Saturday, February 28, 2009

चुनाव जीतने का माद्दा है तो भाजपा का लोकसभा टिकट के आसार प्रबल

यदि दावेदार में चुनाव जीतने का माद्दा है तो उसे भाजपा का लोकसभा के लिए टिकट मिलने के आसार प्रबल हैं। पार्टी विद ए डिफरेंस कहलाने वाली भाजपा इस बार प्रत्याशियों के लिए सिर्फ इसी एक मापदंड पर अमल करने वाली है। इस बात से कोई फर्क नहीं पडता कि टिकट का दावा करने वाला व्यक्ति उसकी विचारधारा से बंधा है या नहीं, या फिर चुनाव मैदान के लिए नौसिखिया है। आपराधिक पृष्ठभूमि से भी उसे परहेज नहीं जैसा कि उत्तर प्रदेश में बांटे गए टिकट से स्पष्ट है। राज्य की आजमगढ सीट से रमाकांत यादव को पार्टी ने उम्मीदवार बनाया है जो कि हत्या के मामले में आरोपी हैं। इसी तरह चंदौली से कभी सपाई रहे जवाहर जायसवाल को टिकट मिला है जिन्हें पूरा क्षेत्र शराब माफिया के तौर पर जानता है। इनकी काबिलियत सिर्फ इतनी है कि येन-केन-प्रकारेण चुनाव जीत सकते हैं। मैदान में केवल उस पर भरोसा किया जाए जो जिताऊ हो, पार्टी रणनीतिकारों को यह घुट्टी पिलाने वाले सेफोलोजिस्ट जी.वी.एस नरसिंहराव हैं। नागपुर राष्ट्रीय अधिवेशन में कार्यकारिणी के सदस्य बनाए गए राव ने वहां लोकसभा चुनाव के लिए दस सूत्री सुझाव पेश किए थे। जीत की संभावना पर आधारित इस रिपोर्ट में दो टूक लिखा गया है कि सिर्फ यह ध्यान में रखकर प्रत्याशी चुनें कि कौन जीत सकता है। सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवार को टिकट दें खासकर वहां जहां उम्मीदवार के नाम पर मतदान महत्वपूर्ण हो। भले वह व्यक्ति किसी दूसरी पार्टी से आया हो या चुनावी राजनीति के लिए नवागन्तुक क्यों न हो। नरसिंहराव के सुझाव को गांठ बांधकर पार्टी ऎसे चेहरों को तलाश रही है जिनके नाम पर वोट बटोरे जा सकें। इसी के चलते राज्यसभा सांसद हेमा मालिनी से लेकर अनिल कपूर, अनुपम खेर व किरण बेदी तक के नाम की चर्चा जोर पकडती जा रही है। पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने भी पत्रिका से बातचीत में स्वीकार किया था कि अबकि के चुनाव में उम्मीदवार के लिए जिताऊ होना मुख्य मानक है।सुनिश्चित जीत की संभावना वाले प्रत्याशियों को लडाने की रणनीति के कारण ही अपने राज्यसभा के दिग्गजों को पार्टी ने लोकसभा के मैदान में उतारा है। खुद राजनाथ सिंह हों या उपनेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज या फिर यशवंत सिन्हा और महासचिव विनय कटियार। सभी खम ठोंक रहे हैं। प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी की इच्छा तो महासचिव अरूण जेटली और वेंकैया नायडू को भी चुनाव लडाने की थी किंतु बाद में इन्हें अलग-अलग राज्यों के चुनाव प्रबंधन जैसी जिम्मेदारियां सौंप दी गई। सौ से ऊपर नाम तय हो गए हैं जबकि शेष पांच मार्च को होने वाली केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक के बाद जारी होंगे। आसार यही हैं कि इनमें से अधिकांश पार्टी की जिताऊ कसौटी पर खरे उतरेंगे।

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