Wednesday, December 3, 2008

चरित्रवान से चरित्रहीन कैसे बन गए गुलाबचंद कटारिया

तीन दशक पहले 1977 में एक चरित्रवान नेता के रूप में ध्येय-िनष्ठा जैसे शब्दों के साथ संघ की पृष्ठभूमि से राजनीति में आए गुलाबचंद कटारिया को शहर की जनता ने नवाजा और अपना विधायक चुना। राजनीति में आने के बाद कटारिया को जिस तरह सत्ता का स्वाद लगा उसके बाद उनकी चाल, चरित्र और आचरण में धीरे-धीरे जो बदलाव आया वह आज इस चरम अवस्था तक पहुंच गया है कि कटारिया शहर के आम आदमी की निगाह में एक विलेन है। एक तरफ कटारिया का राजनीतिक कद और पहचान बढ़ती गई दूसरी तरफ उनके चरित्र का नैतिक पतन होता गया। शुरू में छोटे मोटे लालच में उन्होंने अपना ईमान खोया। पार्टी के चंदे में और हिसाब में गड़बड़ियां की। अपने साथ कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं को वे एक-एक करके ठिकाने लगाते रहे और पार्टी में अपना वर्चस्व जमाने में कामयाब हो गए।जैसे-जैसे राजनीति में उनका अनुभव बढ़ता गया वैसे-वैसे एक विनम्र संघ का कार्यकर्ता संघ के संस्कार और आदर्श भूलकर सत्ता में बने रहने के लिए सारे जोड़-तोड़ व सामदाम दण्ड भेद का सहारा लिया। कटारिया हमेशा संघ की पृष्ठभूमि के कारण पार्टी में हावी रहे लेकिन धीरे-धीरे संघ से जुड़े अन्य लोगों को पार्टी से दूर कर अपना आधिपत्य जमाने लगे तब उनके खिलाफ दबी जबान में आवाज उठने लगी। कटारिया के साथ उस समय समर्पित युवा सार्थियों की टीम थी उसकी बदौलत कटारिया सबको दबाने में सफल रहे। उस समय कटारिया के समर्थक युवाओं के मन में कटारिया के प्रति एक आदर था और उम्मीद थी कि भाई साहब आगे बढ़ेंगे तो उन्हें भी आगे बढ़ने का मौका मिलेगा। लेकिन धीरे-धीरे कटारिया वट वृक्ष बनते गए और उनकी छाया में पनपने वाले छोटे पौधों को राजनीति से समाप्त करते रहे। कटारिया ने जिस भी व्यक्ति के मन में जरा सी भी राजनीतिक महात्वाकांक्षा देखी उसे किसी न किसी तरह दूध से मक्खी की तरह निकाल फैंका या नीचे के स्तर पर ही उन्हें आपस में ऐसा उलझा दिया कि वे एक दूसरे को निपटाने में लगे रहे। बहुत बाद में इन लोगों को समझ आया कि असल में राजनीति कहां है तब जाकर कुछ हौंसले वाले लोगों ने कटारिया के खिलाफ बगावत का झंडा खड़ा किया। कटारिया ने उन्हें अनुशासन के डंडे के नाम पर दबा दिया।कटारिया एक तरफ सत्ता में बने रहने के लिए संघ के सिद्धांतों को तिलांजलि दे चुके थे वहीं उन्हें यह भी समझ में आ गया कि राजनीति में रहना है तो पैसा बनाना ही पड़ेगा। कटारिया को भाजपा कार्यकर्ताओं ने पार्टी के कार्य के लिए 1988 में एक जीप (आरएनवाई 994) खरीद कर दी थी जिसे कटारिया बेचकर खा गए। पार्टी को हिसाब भी नहीं दिया।कटारिया ने साधन संपन्न बनने के लिए बड़ी में टी.बी. अस्पताल के समीप हाथीधरा में वन विभाग की करीब दो सौ बीघा भूमि पर अवैध कब्जा करके उसे भूमिदलालों के साथ मिलकर बेच दिया। इस मामले में कटारिया के खिलाफ वन विभाग ने मामला भी दर्ज किया और यह मामला अदालत में चला।1990 में जब भैरोसिंह शेखावत की सरकार बनी तब कटारिया ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर वन विभाग की भूमि का डिनोटिफीकेशन करवा लिया जिसके बाद उनकी यह फाइल बंद हुई। आज भी उनके विरोधियों के पास इसकी पत्रावली संभाल कर रखी हुई है। यहां से कटारिया के नैतिक मूल्यों एवं चरित्र का पतन शुरू हुआ। धीरे-धीरे भाजपा को कटारिया अपनी जेबी जमात बनाने में कामयाब हो गए। वे हमेशा दूसरों को पार्टी के प्रति निष्ठा और त्याग का पाठ पढ़ाते रहे लेकिन खुद किसी न किसी प्रमुख पद पर कायम रहे। पार्टी में उनकी पकड़ की यही बड़ी वजह रही। कटारिया की राजनीतिक महत्वाकांक्षा के शिकार लोगों की फेहरिश्त काफी लंबी है।

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