संप्रग सरकार के बुरे दिनों में उसके साथ खड़ी समाजवादी पार्टी का मन अब उससे भरने लगा है। सरकार और कांग्रेस के एक साथ बदले रुख से भी उसे पीड़ा पहुंची है। लिहाजा उसने सरकार से साफ शब्दों में पूछा है कि अब वह सपा से कैसे रिश्ते रखना चाहती है? सपा नेता अमर सिंह ने तो यहां तक कहा कि अब कांग्रेस को तय कर लेना चाहिए कि उत्तर प्रदेश में उसे सपा और बसपा में से किसका साथ चाहिए।
सिंगापुर में इलाज करा रहे सपा महासचिव अमर सिंह ने दैनिक जागरण से फोन पर बातचीत में कहा कि संप्रग सरकार के अमेरिका से परमाणु समझौते के बाद समाजवादी पार्टी के समर्थन का कोई मूल्य नहीं रह गया है। सिंह ने कहा कि इलाज के लिए सिंगापुर रवाना होने के पहले उन्होंने कांग्रेस के बड़े नेताओं से मिलकर कांग्रेस-सपा समन्वय समिति बनाने की मांग फिर की थी। उन नेताओं ने सीधा जवाब दिया कि समन्वय समिति बनी तो सपा के साथ बसपा को भी उसमें रखना होगा, क्योंकि वह भी सरकार का समर्थक दल है।
अमर सिंह ने कहा कि कांग्रेस के इस जवाब से साफ हो गया है कि संप्रग सरकार को गिराने का प्रयास करने वाली बसपा और उसे बचाने वाली सपा को अब वह एक ही तराजू में तौला जा रहा है। सिंह ने कहा कि अगर कांग्रेस उत्तर प्रदेश में ईमानदार प्रतिपक्ष की भूमिका निभाना चाहती है तो यह कैसे हो सकता है कि दिल्ली में हाथी [बसपा] कांग्रेस का साथी और उत्तर प्रदेश में वह दुश्मन व उसके खिलाफ सड़कों पर। यह समर्थन और विरोध की दोहरी राजनीति है। जब तमिलनाडु में जयललिता और करुणानिधि, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और वामपंथी एक साथ नहीं रह सकते तो उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा एक साथ कैसे रह सकते हैं। लिहाजा उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को तय कर लेना चाहिए कि उसे वहां सपा या बसपा में से किसका साथ चाहिए।
सपा नेता ने कहा कि कांग्रेस का यह कौन सा चरित्र है कि संयुक्त रूप से उसकी सरकार गिराने में जुटी बसपा प्रमुख मायावती, माकपा के प्रकाश करात और भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी की प्रतिष्ठा की रक्षा करने वाली सपा में अब कोई फर्क ही नहीं रह गया है। इन्हीं वजहों से संप्रग सरकार से अलग होने के लिए पार्टी पर कार्यकर्ताओं का बड़ा दबाव है, लेकिन अमर सिंह के विदेश में होने के कारण फैसला नहीं हो पा रहा है।
सिंह ने कहा कि सपा कांग्रेस-बसपा दोनों को बड़ा खतरा मानती है। बसपा जब भाजपा के साथ थी तो उसने वरुण गांधी को प्रसिद्धि दी, अब रीता बहुगुणा को गिरफ्तार कर कांग्रेस को प्रसिद्धि दे रही है। साफ है कि यह दोनों की नूराकुश्ती है। इसलिए सपा की मांग है कि या तो कांग्रेस बसपा के समर्थन को लौटा दे या फिर खुद मायावती समर्थन की चिट्ठी वापस ले लें।
सिंगापुर में इलाज करा रहे सपा महासचिव अमर सिंह ने दैनिक जागरण से फोन पर बातचीत में कहा कि संप्रग सरकार के अमेरिका से परमाणु समझौते के बाद समाजवादी पार्टी के समर्थन का कोई मूल्य नहीं रह गया है। सिंह ने कहा कि इलाज के लिए सिंगापुर रवाना होने के पहले उन्होंने कांग्रेस के बड़े नेताओं से मिलकर कांग्रेस-सपा समन्वय समिति बनाने की मांग फिर की थी। उन नेताओं ने सीधा जवाब दिया कि समन्वय समिति बनी तो सपा के साथ बसपा को भी उसमें रखना होगा, क्योंकि वह भी सरकार का समर्थक दल है।
अमर सिंह ने कहा कि कांग्रेस के इस जवाब से साफ हो गया है कि संप्रग सरकार को गिराने का प्रयास करने वाली बसपा और उसे बचाने वाली सपा को अब वह एक ही तराजू में तौला जा रहा है। सिंह ने कहा कि अगर कांग्रेस उत्तर प्रदेश में ईमानदार प्रतिपक्ष की भूमिका निभाना चाहती है तो यह कैसे हो सकता है कि दिल्ली में हाथी [बसपा] कांग्रेस का साथी और उत्तर प्रदेश में वह दुश्मन व उसके खिलाफ सड़कों पर। यह समर्थन और विरोध की दोहरी राजनीति है। जब तमिलनाडु में जयललिता और करुणानिधि, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और वामपंथी एक साथ नहीं रह सकते तो उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा एक साथ कैसे रह सकते हैं। लिहाजा उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को तय कर लेना चाहिए कि उसे वहां सपा या बसपा में से किसका साथ चाहिए।
सपा नेता ने कहा कि कांग्रेस का यह कौन सा चरित्र है कि संयुक्त रूप से उसकी सरकार गिराने में जुटी बसपा प्रमुख मायावती, माकपा के प्रकाश करात और भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी की प्रतिष्ठा की रक्षा करने वाली सपा में अब कोई फर्क ही नहीं रह गया है। इन्हीं वजहों से संप्रग सरकार से अलग होने के लिए पार्टी पर कार्यकर्ताओं का बड़ा दबाव है, लेकिन अमर सिंह के विदेश में होने के कारण फैसला नहीं हो पा रहा है।
सिंह ने कहा कि सपा कांग्रेस-बसपा दोनों को बड़ा खतरा मानती है। बसपा जब भाजपा के साथ थी तो उसने वरुण गांधी को प्रसिद्धि दी, अब रीता बहुगुणा को गिरफ्तार कर कांग्रेस को प्रसिद्धि दे रही है। साफ है कि यह दोनों की नूराकुश्ती है। इसलिए सपा की मांग है कि या तो कांग्रेस बसपा के समर्थन को लौटा दे या फिर खुद मायावती समर्थन की चिट्ठी वापस ले लें।
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