Saturday, December 6, 2008

किरण माहेश्वरी को डर भीतरघात का तो जोशी डर रहे है गुटबाजी से

इस बार विधानसभा चुनाव में शुरूआत से लेकर मतदान तक और उसके बाद भी मतदाताओ के खामोश रहने से नेताऒं की चिन्ताएं बढ़ गयी है। मतदान के बाद रूझान का पता लगाना भी मुश्किल सा हो गया है।वर्षें बाद परिसिमन से सामान्य हुई राजसमन्द जिला मुख्यालय की सीट पर प्रमुख दोनों ही दलो कांग्रेस और भाजपा ने चुनाव-प्रचार में खर्चा करने में कोई कमी नहीं रखी। मतदान के बाद कांग्रेस एवं भाजपा से टिकट के अन्य दावेदार रहे नेताओ ने तो अगली बार स्वप्न में भी दावेदारी का ख्याल करना छोड दिया। इतनी बड़ी राशि चुनाव प्रचार में खर्च करने के बावजूद जीत की कोई गारन्टी नहीं है। इस बार के चुनाव ने तय कर दिया है कि दोनों ही दलों को खर्चे की राशि के अनुरूप ही उम्मीदवार ढूंढना होगा।राजसमन्द से भाजपा ने मौजूदा सांसद एवं महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती किरण माहेश्वरी को उम्मीदवार घोषित कर माहौल भाजपा के पक्ष में कर लिया लेकिन मतदान से महज तीन दिन पूर्व कांग्रेस प्रत्याशी हरिसिंह राठौड भी टक्कर की स्थिति में आ गए ।कांग्रेस में एकाएक जान आ जाने से माहौल में एकतरफा भाजपा का हव्वा समाप्त हो गया और कांटे की टक्कर होने की बात भाजपा कार्यकर्ता भी कहने लगे। भाजपा और कांग्रेस दोनो ही प्रत्याशियों को भीतरघात का खतरा बराबर रहा इसलिए दोनो ओर से महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां अपने भरोसे के नेताऒं को ही सौंपी गयी।भाजपा प्रत्याशी किरण माहेश्वरी का राजनीतिक कद बढा होने से कांग्रेस ने स्थानीय व्यक्ति के फार्मूले पर जोर दिया वहीं जातीवाद भी बराबर चला। राजपूतों ने कांग्रेस को तो माहेश्वरी, जैन ने भाजपा को समर्थन दिया।राजसमन्द पालिका क्षेत्र में भाजपा की स्थिति मजबूत दिखाई दी वहीं ग्रामीण क्षेत्रांð में कांटे की टक्कर रहीं। कहीं कांग्रेस तो कहीं भाजपा का बोलबाला था। ऐसे में इस सीट पर किसी भी प्रत्याशी की जीत होगी तो जीत के मतें का अन्तराल बहुत कम रहेगा। सत्तर प्रतिशत के लगभग मतदान होने से कांग्रेस इसे सत्ता विरोधी लहर बताकर खुश हो रही है तो भाजपा इसे वसुन्धरा सरकार के विकास कार्यें की लहर बता रही है।जिले की कुम्भलगढ-आमेट विधानसभा सीट भी इस बार चुनाव प्रचार में खर्चे की राशि में राजसमन्द से कहीं कम नहीं रही है। कुम्भलगढ से भाजपा प्रत्याशी एवं जल संसाधन राज्यमंत्री सुरेन्द्र सिंह राठौड ने अपना सम्मान बरकरार रखने के लिए इस बार चुनावें में एड़ी चोटी का जोर लगा दिया। कांग्रेस ने इस बार नए चेहरे परशुराम महादेव ट्रस्ट के अध्यक्ष एवं स्थानीय नेता गणेश सिंह परमार को मैदान में उतारा। परमार के लिए सुखद बात यह रही कि लावासरदारगढ आमेट निवासी पूर्व न्यायाधीश डॉ बसन्तीलाल बाबेल ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लडकर भाजपा को आमेट क्षेत्र में उलझाए रखा वहीं पिछले चुनाव में राठौड के सारथी रहे कुन्दनसिंह सौलंकी ने निर्दलीय प्रत्याशी के समर्थन में जमकर चुनाव प्रचार किया और चुनावी खर्चे में भी कोई कमी नहीं रखी। कुम्भलगढ में हार-जीत का फैसला निर्दलीय प्रत्याशी डॉ बाबेल को मिलने वाले मतों पर टिका है। फिर कांग्रेस ने जिसे प्रत्याशी बनाया है उस जाति खरवड, चदाणा, राजपूत समाज के वोट बड़ी संख्या में है। कहते है कि ``जात से जात गंगा जी नहीं जावे'' और यदि इस चुनाव में जात से जात गंगा जी चली गयी तो सिंचाई राज्यमंत्री राठौड की जीत में रोड़े खड़े हो जाएंगे। हालांकि खरवड चदाणा जाति के मतदाताऒं में सेंध लगाने के भी भाजपा ने प्रयास किए थे।भीम-देवगढ विधानसभा क्षेत्र में सत्ता विरोधी लहर साफ दिखाई दी। इस सीट से कांग्रेस ने अपने परम्परागत उम्मीदवार लक्ष्मण सिंह रावत को मैदान में उतारा है जो मौजूदा विधायक हरिसिंह रावत पर हावी रहे है। देवगढ-भीम में भाजपा की गुटबाजी व भीतरघात से कांग्रेस को लाभी होगा वहीं देवगढ के कैलाश पोखरना के निर्दलीय चुनाव लड़ने से भी भाजपा का वोट बैंक प्रभावित हुआ है। कांग्रेस प्रत्याशी लक्ष्मणसिंह रावत ने पिछला चुनाव हारने के बाद अपने कड़े रूख में परिवर्तन करते हुए संगठन में जबरदस्त पकड रखी वहीं सत्तासीन होने के बाद हरिसिंह रावत भाजपा संगठन व कार्यकर्ताओ से दूर होते गए यही नहीं विरोधियों की संख्या भी बढा ली।नाथद्वारा विधानसभा क्षेत्र पर पूरे प्रदेश की राजनीतिक उथल-पुथल टिकी है । कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष डॉ सीपी जोशी एवं भाजपा प्रत्याशी कल्याणसिंह चौहान के बीच रौचक मुकाबले के आसार है।कांग्रेस प्रत्याशी डॉ सीपी जोशी को कार्यकर्ता बतौर मुख्यमंत्री के रूप में पेश कर रहे हैं जिससे भाजपा प्रत्याशी कल्याण सिंह चौहान का राजनीतिक कद बहुत छोटा दिखाई देने लगा है वहीं कांग्रेस इस सीट को जीती हुई मान रही है। इधर भाजपा परिसिमन के बाद रेलमगरा क्षेत्र से जुडी पंचायतें तथा राजपूत वोटो के भरोसे हैं। इन अधिकांश पंचायतें में भाजपा का बोलबाला रहा है। वैसे भी भाजपा के पास सीपी जोशी के सामने कल्याण सिंह चौहान से बेहतर कोई उम्मीदवार नहीं था।

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