भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को संविधान की भावना के विपरीत बताकर समलैंगिक संबंधों को वैध ठहराने वाले हाईकोर्ट के फैसले पर भाजपा असमंजस में है। पार्टी विद डिफरेंस के हिन्दुत्ववादी चेहरों मुरली मनोहर जोशी और योगी आदित्यनाथ ने इसे धर्म-संस्कृति-समाज के खिलाफ बताकर तीखा विरोध दर्ज कराया है लेकिन पार्टी ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। लोकसभा में उपनेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज हों या राज्यसभा के वरिष्ठ सांसद वेंकैया नायडू दोनों ने यह कहकर बात टाल दी कि फिलहाल पार्टी के अंदर इस पर चर्चा नहीं हुई है। जोशी या योगी ने कुछ कहा है तो यह उनकी राय हो सकती है। जहां तक भाजपा के रूख का सवाल है तो पहले यह देखना होगा कि सरकार कैसा रवैया अपनाती है।सुषमा के अनुसार, अभी तक केंद्र सरकार के दो मंत्रालय धारा 377 में संशोधन के सवाल पर आमने सामने थे। गृह मंत्री चिदम्बरम इसे बनाए रखने का पक्ष ले रहे थे जबकि विधि मंत्री वीरप्पा मोइली संशोधन की वकालत कर रहे थे। अब जबकि हाईकोर्ट ने अपना फैसला दे दिया है तब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने चिदम्बरम, मोइली और स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद को निर्देश दिया है कि वे मिल बैठकर सोचें कि क्या करना ठीक होगा। एक बार सरकार अपना रूख स्पष्ट कर दे, इसके बाद भाजपा नेता भी मिल बैठकर अपनी राय बना लेंगे।इससे पूर्व लोकसभा में वाराणसी संसदीय सीट से जीतकर पहुंचे मुरली मनोहर जोशी ने संवाददाताओं के सवाल पर दो-टूक प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि हाईकोर्ट का निर्णय भारतीय संस्कृति और समाज के खिलाफ है। यह नहीं हो सकता कि दो जजों ने कोई फैसला दिया और उसे पूरा देश मान ले। कोर्ट से ऊपर संसद और जनता दोनों हैं। योगी आदित्यनाथ ने समलैंगिक संबंधों को अप्राकृतिक, उच्छृंखल करार देते हुए कहा कि धारा 377 किसी भी सूरत में खारिज नहीं होनी चाहिए। समलैंगिक संबंध समाज विरोधी कृत्य है जिसे मान्यता देना ठीक नहीं। उनकी मांग है कि इस पर और कड़ा प्रतिबंध लगना चाहिए।
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