Wednesday, December 10, 2008

गुलाबचंद कटारिया ने डूबा दी वसुंधरा और ओम माथुर की लुटिया

मेवाड़ में भाजपा की जिस तरह दुर्गति हुई है उससे साफ जाहिर है कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया और भाजपा प्रदेशाध्यक्ष ओमप्रकाश माथुर को मात देने के लिए विरोधियों ने पार्टी की बलि दे दी।मेवाड़ में जहां पूर्व गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया की चली वहां पर तो पूरी तरह भाजपा का सफाया करवा दिया। सिवाय अपनी सीट बचाने के अलावा शेष जगह पर भाजपा का भट्टा बिठवाकर वसुंधरा व माथुर विरोधी यही चाहते है कि चाहे इस बार सरकार चली जाए लेकिन दोनों नेताओं का भी इसी बहाने पत्ता साफ हो जाए। भाजपा के शीर्ष नेता राजस्थान में हार का कारण टिकटों के गलत बंटवारे को मान रहे है। इसका तात्पर्य यही है कि टिकटों के बंटवारे में वसुंधरा एवं माथुर विरोधी नेता पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत, पूर्व मंत्री ललित किशोर चतुर्वेदी, कैलाश मेघवाल, गुलाबचंद कटारिया आदि की बिल्कुल नहीं चली।अपने समर्थकों को टिकट नहीं मिलने के कारण वसुंधरा व माथुर विरोधी नेता काफी नाराज थे। अगर वसुंधरा की चलती तो कटारिया का भी टिकट कटवा देती। असंतुष्ट नेताओं ने भी इसी वजह से वसुंधरा को सबक सिखाने की ठान ली और अपनी सीट के अलावा कहीं और ध्यान भी नहीं दिया। इसके अलावा वसुंधरा व माथुर के पसंदीदा प्रत्याशियों को भीतरघात कर हरवा दिया। टिकटों के बंटवारे में तो पूरी तरह माथुर की भी नहीं चली है लेकिन प्रदेशाध्यक्ष के नाते उनके सामने मुख्यमंत्री की जिद मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। इस लिहाज से माथुर भी वसुंधरा की प्रदेश से विदाई चाहते हैं लेकिन पार्टी की कीमत पर नहीं।मेवाड़ में कटारिया अपनी सीट के अलावा बड़ी सादड़ी को छोड़कर कहीं चुनाव प्रचार के लिए नहीं गए। सारी ताकत व पैसा उदयपुर शहर में ही झोंका गया। झाड़ोल की सीट कांग्रेस का बागी उम्मीदवार मैदान में होने से तथा भाजपा देहात जिलाध्यक्ष गुणवंत सिंह झाला की मेहनत के कारण मिली। सांसद महावीर भगोरा ने भी झाड़ोल में मेहनत की। राजसमंद की सीट महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष व सांसद किरण माहेश्वरी के कारण मिली। कुंभलगढ़ के प्रत्याशी सुरेन्द्र सिंह राठौड़ मुख्यमंत्री के नजदीकी होने के कारण उनके विरूद्ध बागी लोगों को खुलेआम मैदान में उतार दिया और अंत में कांग्रेस को वोट डलवाए। हालांकि बागी प्रत्याशी की कुंभलगढ़ में जमानत जब्त हुई लेकिन कटारिया समर्थक अपने मकसद में कामयाब हो गए।प्रतापगढ़ में नंदलाल मीणा की व्यक्तिगत छवि के कारण सीट भाजपा को मिली।धरियावद और उदयपुर ग्रामीण की सीटों से आखिर में कटारिया समर्थकों ने हाथ खींच लिए जिसके कारण जीती हुई सीटें गंवानी पड़ी। आदिवासी अंचल में भाजपा का प्रचार तो भगवान भरोसे चल रहा था।