Monday, December 15, 2008

बांसवाडा जिले की नजर लगी है गहलोत के मंत्रीमण्डल पर

बांसवाडा जिले की नजर राज्य में गहलोत द्वारा सत्ता सम्हालने के बाद अब मंत्री मण्डल पर सभी की नजरें लगी हैं कि पहली खेप में क्या बांसवाडा से किसी को जगह मिलेगी? यहां से पार्टी टिकिट पर तीन व एक बागी इन्काई विधायक चुना गया है और सभी के पास मंत्री पद पाने की योग्यता सम्बन्धी अपनी-अपनी दलीलें हैं। पहले नम्बर पर जिला प्रमुख महेन्द्रसिंह मालवीया का नाम चर्चा में है। वे एनएसयुआई के जमाने से ही छात्र नेता के रूपमें कांग्रेस से जुडे है व पांच साल आनन्दपुरी के प्रधान व दस साल जिला प्रमुख के पद पर काम करने के कारण उन्हें प्रशासनिक द्रष्टि से सबसे उपयुक्त माना जा रहा है। उन्होंने जद के तीन बार विधायक रहे जीतमल खांट को सर्वाधिक 44,689 मतों से पराजित करने का रिकार्ड भी कायम किया है।दूसरे गढी से इन्का विधायक श्रीमती कांता गरासिया युवा कांग्रेस की प्रदेश उपाध्यक्ष हैं तथा शिक्षित, युवा इन्का व आदिवासी महिला होने के आधार पर वे भी मंत्री पद के लिए हक बता सकती हैं। उनके समर्थन में कांग्रेस का एक बडा तबका है। इसके अलावा बांसवाडा सीट से निर्वाचित अर्जुन बामनिया इस आधार पर दावा कर रहे हैं कि उन्होंने आजादी के बाद से अभेद्य जनता दल के दानपुर गढ पर दूसरी बार लगातार जीत दर्ज कर राजनीतिक परिपक्वता का सबूत दिया है और जद को पछाड दिया है। तीसरे घांटोल से निर्वाचित बागी पूर्व इन्का विधायक नानालाल निनामा पूर्ण बहुमत से कुछ पीछे रह गई कांग्रेस को अपनी सरकार बनाने में मदद देने की एवज में लालबत्ती का तोहफा प्राप्त करना चाहेंगें। टिकिट नहीं मिलने के बाद भी अपनी पुरानी सीट पर निर्दलीय रूपसे जीत दर्ज कर उन्होंने क्षेत्र में अपनी पकड टिकिट वितरण में लापरवाही का प्रमाण दे दिया है। देखना है कि आला कमान से खुली छूट लेकर लौटे अशोक गहलोत बांसवाडा से किसे अहमियत देतें हैं अथवा बाद में देखेंगें।यहां कुछ राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि अब लोकसभा चुनाव भी नजदीक हैं। इसे देखते गहलोत व कांगेस आलाकमान अभी से सभी को मंत्रिमण्डल में लेकर दूसरे लोगों को नाराज नहीं करेंगें व अभी इस मामले को लालीपाप देकर लटकता ही रखेंगें। ध्यान देने की बात है कि राज्य में कांग्रेस को जो सीटें मिली हैं वे किसी लहर का नतीजा नहीं है, बल्कि भाजपा की अन्दरूनी भीतरघात का नतीजा है। यह बात कांग्रेस आलाकमान समझ रहा है। इसके बावजूद कांग्रेस पूर्ण बहुतम से वंचित रह गई। 33 सीटों पर तो भाजपा के बागी ही खडे थे जिनसे उसे काफी नुकसान उठाना पडा। अन्य सीटों पर भीतरघात भी हुआ। अभी मंत्रिमण्डल के गठन को लेकर उत्पन्न कोई विवाद व मनमुटाव लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पर विपरित असर डाल सकता है।

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