Thursday, July 2, 2009

सरकार हेकड़ी से बाज आए-भाजपा

संसद सत्र के ऎन पहले पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाने के फैसले को सत्ता का दंभ करार देती भाजपा ने आगाह किया है कि सरकार हेकड़ी से बाज आए वरना न संसद चलाना आसान होगा और न ही शासन। लोकसभा में उपनेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज के अनुसार, संप्रग के सहयोगी दलों या विपक्ष को भरोसे में लिए बगैर पेट्रो पदार्थो की मूल्यवृद्धि, हाईकोर्ट के जज पर दबाव डालने के लिए केंद्रीय मंत्री का फोन करना और आंध्र प्रदेश के कांग्रेसी सांसद का बैंक मैनेजर को थप्पड़ मारना तीन दिन की इन घटनाओं से स्पष्ट है कि सरकार सत्ता के मद में चूर है और, लोकतंत्र के मजबूत स्तंभ विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका सब इसके लपेटे में हैं।केंद्रीय मंत्री टी.आर बालू ने भी सदन में मूल्यवृद्धि के तरीके पर अंगुली उठाते हुए कहा कि निर्णय से पहले कैबिनेट में चर्चा होनी चाहिए थी। अभी तक ऎसी घोषणाएं संसद सत्र चल रहा हो तो सदन के अंदर स्पीकर की अनुमति से की जाती रही हैं लेकिन मनमोहन सरकार ने यह परंपरा तोड़कर संसदीय शिष्टाचार का उल्लंघन किया है। भाजपा जानना चाहती है कि बुधवार की रात गुपचुप तरीके से दाम बढ़ाने वाली सरकार को क्या यह पता न था कि गुरूवार से संसद सत्र शुरू हो रहा है। संसद की अवहेलना का इससे बड़ा उदाहरण नहीं मिल सकता। विस्मय की बात है कि आम आदमी के नाम पर वोट बटोरकर सत्तासीन हुई कांग्रेस ने उसी के साथ विश्वासघात किया है। उसे अपने पहले बजट सत्र का पहला तोहफा पेट्रोल-डीजल का दाम बढ़ाकर दिया है। सवाल यह है कि जब सरकारी आंकड़े तेल कंपनियों को मुनाफे में बता रहे हैं तो फिर किसे फायदा पहुंचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में उछाल के बहाने दाम बढ़ाए गए। पेट्रोल-डीजल के दाम घटाने बढ़ाने का समय भी रोचक है। पिछले शासनकाल के शुरूआती चार वर्षो में सरकार दाम बढ़ाती गई और जब चुनाव आए तो वोट की खातिर कीमत कम कर दी गई। नतीजों के बाद जब फिर सत्ता में लौटे तो आम जनता और किसानों की स्थिति का ख्याल किए बिना फिर दाम बढ़ा दिए। यह भी नहीं सोचा कि इनका असर रोजमर्रा की जरूरतों वाली वस्तुओं के दाम पर भी पड़ेगा। यातायात, ढुलाई सब महंगे होंगे तो खाने-पीने की चीजों के भाव भी आसमान पर पहुंचेंगे। जनहित में सरकार को फैसला वापस लेना चाहिए। जहां तक बैंक मैनेजर को सांसद की ओर से मारे गए थप्पड़ का सवाल है तो इस मामले को संसद की आचार संहिता समिति के हवाले कर देना चाहिए और, उस केंद्रीय मंत्री के नाम का खुलासा कर बर्खास्त करना चाहिए जिसने जज को फोन कर अनुचित दबाव डाला।

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