Sunday, February 15, 2009

सामान्य सीटों पर चुनाव लड़ सकते हैं आरक्षित उम्मीदवार''

उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि अनुसचित जाति, अनुसूचित जनजाति या पिछड़ा वर्ग से संबंधित व्यक्ति सामान्य सीटों पर भी चुनाव लड़ सकता है। न्यायालय ने कहा, सामान्य श्रेणी से संबंधित अभिव्यक्ति का मतलब यह है कि वह सभी श्रेणियों के लोगों के लिए है।न्यायमूर्ति एलएस पंटा और बीएस सुदर्शन की पीठ ने कहा, अनारक्षित सीटों को सामान्य श्रेणी की सीट कहा जाता है जो उन सभी लोगों के लिए हैं जो इन पर लड़ने के योग्य हें। पीठ ने यह व्यवस्था पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के उस आदेश को खारिज करते हुए दी जिसमें कहा गया था कि अनुसचित जाति, अनुसूचित जनजाति या पिछड़ा वर्ग से संबंधित व्यक्ति हिसार नगर परिषद के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव नहीं लड़ सकता, क्योंकि यह सामान्य श्रेणी के लिए है।इस मामले में पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवार बिहारी लाल रदा 2005 में हुए चुनावों में नगर परिषद के अध्यक्ष पद पर चुने गए थे जो सामान्य श्रेणी के तहत आता था। चुनाव में हारे सामान्य श्रेणी के उम्मीदवार अनिल जैन की याचिका पर उच्च न्यायालय ने हालांकि, रदा के चुनाव को दरकिनार कर दिया।उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज करते हुए शीर्ष अदालत ने इंद्रा सवनी बनाम भारत संघ (1992) मामले में संविधान पीठ द्वारा दी गई उस व्यवस्था का जिक्र किया जिसमें कहा गया था, इस मामले में यह याद रखना बेहतर होगा कि अनुच्छेद 16 (4) के तहत आरक्षण सांप्रदायिक आरक्षण की तरह लागू नहीं होता। न्यायालय ने कहा, ऐसा हो सकता है कि कुछ सदस्य जैसे, अनुसूचित जाति अपनी मेरिट के आधार पर खुली प्रतियोगिता में चयनित हो जाए तो उसे अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कोटा में नहीं माना जाएगा। उसे खुली प्रतिस्पर्द्धा वाला उम्मीदवार माना जाएगा।शीर्ष अदालत के अनुसार यदि किसी नगरपालिका के अध्यक्ष पद को अनुसचित जाति, जनजाति या पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवार से भरे जाने की जरूरत है तो इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह पद सामान्य श्रेणी से भरा जाता है या फिर आरक्षित श्रेणी से। न्यायालय ने कहा, स्पष्ट है कि नगरपालिका सीटों और न ही अध्यक्ष पद के लिए ऐसा कोई आरक्षण हो सकता है जो सामान्य श्रेणी से संबंधित हो। सामान्य श्रेणी की तरह कोई भी अलग श्रेणी नहीं है।

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