वर्ग में जो विभेद करने का प्रयास किया था। उसे भी पाटा जायेगा। वे इस संबंध में शीघ ही वसुन्धरा राजे प्रदेशाध्यक्ष ओम माथुर सहित वरिष्ठ जनों को भी इस जिले की वस्तुस्थिति से रूबरू करायेंगे।

1 comment:

Unknown said...

भारत में जो लोकतंत्र है, उसमें नेता सब से ऊंचा होता है. नेता जी ने जो भी कहा है वह अगर जीत गए होते तो शायद नहीं कहते. "जनता जनार्दन का जनादेश सिरोधार्य" यह सब शब्दों का हेर फेर है, इस में वास्तविकता न के बराबर है.

जनता चुनाव में वोट डालती है, पर नेताओं के लिए, अपने लिए नहीं. जनता के वोट से नेता जीतते हैं, जनता नहीं. नेता का नाम और लेबल अलग-अलग हो सकता है, पर जीतता नेता ही है, या यह नेता या वह नेता, जनता कभी नहीं जीतती. चुनाव एक माध्यम है नेता जी को अपनी सत्ता प्राप्त करने का. उस के लिए वह जनता का प्रयोग करते हैं, की भाई आओ और वोट डालो, बताओ किस से शासित होना पसंद करोगे आने वाले पॉँच साल के लिए? जनता जाती है और पाँच साल के लिए अपने शासक के नाम का बटन दबा आती है.