Wednesday, December 10, 2008

चुनाव प्रचार में पीछे रहने वाले कुर्सी दौड में आगे निकलने के फिराक में

राजस्थान में कांग्रेस को सत्ता में लाने के लिए मेहनत अशोक गहलोत ने की और सत्ता लोलुप लोग दड़बों से निकलकर मुख्यमंत्री पद के लिए लालायित हो रहे हैं। यह सच है कि राजस्थान में पिछली बार भी और इस बार भी कांग्रेस ने भाजपा से सत्ता छीनी उसमें अशोक गहलोत व उनकी टीम की ही मेहनत रही। प्रदेश में किसी और नेता की अपने जिले में भी संगठन को साथ लेकर चलने की हैसीयत नहीं है। ऐसे में प्रदेश में कांग्रेस के संगठन और सरकार को साथ लेकर चलने के उनके दावे हास्यास्पद ही लगते हैं।जो कांग्रेस से बगावत कर जीते हैं उन्हें भी गुटबाजी के चलते गलत टिकट दिया गया। ऐसे बागी निर्दलीय के रूप में जीतकर अशोक गहलोत के प्रति समर्थन व्यक्त कर रहे हैं इसका तात्पर्य है कि गुटबाजी करने वाले नेताओं के कारण ही कांग्रेस से लोगें ने बगावत की और इसी वजह से स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पाया। पिछली बार भी गुटबाजी के चलते भष्ट मंत्रियों और विधायकों को जातिगत एवं अन्य आकाओं के दबाव में टिकट दिया गया। खुद भी हारे और कांग्रेस को भी ले डूबे। इस बार भी कांग्रेस को सत्ता में लाने के लिए गहलोत ने पूरी ताकत लगा दी जिसके कारण ही कांग्रेस सरकार बनाने के दावे कर रही है।जब अशोक गहलोत व उनकी टीम, जिनमें सीपी जोशी आदि प्रमुख शामिल है, राजस्थान में मेहनत कर रहे थे उस समय कांग्रेस के पुराने नेता कहीं न कहीं सत्ता का सुख ले रहे थे। चुनाव के समय तमाशबीन बनकर खड़े लोग, सत्ता के आते ही उसमें हिस्सा मांगने के लिए कूद पड़े। जिन लोगों की हैसीयत अपनी या बिरादरी वालों को जितवाकर लाने की नहीं है वे मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं। इस समय बैठकें, मंत्रणाएं आदि कर रहे हैं। उस समय कहां गए थे जब भाजपा के जबड़े से सत्ता को छीनकर निकालना था।चुनाव में जिन लोगों ने ब्राह्मणवाद चलाया वे भाजपा या माकपा से बुरी तरह हारे है।शीशराम ओला भी उम्र के आखरी पड़ाव में बिना कुछ मेहनत किए मुख्यमंत्री बनना चाहते है। क्या योगदान है गहलोत के मुकाबले इनका। जिन नेताओं का जनाधार भी नहीं है वे भी आकर मुख्यमंत्री बनने के सपने संजो रहे है। कुछ सत्तालोलुप नेता अपने को मुख्यमंत्री बनाने या बड़े पद हथियाने के लिए जाति बिरादरी का सहारा ले रहे है। इन नेताओं की अपनी जाति में क्या हैसीयत है? क्या किया है इन्होंने अपनी जाति के उत्थान के लिए, सिवाय अपने घर भरने के अलावा? अशोक गहलोत भी एक किसान परिवार के है और राजस्थान में सत्ता लोलुप लोगों के अलावा कांग्रेस की संस्कृति में विश्वास रखने वाले विधायक व पार्टी के नेता गहलोत में ही आस्था रखते हैं।कांग्रेस आलाकमान ने चुनाव के दौरान भी सर्वेक्षण करवाकर देख लिया। गहलोत के अलावा किसी की भी प्रदेश का नेतृत्व संभालने की हैसीयत नहीं है। पार्टी ने गहलोत का जलवा भी देख लिया। क्या कांग्रेस बिना प्रयास के सत्ता में आ गई ? अगर ऐसा होता तो सरकार आने की गलतफहमी के शिकार प्रत्याशी परिवर्तन की लहर में अपनी सीट क्यों गंवाते ? अगर बिना चेष्टा के ही कांग्रेस को सत्ता मिलनी थी तो चुनाव परिणाम का इंतजार करने से पहले ही सत्ता की चाहत रखने वाले चुनाव मैदान में क्यों नहीं कूद?कांग्रेस पार्टी का आम कार्यकर्ता भी ऐसे सत्ता लोलुप नेताओं के प्रति मन में नाराजगी रखता है। जिन्हें हर समय हर कीमत पर सत्ता का सुख चाहिए। जो अपने जिले में भी लोकप्रिय नहीं है वे जोड़तोड़ कर सत्ता के शीर्ष पर काबिज होना चाहते है। असल में राजस्थान में कांग्रेस की बरबादी का कारण भी ऐसे नेता ही रहे हैं।यह भी संभव है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को नहीं बनाया जाता है तो भाजपा जोड़तोड़ कर कुछ महिनों बाद ही सत्ता में काबिज हो सकती है। भाजपा भी यही चाहती है कि गहलोत मुख्यमंत्री नहीं बने। गहलोत ही निर्दलियों और बागी लोगों को एकजुट कर सरकार बना सकते हैं ।

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