Monday, October 26, 2009

भाजपा के आक्रामक तेवर

नई दिल्ली। निजी दूरसंचार कम्पनियों को दूसरी पीढी (2जी) के स्पेक्ट्रम के लिए लाइसेंस आवंटन मामले में कथित धांधली का आरोप लगाते हुए भाजपा ने संचार मंत्री ए.राजा की मंत्रिमण्डल से बर्खास्तगी की मांग को दोहराते हुए कहा कि इस सम्बन्ध में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को कोई टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। दूसरी ओर राजा ने इस्तीफा देने से इनकार किया है। उल्लेखनीय है कि 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन को लेकर दूरसंचार मंत्री ए.राजा विवादों में घिरे हैं। गत सप्ताह सीबीआई ने उनके कार्यालय में छापेमारी भी की थी।
पीएम के बयान से जांच में बाधा आएगी-जेटली: राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष अरूण जेटली ने कहा कि प्रधानमंत्री का यह बयान दुर्भाग्यपूर्ण है कि विपक्ष हमेशा सही नहीं होता और राजा पर लगाए गए आरोप ठीक नहीं हैं। यह सबसे बडा घोटाला है, जिसमें सरकार को 60 हजार करोड रूपए का नुकसान हुआ है। सीबीआई सीधे प्रधानमंत्री के अधीन है, ऎसे में राजा के पक्ष में उनके बयान से जांच में बाधा आएगी।
पीएम को जांच पूरी होने तक राजा को बर्खास्त करना चाहिए। इस मामले में केवल संचार मंत्रालय के अधिकारियों की ही घेराबंदी नहीं की जानी चाहिए। जेटली ने कहा कि इस पूरे मामले में फैसला सम्बन्धित मंत्री ने स्वयं किया है, इसलिए वे ही इस प्रकरण के जिम्मेदार हैं। संसद के आगामी सत्र में समूचा मामला जोर-शोर से उठाया जाएगा।
सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता जरूरी कांग्रेस सार्वजनिक तथा राजनीतिक जीवन में पारदर्शिता की पक्षधर है। 2जी स्पेक्ट्रम मामले में संचार मंत्री ए.राजा का नाम नहीं आया है और न ही उनके कार्यालय पर सीबीआई का कोई छापा पडा है। इस मामले में कानून अपना काम करेगा। अगर किसी व्यक्ति विशेष का नाम आता है तो उसे सार्वजनिक जीवन की मांग के अनुरूप कदम उठाना चाहिए। भाजपा का भ्रष्टाचार के बारे में बोलना उचित नहीं है। -शकील अहमद, प्रवक्ता, कांग्रेस
दलीलें अपनी-अपनीकेन्द्रीय मंत्री का कहना है कि वे केवल अपने पूर्ववर्ती दूरसंचार मंत्री की ओर से तय की गई प्रक्रियाओं और दूरसंचार नियामक ट्राई के निर्देशों का पालन कर रहे थे। राजा के पूर्ववर्ती दूरसंचार मंत्री और ट्राई दोनों राजा के दावों को खारिज कर चुके हैं। साथ ही मंत्री कहते हैं कि उपभोक्ताओं को सस्ती सेवाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से ही उन्होंने नीलामी नहीं करने का फैसला किया। हालांकि राजा की उपभोक्ताओं के प्रति इस भलमनसाहत पर कोई भरोसा नहीं करना चाहता।
जयपुर से जब्त किया था कम्पनी रिकॉर्डजयपुर। मोबाइल सेवा प्रदाता कम्पनियों को नियमों को ताक में रखकर यूनिफाई सर्विस एक्सेस का लाइसेंस वितरित करने का मामला दो वर्ष से चला आ रहा है। इस मामले को लेकर सेवा प्रदाता कम्पनियों के दफ्तरों में शुरू हुई जांच बता रही है कि तार बडे स्तर तक जुडे हैं। इसको लेकर जयपुर में भी एक कम्पनी का रिकॉर्ड सीबीआई ने जब्त किया था। यह रिकॉर्ड जांच के लिए दिल्ली भेजा गया है। सीबीआई सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार लाइसेंस का यह काम वर्ष 2001 में शुरू हुआ था।
उस समय लाइसेंस वितरण 'पहले आओ पहले पाओ' की शर्त पर जारी हुए थे। इसके बाद शुरूआती नियमों के हिसाब से वर्ष 2007 में देश में 122 सर्किल के लाइसेंस वितरित किए गए, जबकि ट्राई ने मापदण्ड बदलने के साथ कीमत भी बदलने की बात कही थी। वितरित किए गए लाइसेंसों में से ज्यादा हिस्सा दो कम्पनियों ने लिया था। दोनों कम्पनियों ने लाइसेंस मिलने पर काम शुरू करने के बजाय उन्हें बेचना शुरू कर दिया, जो एक से दूसरे हाथों बिकते गए।
दावों का आधार: जनवरी 2008 में पहले आओ-पहले पाओ के आधार पर ऑपरेटरों को प्रति लाइसेंस 1651 करोड रूपए की कीमत पर आवंटन किया गया। 2001 में हुई स्पेक्ट्रम की नीलामी में मिली कीमत को जी-2 स्पेक्ट्रम लाइसेंस के मूल्य का आधार बनाया गया। अब असली बाजार मूल्य तब से छह गुना हो चुका है।
नया बाजार मूल्य क्यों!: पिछली बार स्पेक्ट्रम का लाइसेंस पाने वाली स्वान व यूनिटेक जैसी कम्पनियों ने बाद में लाइसेंस के लिए चुकाई कीमत से छह गुना दामों पर हिस्सेदारी बेची। चूंकि तब इन कम्पनियों के पास लाइसेंस के अलावा कोई अन्य सम्पत्ति नहीं थी। इसलिए माना कि इन लाइसेंसों की कीमतें छह गुना हो चुकी हैं।
राजा को क्यों घसीटा!: आरोप है कि नीलामी के बजाय 2001 की कीमतों पर पहले आओ-पहले पाओ की नीति से लाइसेंस देने का फैसला तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए. राजा ने ही किया था। उन्होंने चहेते ऑपरेटरों को लाइसेंस दिलाने के लिए आवेदन की समयसीमा में भी बदलाव किया।
ट्राई की सिफारिश के आधार पर ही स्पेक्ट्रम का आवंटन किया गया था। मैंने हमेशा प्रधानमंत्री की सहमति से काम किया है। मेरे खिलाफ कोई सबूत नहीं हैं। मैं इस्तीफा नहीं दूंगा। -ए. राजा, केन्द्रीय संचार व आईटी मंत्री

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