Friday, July 24, 2009

धार तराश रहे हैं आडवाणी

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष लालकृष्ण आडवाणी चुनावी हार के बाद एक बार संसद के अंदर और बाहर विपक्षी राजनीति की धार तराश रहे हैं। एक तरफ वे सदन में राष्ट्रीय हित से जुड़े हर मसले पर सधे अंदाज में सरकार को घेर रहे हैं तो दूसरी ओर पराजय से निराश पार्टी सांसदों कोे बीती ताहि बिसार कर आगे की सुध लेने का पाठ भी पढ़ा रहे हैं।पहले के मुकाबले इस सत्र में सुचारू रूप से चल रही संसद की कार्रवाई पर संतोष जताते हुए उन्होंने पत्रिका से कहा कि संसदीय लोकतंत्र के लिए यह अच्छा संकेत है। साथ ही अपनी रणनीति का खुलासा करते नेता प्रतिपक्ष ने यह भी बताया कि अब वे तब बोलेंगे जब सत्र समाप्त होने वाला होगा।सवाल था कि भाजपा ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के हाल के विदेश दौरों और उससे जुड़े मामलों जिनमें पाकिस्तान के साथ साझा बयान भी शामिल है, पर चर्चा की मांग की थी। कब होगी? आडवाणी ने कहा कि कल सम्पन्न बैठक में निचले सदन की परामर्शदात्री समिति ने 29 जुलाई की तारीख तय की है। प्रधानमंत्री डाक्टर मनमोहन सिंह इस पर जवाब भी देंगे। विपक्ष की ओर से बहस आप शुरू करेंगे? यह पूछने पर उन्होंने कहा कि नहीं।जो भी कहना है अब अंत में ही कहेंगे। नेता प्रतिपक्ष के हाव-भाव उसी पुराने तेवर की याद दिला गए जब विपक्ष के हमलों से सत्ता पक्ष बगलें झांकने पर मजबूर हो जाया करता था। किस विषय पर बोलेंगे अथवा हस्तक्षेप करेंगे इसका ब्यौरा न देते हुए उन्होंने यह अवश्य जता दिया कि चुनावी हार ने कुछ दिनों के लिए भले निराश कर दिया हो लेकिन विपरीत परिस्थितियों से जूझने का माद्दा अब भी बाकी है।हार के बाद भाजपा में घमासान मच गया। अपने हों या पराए सबके निशाने पर खुद आडवाणी थे। बावजूद इसके वे मौन रहे। एकबारगी लगा कि उनका हौसला चुक गया हो लेकिन उन्होंने न सिर्फ खुद यह सब बर्दाश्त किया बल्कि पराजित पार्टी में नई जान फूंकने के लिए दोबारा उठ खड़े हुए। हर बैठक अथवा सम्मेलन में कार्यकर्ताओं को संदेश देने की कोशिश की कि राजनीति में हार-जीत होती रहती है। हाथ पर हाथ धरे रहकर बैठने के बजाय पार्टी अनुशासन में बंधे रहकर उसे मजबूत बनाने का काम करें। संसद सत्र खत्म होने के बाद अगस्त माह में मुंबई में होने वाली चिंतन बैठक में वे अपने वरिष्ठ साथियों के साथ बैठक कर इस बात की थाह लेंगे कि आखिर हारे क्यों? हो सकता है कि उनके नेतृत्व पर भी तीखे सवाल खड़े हों लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि आडवाणी राष्ट्रीय राजनीति की उस पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं जो कड़े संघर्ष के बाद जमीन से आसमान तक का सफर तय किया।

No comments: