Wednesday, February 18, 2009

बीजेपी से उनका अलायंस हो सकता

ये पॉलिटिक्स है प्यारे और इसमें कुछ भी हो सकता है, खास तौर से तब जब पोल डांस शुरू हो चुका हो। अब समाजवादी पार्टी के चीफ मुलायम सिंह यादव ने फरमाया है कि बीजेपी से उनका

अलायंस हो सकता है। बस शर्त यह है कि बीजेपी अपना हिंदुत्ववादी अजेंडा छोड़ दे। कहा जा सकता है कि न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी। लेकिन मुलायम का (और महासचिव अमर सिंह का भी) बीजेपी से सशर्त तालमेल की बात उछालना मायने रखता है। बकौल अमर सिंह, इस अलायंस के लिए बीजेपी को आर्टिकल 370 और कॉमन सिविल कोड पर अपना रुख बदलना होगा। इसी राय को मुलायम सिंह ने दोहराया। लेकिन एसपी को इस मौके पर यह कहने की जरूरत क्यों पड़ी? इस बीच मुलायम के बयान पर तीखा कमेंट करते हुए बीजेपी के उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा है कि यह वोटरों को गुमराह करने की शरारत है। एसपी की बात मानने का जरा भी सवाल नहीं उठता। राम मंदिर बीजेपी का मुख्य मुद्दा है, जिसे छोड़ा नहीं जा सकता। बीजेपी सियासी फायदे के लिए अपनी विचारधारा से हटने वाली पार्टी नहीं है। सियासी पंडितों का मानना है कि यह एसपी की प्रेशर टैक्टिस है। बीएसपी को सबक सिखाना और केंद में ताकत दिखाना उसका सबसे बड़ा लक्ष्य है। लेकिन कांग्रेस के साथ उसका रिश्ता लगातार खराब होता जा रहा है। यूपी में 25 सीटों पर कांग्रेस की दावेदारी के जवाब में एसपी 15 ही छोड़ना चाहती है और यह गणित इतना उलझ गया है कि खुलेआम तलवारें घुमाई जा रही हैं। माना जाता है कि यूपीए के ही एक घटक नैशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी से एसपी की दोस्ती भी कांग्रेस को झुकाने की चाल है। इस दोस्ती के तहत मुलायम और शरद पवार दोनों पीएम पद के लिए एक-दूसरे के समर्थक बन गए हैं। यूपी की सियासत में हेरफेर के लिए मुलायम ने कल्याण सिंह से तालमेल का जो दांव खेला, वह ओबीसी वोटर को एकजुट तो कर सकता है, लेकिन मुसलमान अपनी बेचैनी दिखाने लगे हैं, जो कि अब तक एसपी के साथ थे। लेकिन मुलायम के पत्ते अभी खत्म नहीं हुए हैं, जैसा कि इस नई चर्चा से जाहिर हो जाता है।

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