Saturday, July 4, 2009

भाजपा प्रदेशाध्यक्ष ने दिया इस्तीफा

राजस्थान के बाद अब हरियाणा भाजपा का भी मजबूत विकेट गिर गया है। प्रदेश अध्यक्ष आत्मप्रकाश मनचंदा ने शनिवार सुबह शीर्षस्थ नेता लालकृष्ण आडवाणी से मिलकर उन्हें अपना इस्तीफा सौंप दिया। लोकसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार के बाद से लगातार राज्य इकाई मनचंदा को हटाने का दबाव बनाए हुए थी, लेकिन वे पद छोड़ने को राजी नहीं थे।दो दिन पहले खुद भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने उनसे फोन पर इस्तीफा देने को कहा जबकि इसके पहले संगठन महामंत्री रामलाल ने भी उनसे बात की थी। पिछले माह राष्ट्रीय कार्यकारिणी के दौरान भी मनचंदा से इस्तीफा मांगा गया था, लेकिन वे इस बात पर अड़े थे कि हार की जिम्मेदारी तय करने का सिलसिला केंद्रीय नेताओं से शुरू होना चाहिए। इधर, प्रदेश अध्यक्षों ने इस्तीफे सौंप दिए जिन पर फैसला होना बाकी है। केंद्रीय नेतृत्व ने उत्तराखंड में एकबारगी बेकाबू हो चुके हालात को ध्यान में रखते हुए हरियाणा में एहतियातन मनचंदा पर इस्तीफे का जोर बढ़ाया जिसका नतीजा सार्थक रहा। अब मनचंदा के उत्तराधिकारी की तलाश तेज कर दी गई है। सूत्रों के अनुसार, चर्चा में कृष्णपाल गूजर और कैलाश शर्मा के नाम भी शामिल हैं लेकिन फैसला भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह के दिल्ली लौटने पर होगा। झारखंड गए राजनाथ रात तक वापस आ जाएंगे। हरियाणा की राजनीति में प्रभावी भूमिका रखने वाली सुषम स्वराज की राय भी नए अध्यक्ष के चुनाव में मायने रखेगी। संभव है कि आला नेता सुषमा से बातचीत के बाद मनचंदा का उत्तराधिकारी चुनें। सूत्रों ने बताया कि दबाव से क्षुब्ध मनचंदा ने राजनाथ के लौटने का इंतजार नहीं किया। उल्टे यह टिप्पणी की कि राष्ट्रीय अध्यक्ष उनसे नाराज रहते हैं। मेल-मुलाकात से बात और बिगड़ेगी इसीलिए उन्होंने आडवाणी को इस्तीफा देना बेहतर समझा। राज्य की दस में से एक भी लोकसभा सीट जीत नहीं पाने के बाद से मनचंदा निशाने पर थे। चुनाव नतीजों के तत्काल बाद मई में जब राज्य के प्रभारी विजय गोयल ने पार्टी मुख्यालय में समीक्षा बैठक बुलाई तब भी उनका कड़ा विरोध हुआ था। भारी हंगामे के बीच चुनाव खर्च के लिए केंद्र से भेजी गई धनराशि में हेरफेर और कैडर के साथ कतई तालमेल न करने जैसे आरोप मढ़े गए। विरोधियों ने यह भी कहा कि मनचंदा को भाजपा से ज्यादा ओमप्रकाश चौटाला की पार्टी इनेलो की फिक्र सता रही थी। इनेलो ने चुनावी गठबन्धन के बावजूद भाजपा को अपेक्षित सहयोग नहीं दिया। इन कारणों के चलते राज्य में पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया। नई सीट मिलना तो दूर की बात अपनी सोनीपत सीट भी गंवा बैठी। दूसरी ओर कांग्रेस ने दस में से नौ पर और भजनलाल की हरियाणा जनतांत्रिक कांग्रेस ने एक सीट पर कब्जा जमा लिया।

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