Tuesday, December 2, 2008

दूध के धुले नहीं है कटारिया

उदयपुर विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी गुलाब चंद कटारिया उदयपुर को दुनिया का नंबर 1 शहर बनाने का नारा दिया है। किस लिहाज से नंबर एक शहर बनाना चाहते है। पर्यटन की दृष्टि से, उद्योग की दृष्टि से, विकास की दृष्टि से या किसी और दृंिष्ट से। .....यह नहीं पता लेकिन बस बनाना है नंबर वन । बिना किसी योजना और लक्ष्य निर्धारित किए वे इसे नंबर वन बनाने का दावा कर रहे है। असल में उदयपुर को पर्यटन की दृष्टि से नंबर वन बनाया जा सकता है लेकिन पूरे 5 साल तक सत्ता में मंत्री रहकर भी उदयपुर में पर्यटन की संभावनाओं को विकसित करने के बारे में इनके पास कोई ठोस योजना नहीं है। उदयपुर का पर्यटन यहां की सुंदर झीलों, पहाड़ियों और ऐतिहासिक धरोहर पर ही निर्भर है। झीलों के संरक्षण की क्या योजना है? इनके प्राकृतिक स्वरूप को कायम रखने के लिए क्या प्रयास है ? असल में किसी भी राजनेता को इसकी समझ नहीं है। झीलों की प्राकृतिक छटा को धीरे-धीरे खत्म किया जा रहा हैं। झील पेटे में हो रहे निर्माण और ग्रीन बेल्ट में विकसित हो रही बेतरतीब आवासीय बस्तियां इस शहर की बर्बादी का ही कारण बनेंगे। झीलों के किनारे सक्षम व्यक्ति जयपुर में जाकर किसी भी तरह का निर्माण करने की मंजूरी ला सकता है। झील का सीना छलनी कर उसमें कोई भी कारतामीर या सड़क का निर्माण कर सकता है। और ऐसा करने वाले वे ही लोग है जो चुनाव में बड़ा चंदा देते है। शहर में प्रचार सामग्री और जो चुनावी जलसे हो रहे है वह इन्ही लोगों की बदौलत है। फिर जब उन्हें झील का कोई किनारा पसंद आ जाए तो नेताओं की क्या औकात है उसे रोकने की।झीलों के बीच बने टापुओं एवं झीलों की पाल पर अवैधानिक गतिविधियां और व्यावसायिक क्रिया कलाप करने वाले लोग इतने सक्षम है कि कोई अफसर उन्हें रोकना चाहे तो उसे हटा दिया जाता है। उसकी जांच शुरू करवा दी जाती है। आखिर सारे अफसर दूध के धुले तो है नहीं । जो कुछ करने की हैसीयत रखता है उसे पहले ही ऐसी जगहों से दूर रखा जाता है।और तो और गुलाब कटारिया के संबंधी भी अब झीलों के किनारे अवैध कारतामीर करने में पीछे नहीं है । शहर के नियोजन का दम भरने वाले कटारिया से कोई पूछे कि किस तरह उनके फाइनेंसर ताराचंद जैन ने एक नाले पर अवैध निर्माण कर उसे रोक दिया और बाढ़ आने पर आसपास क ðक्षेत्र जल प्लावित हो गए। जनता और मीडिया के लाख उलाहने के बावजूद ढीठ की तरह आज भी जमे हुए है। छोटे छोटे स्वार्थ से बड़ी बदनामी तक झेलने वाले ऐसे लोगों से क्या उम्मीद की जा सकती है शहर विकास के लिए कुछ कर गुजरने की ।तालाब पेटे में अवैध बस्तियां बसा दी गई। क्या हुआ उनका? बड़ी के ग्रीन बेल्ट में और सहेलियों की बाड़ी के ग्रीन बेल्ट में किनके बंगले बने है। कई तो अवैध है और कई को आपने अपने हाथ में कानून होने से नियमन कर वैध कर दिया। कल गुलाब बाग को भी किसी कंपनी को ठेके पर या निर्माण के लिए देकर नई उपलब्धि में नहीं जोड़ दिया जाय। लक्ष्मी विलास की अरबों की संपत्ति को औने पौने में बेचने वाले कौन लोग है?