आदिवासी क्षेत्र की सीटों पर प्रचार की कोई रणनीति जानबूझ कर नहीं बनाई गई। जो व्यक्ति प्रचार में उपयोगी साबित हो सकते थे उनकी जानबूझकर उपेक्षा की गई। अनुसूचित जनजाति आयोग के उपाध्यक्ष चुन्नीलाल गरासिया उदयपुर ग्रामीण की सीट निकाल सकते थे उन्हें टिकट से वंचित किया गया। उन्हें प्रचार का कोई जिम्मा नहीं दिया । वैसे भी भाजपा के बड़े नेता नहीं चाहते थे कि कोई आदिवासी नेता पार्टी में अपना कद बढ़ाए जिससे उनकी पूछ खत्म हो जाए।आदिवासी अंचल में पार्टी को मुट्ठी में रखने के लिए किसी आदिवासी नेता को ऊ पर उठने नहीं दिया। कांग्रेस में रघुवीर मीणा, ताराचंद भगोरा, महेन्द्रजीत सिंह मालवीय जैसे नेता है। भाजपा के बड़े नेता अपने आदिवासी नेताओं को संसाधनों एवं वर्चस्व की दृष्टि से मोहताज रखना चाहते है। आदिवासी अंचल में भाजपा के प्रभावी नेताओं की इसी मानसिकता के चलते ही पार्टी का सफाया हुआ है।मावली विधानसभा से मेवाड़ के दिग्गज धर्मनारायण जोशी को कटारिया व शेखावत गुट ने भीतरघात करके हरवा दिया। कटारिया गुट के मांगीलाल जोशी व शेखावत गुट के शांतिलाल चपलोत ने पहले ही इतना बड़ा बखेड़ा खड़ा कर दिया कि उसे संभालने में धर्मनारायण की आधी उर्जा समाप्त हो गई। बची हुई कसर कटारिया व चपलोत समर्थकों ने भीतरघात कर पूरी कर दी। कहा तो यह भी जा रहा है कि कटारिया समर्थकों ने कुछ मतदान बूथ पर रहने वाले कार्यकर्ताओं को राशि देकर धर्मनारायण के खिलाफ काम करने की सुपारी दी।कायदे से धर्मनारायण जोशी का दावा राजसमंद से था वहां से उन्हें टिकट दिया जाता तो जोशी जरूर जीतते। मावली में उन्हें पहले से ही अंदेशा था भीतरघात का। वही हुआ। मावली से चपलोत को भी टिकट दे दिया जाता तो चपलोत शायद सीट निकाल लेते। धर्मनारायण के साथ भीतरघात और विश्वासघात दोनों हुआ। इसका श्रेय कटारिया को जाता है।सलूम्बर में भाजपा का जीतना तय नहीं था लेकिन भीतरघात के कारण कांग्रेस की लीड बढ़ गई। खैरवाड़ा में भाजपा की हार के जो कारण नजर आ रहे थे भाजपा ने उन पर विचार करने के बजाय नानालाल अहारी के चुनाव संयोजक व संचालक ऐसे व्यक्तियों को बनाया जिनसे ऋषभदेव मंदिर प्रकरण में आदिवासियों की नाराजगी थी। दयाराम परमार को बिना मेहनत के सीट मिल गई।गोगुन्दा में कांग्रेस के प्रत्याशी मांगीलाल गरासिया के समर्थन में कांग्रेस देहात अध्यक्ष लालसिंह झाला लगे हुए थे। गोगुन्दा में कांग्रेस का बागी होने के बावजूद भाजपा कोई तीर नहीं मार सकी। गोगुंदा में भाजपा को जिताने में कौन बड़ा नेता लगा ? सांसद महावीर भगोरा को भी विशेष तरजीह नहीं दी गई। भगोरा किसी विवाद में नहीं पड़ना चाहते। उन्हें भी लोकसभा चुनाव लड़ना है।