जींद. भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष जींद विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी स्वामी राघवानंद महाराज ने मंगलवार को राजनीति से संन्यास ले लिया है। उन्होंने अपना इस्तीफा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह को भेज दिया है। चुनाव से एक हफ्ता पहले उनके इस फैसले से पार्टी स्तब्ध है। राघवानंद के इस फैसले के बाद पार्टी मझदार में फंस गई है, क्योंकि इस सीट से वह दूसरा प्रत्याशी भी नहीं उतार सकती।
क्यों लिया फैसला ?
नेताओं पर जातिवाद का आरोप लगाते हुए राघवानंद ने कहा कि जींद सीट पर दौरे के दौरान उन्हें स्पष्ट दिखा, जिसे वे बर्दाश्त नहीं कर सके। समाज को सही दिशा दिखाने के बजाए ये निज स्वार्थ के लिए आने वाली पीढ़ियों के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। शराब, पैसा बांटकर ये देश के भविष्य से खेल रहे हैं। यह सब देख आत्मा को ठेस पहुंची और संन्यास का फैसला लिया।
व्यापार बन गई राजनीति
बकौल राघवानंद राजनीति में रहकर अच्छा काम करने की संभावना नहीं है। नेताओं के लिए राजनीति अब समाज सेवा नहीं, व्यवसाय बन गया है।संत न तो व्यापार नहीं करते हैं और न ही पीढ़ियों के लिए धन अर्जित करते हैं। उन्होंने नेताओं से देश हित के लिए काम करने की अपील की। 1994 में भाजपा में शामिल राघवानंद पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के आदर्शे पर चलते रहे। हालांकि वे संघ से जुड़े रहेंगे। 2004 में वे आदमपुर से विस और हिसार से लोकसभा चुनाव भी लड़े।
गोयल को लपेटा
राघवानंद जाते-जाते पार्टी के प्रदेश प्रभारी विजय गोयल पर विरोधियों का साथ देने का आरोप भी जड़ गए। हालांकि शीर्ष नेताओं ने उन्हें मनाने का प्रयास भी किया, लेकिन वे टस से मस नहीं हुए। पांडु पिंडारा स्थित डेरे पर पत्रकारों से कहा कि पार्टी संगठन के लिए उन्होंने हर वह काम किया जो उन्हें सौंपा। वे पार्टी की स्वच्छ विचारधारा के कायल थे, लेकिन अब पार्टी में पूंजीवादी, अवसरवादी व जातिवाद का विष घोलने वालों का बोलबाला है।
क्यों लिया फैसला ?
नेताओं पर जातिवाद का आरोप लगाते हुए राघवानंद ने कहा कि जींद सीट पर दौरे के दौरान उन्हें स्पष्ट दिखा, जिसे वे बर्दाश्त नहीं कर सके। समाज को सही दिशा दिखाने के बजाए ये निज स्वार्थ के लिए आने वाली पीढ़ियों के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। शराब, पैसा बांटकर ये देश के भविष्य से खेल रहे हैं। यह सब देख आत्मा को ठेस पहुंची और संन्यास का फैसला लिया।
व्यापार बन गई राजनीति
बकौल राघवानंद राजनीति में रहकर अच्छा काम करने की संभावना नहीं है। नेताओं के लिए राजनीति अब समाज सेवा नहीं, व्यवसाय बन गया है।संत न तो व्यापार नहीं करते हैं और न ही पीढ़ियों के लिए धन अर्जित करते हैं। उन्होंने नेताओं से देश हित के लिए काम करने की अपील की। 1994 में भाजपा में शामिल राघवानंद पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के आदर्शे पर चलते रहे। हालांकि वे संघ से जुड़े रहेंगे। 2004 में वे आदमपुर से विस और हिसार से लोकसभा चुनाव भी लड़े।
गोयल को लपेटा
राघवानंद जाते-जाते पार्टी के प्रदेश प्रभारी विजय गोयल पर विरोधियों का साथ देने का आरोप भी जड़ गए। हालांकि शीर्ष नेताओं ने उन्हें मनाने का प्रयास भी किया, लेकिन वे टस से मस नहीं हुए। पांडु पिंडारा स्थित डेरे पर पत्रकारों से कहा कि पार्टी संगठन के लिए उन्होंने हर वह काम किया जो उन्हें सौंपा। वे पार्टी की स्वच्छ विचारधारा के कायल थे, लेकिन अब पार्टी में पूंजीवादी, अवसरवादी व जातिवाद का विष घोलने वालों का बोलबाला है।
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