उत्तरप्रदेश में 402 विधायकों की जीत दर्ज कर बहुमत का अपना जादू दिखाने वाली मुख्यमंत्री मायावती का पार्टी चलाने का फार्मूला राजस्थान में नहीं चल सका है। वैसे तो हर राजनीतिक दल पार्टी चलाने के लिए कई तरह से कोष एकत्रित करता है, लेकिन इस मामले में यहां मायावती के तरीके को खुद उनकी पार्टी कार्यकर्ताओं ने नकार दिया है और उनके बडे नेताओं के आर्थिक रवैये के विरोध में इस्तीफे दे दिये हैं।बसपा नेता मायावती अपना जन्म दिन `आर्थिक सहयोग दिवस' के रूपमें मनाती है और इसके लिए कार्यकर्ताओं से सहयोग लिया जाता है। इसके लिए बसपा की कन्द्रीय ईकाई द्वारा सौ-सौ रूपये के कूपन जारी किये गए है। यह तरीका पहले ही चुनावों में बसपा नेताओं से आर्थिक चोंट खाए स्थानीय कार्यकर्ताओं को एकदम नागवारा लगा हैं और खीज कर कईयों ने पार्टी से इस्तीफे दे दिये हैं। मायावती का जन्म दिन अगली 15 जनवरी को है जिसके लिए पार्टी को सहयोग के रूपमें यह राशि वसूली जा रही है। इसमें काफी घोटाले की शंका भी व्यक्त की जारही है। इस तरह चुनावों से कुछ समय पहले ही बांसवाड़ा में जन्मी बसपा ने अपने शैशवकाल में दम तोड़ दिया है। यही हालत उदयपुर, डूंगरपुर, भीलवाडा आदि जिलों की बताई जाती है।चुनावों में उम्मीदवारों को पार्टी द्वारा दिये जाने वाली सहायता राशि के मामले में बडे नेताओं द्वारा बाद में उम्मीदवारों और कार्यकर्ताओं को अंगूठा दिखा दिये जाने से आक्रोशित कार्यकर्ता इसके तुरन्त बाद अब मायावती के जन्म-िदन के नाम से चन्दा उगाही से अधिक तैश में आ गए हैं। इस चुनावों में तो कुछ उम्मीदवार व कार्यकर्ता कर्ज के बोझ से भी दब गए तथा उन्हें दिया जाने वाला पैसा नहीं मिला।बसपा के जिला कोषाध्यक्ष युनुसअली झझा ने मायावती को कार्यकर्ताआंð के साथ हुए धोखे की जानकारी देते हुए लिखा है कि चुनावों में पार्टी के नेताओं द्वारा भुगतान का भरोसा दिये जाने पर उम्मीदवरों व कार्यकर्ताओं ने करीब 18 लाख रूपया जुटा कर खर्च कर दिया व अब बाजार मे उनकी ईज्जत खराब हो रही है। इस आर्थिक गडबडियों को लेकर कार्यकर्ता पार्टी द्वारा चुनावों में नियुक्त जिला प्रभारी चरणसिंह नौनिया व प्रेम बारूपाल पर आरोपों की अंगूली उठा रहे हैं।बसपा के जिलाध्यक्ष ईश्वरसिंह पटीदार ने इस स्थिति से खीज कर पार्टी से इस्तीफा देते हुए लिखा है कि नौनिया व बारूपाल यहां चुनाव के दिनों में प्रचार के नाम पर दौरे करते रहे और चुनाव कार्य में दिलचस्पी लेने के बजाय कार्यकर्ताओं व सरकारी कर्मचारियों से चुनाव और मायावती के जन्मदिन के कूपन दे कर पैसा बटोरने का काम ही करते रहे। इसके लिए कर्मचारियों को धमकियां भी दीगई, जिससे कर्मचरियों में पार्टी के पक्ष में बन रहा माहौल बिगड गया। इस ओर जब उदयपुर जोन के समंवयक युनूस अली झझा ने आलाकामान का ध्यान दिलाया तो उन्हें पार्टी से निष्कसित कर दिया गया। इस रवैये से असंतुष्ट जिलाध्यक्ष पाटीदार के अलावा जिला उपाध्यक्ष राजकुमार जैन व रमणलाल, कोषाध्यक्ष झझा, विजयकुमार यादव व अन्य कई कार्यकर्ता बसपा से अपना इस्तीफा दे चुके हैं।मायावती की वह ऐतिहासिक सभा ः चुनावों से चार दिन पूर्व 30 नवंबर को यहां कुशलबाग मैदान में भीड के लिहाज से मायावती की ऐतिहासिक सभा हुई। इसका इतिहास अब सामने आ रहा है। चुनाव खर्च को लेकर उम्मीदवारों से कहा गया था कि बहनजी पैसे लेकर आ रही हैं। आप तो बढिया आमसभा आयोजित करा देंवें। बस सभी लोग सभा में भीड जुटाने के काम में लग गए। इधर बहनजी खाली हाथ आई। तब कहा गया कि वे जाकर पैसा भिजवा रही हैं। पर पैसा नहीं आया।बांसवाड़ा से बसपा उम्मीदवार भाणजीभाई, घांटोल से दिनेश पुरी, गढी से नाथुलाल भगत व प्रमुख कार्यकर्ता चुनाव में खर्च हो गए पैसे व कर्ज का रोना अब भी रो रहे हैं।जबरन चन्दा वसूली की शिकायत आम ः सूत्रों के अनुसार बसपा व मायावती के नाम से सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों, उद्योगपतियों आदि से जबरन चन्दा वसुली की शिकायत आम है। उत्तरप्रदेश में तो हालत अधिक खराब बताई जाती है। यहां कुछ समय पहले ही लोक निर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता मनोज गुप्ता की मौत तथा इसके बाद उत्तरप्रदेश में बसपा विधायक शेखर तिवारी की गिरफ्तारी को जोड कर देखा जारहा हैं। सूत्रों के अनुसार बसपा विधायकों, सांसदों व अन्य बडे पदाधिकारियों को एक बडी निश्चित रकम अनिवार्य रूपसे देनी पडती है।
No comments:
Post a Comment