वल्लभनगर में तो रणधीर सिंह भीण्डर को हरवाने के लिए आरएसएस व कटारिया समर्थकों ने खुला ऐलान करवा दिया था । ऐसे में महाराज साहब को वापस महलों में जाना ही था। वल्लभनगर में रणधीर भी अति आत्मविश्वास में रहे या उन्हें भी विरोधियों के मंसूबों के चलते हार का अंदेशा हो गया था। रणधीर की गलती की सजा उन्हें भी दी गई और वसुंधरा को भी परोक्ष रूप से मिली।कहा तो यह भी जा रहा है कि अगर वसुंधरा सत्ता में वापस लौटती तो अपने विरोधियों का पूरी तरह सफाया कर देती। शेखावत जैसों को अपने दामाद के प्रचार तक सीमित करने वाली वसुंधरा के लिए कटारिया को पद विहीन करना कोई मुश्किल काम नहीं होता। ऐसे में अगर सरकार आ भी जाती तो क्या कर लेते। जलालत से तो विपक्ष में बैठना ही उचित समझा।बांसवाड़ा में तो कटारिया के शिष्य पूर्व मंत्री भवानी जोशी भाजपा को धूल चटाने के लिए खुद नेतृत्व कर रहे थे। जोशी ने बागी प्रत्याशियों को समर्थन देकर पार्टी के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोला। जोशी अपने मिशन में कामयाब भी हुए। भवानी जोशी ने भाजपा की हार पर अपनी मुहर लगाते हुए कहा कि निष्ठावान कार्यकर्ताओं को टिकट नहीं देने से पार्टी हारी। जोशी की निगाह में निष्ठावान का अर्थ अपने स्वयं और अपने चहेतों से है। पार्टी के खिलाफ खुलकर चुनाव में उतरना और अधिकृत प्रत्याशी को हरवाना जोशी की `िनष्ठा' की परिभाषा में आता है।डूंगरपुर में भाजपा की स्थिति पहले से ही बदतर थी। वहां पर भी बागी लोगों ने भाजपा का सफाया करवा दिया। बागी लोगों पर समय रहते कोई कार्यवाही नहीं होने के कारण भी भाजपा की मेवाड़ में भारी हार हुई है।मेवाड़ में भाजपा का पत्ता साफ होने के साथ ही भाजपा में मेवाड़ के नेताओं का वजूद भी खतरे में पड़ गया है। पार्टी में भीतरघात कर पार्टी प्रत्याशियों को हराने का श्रेय लेने वाले नेताओं का पार्टी नेतृत्व और पार्टी के हारे हुए प्रत्याशी दोनों पूरा ख्याल रखेंगे। मेवाड़ का नेता होने का दम भरने वालों ने अपनी ही पार्टी का भट्टा बिठा दिया है। इस सूरत में इनके नेतृत्व पर भी प्रश्न चिह्न लग गया है।प्रदेशाध्यक्ष ओमप्रकाश माथुर ने इस चुनाव में न तो मुख्यमंत्री पद की दावेदारी की और न ही मुख्यमंत्री के खिलाफ ऐसा कोई कदम उठाया जो उनके पद की गरिमा के प्रतिकूल हो। ऐसे में वसुंधरा के प्रति असंतोष का लाभ पार्टी में नुकसान करने वाले विरोधियों की बजाय माथुर को मिलेगा। वसुंधरा को हराने के लिए विरोधी किसी भी हद तक चले गए लेकिन इसके लाभ की बजाय विरोधियों को इसका नुकसान ही होगा। लाभ मिलेगा तो कर्मठता से चुनाव अभियान में जुटने वाले प्रदेशाध्यक्ष ओम माथुर को मिलेगा। मेवाड़ की लाज तो किरण माहेश्वरी ने रखी है। इसलिए आने वाले समय में कटारिया से सताए सभी प्रत्याशी किरण के नेतृत्व में एकजुट हो सकते हैं।

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