विकास व नियोजन की बात की जाय तो नगर विक ास प्रन्यास का जिक्र जरूर होगा। कटारिया के भाजपा शासन में दो हजार बीघा जमीन की 90 बी की गई । यह वह जमीन थी जिस पर दक्षिण विस्तार योजना एवं अन्य योजना के नाम से अवाप्ति के नोटिस निकलवाए थे। किसानों को जिनमें ज्यादातर अन्य पिछड़ा वर्ग या जनजाति क ðहैं, उन्हें अवाप्ति के नाम से डराकर जमीन भूमि दलालों को बेचने के लिए बाध्य किया। बाद में उसी जमीन की भूमिदलालों को 90 बी में नियमन कर लाभ पहुंचाया। इस प्रकार की जमीनों में क्या कटारिया के नजदीकी व चहेते भूमि व्यवसायी नहें है? यही वजह है कि साधारण निष्ठावान कार्यकर्ता आज कटारिया के साथ नहीं है, वह या तो भीण्डर में है, या मावली में, या राजसमंद में या उदयपुर ग्रामीण में है। अगर कटारिया के साथ है तो वह ज्यादातर चापलूसों और सत्ता की आड़ में धन अर्जित करने वाले दलालों की जमात ही। नगर विकास प्रन्यास में कटारिया के वफादार सिपाही मांगीलाल जोशी ने प्रत्यक्ष रूप से सड़कों में भष्टाचार के मामले उठाए । क्या उन सड़कों का भुगतान रोका या वापस बनवाया ? क्यों नहीं किया ? क्या इसमें मिलीभगत नहीं थी? या अपनी ही पार्टी में कटारिया की पकड़ नहीं थी?झीलों को प्रदूषण मुक्त रखने ठोस कचरा निस्तारण संयंत्र, पहाड़ियों पर वृक्षारोपण, खेल सुविधाओं का विकास, उच्च न्यायालय की बैंच, ये सब बातें कटारिया के वादों में हर समय रहती है। अब तक क्या किया कटारिया ने । सिर्फ सपने दिखाने से ही शहर नंबर 1 हो जाएगा।कटारिया जब नगर परिषद व नगर विकास प्रन्यास के कार्यों को अपनी उपलब्धियों में गिना सकते है तो इनसे वे सब काम क्यों नहीं करवा पाए जो उन्होंने भावी योजनाओं में गिनाए हैं ? कटारिया को तो नगर विकास प्रन्यास की बैठकों में भी विधिवत आमंत्रित नहीं किया गया। खुद की सरकार में, खुद के बोर्ड में ही तालमेल नहीं रहा । यह प्रशासकीय एवं प्रबंधन की असफलता नहीं तो और क्या है?आयड़ नदी के सौन्दर्यकरण की बात करते है। क्या इसमें गिरने वाले गंदे नालों को रोकने के लिए कोई योजना बनाई है । कटारिया झीलों के संरक्षण की बात करते है। क्या उन्हें पता है झीलों का रखरखाव, इनकी भूमि की देखरेख, पानी का वितरण और मालिकाना हक किसके पास है ? क्या झीलों से संबंधित विभागों में आपस में तालमेल है? सिंचाई विभाग की अनुशंसाओं को कितना लागू किया। क्यों नहीं झीलों के विकास के लिए एक प्राधिकरण या बोर्ड बनाया ? इसमें भी करोड़ों का बजट आ सकता है और अपने एक आदमी को इसका अध्यक्ष बनाकर उपकृत किया जा सकता है।नियोजित विकास की बात करें तो मुद्दा बहुमंजिला इमारतों का भी उठेगा। नगर परिषद में कटारिया के चहेते अवैध निर्माणों की फाइलें जांच के नाम पर दबाकर बैठे रहे। सरेआम गलत निर्माण हुए और कटारिया के पट्ठों ने कहा कि ये फाइलें गोपनीय है। जरूर होगी गोपनीय क्योंकि इनमें कटारिया के चहेते बिल्डरों, दानदाताओं और फाइनेंसरों का लेखाजोखा जो है। कटारिया के चेले तो उनके भी गुरू निकले । कटारिया अपनी पार्टी के लोगों को भी मैनेज नहीं कर पाते है लेकिन निर्माण समिति के अध्यक्ष प्रमोद सामर ने तो परिषद में कांगेसी पार्षदों जिनमें के. के. शर्मा प्रमुख है तक को मैनेज कर लिया। आखिर इन कांग्रेस के पार्षदों को भी बेचारों को विधानसभा चुनाव लड़ने की लालसा रहती है। इन्हें भी भूमि व भवन व्यवसाय से होने वाली नाजायज आय से अपना हिस्सा निकालने का रास्ता मिल गया है। गृहमंत्री के रूप में कटारिया के कार्यकाल में कितने गोलीकाण्ड हुए यह रोज कांग्रेस वाले विज्ञापनों में बता रहे है। इस लिहाज से तो कटारिया ने इस शहर का नाम, इस शहर के प्रतिनिधि के नाते विश्व में नंबर वन कर ही दिया है।गोलीकाण्डों में जिन घरों के चिराग बुझे है जरा उन साधारण लोगों से भी जाकर पूछिए कि कटारिया एक गृहमंत्री के रूप में कितने सफल रहे है । यह सवाल एक साधारण व्यक्ति ही कर सकता है। लोग कहते है कि खून से सने है भाजपा सरकार के हाथ। जिम्मेदारी किसकी है?

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