श्रीलंका की लिट्टे के खिलाफ की गई सैन्य कार्रवाई से तमिलनाडु की राजनीति में आए उबाल ने कांग्रेस की नींद उडा दी है। अन्नाद्रमुक की मुखिया जयललिता के आक्रामक रवैए ने कांग्रेस को और चिन्ता में डाल दिया है। कांग्रेस की असल चिंता यही है कि इस राजनीति से प्रदेश की सीटें प्रभावित न हो जाएं। तमिलनाडु से लोकसभा की 39 सीटें आती हैं। प्रदेश में जो हालात बनते जा रहे हैं उससे कांग्रेस व उसके सहयोगी द्रमुक को बडा नुकसान होने की संभावना जताई जाने लगी है।पिछली बार कांग्रेस व द्रमुक के गठबंधन ने अन्नाद्रमुक का पूरी तरह से सफाया कर दिया था जिसका लाभ कांग्रेस को केंद्र में मिला। इस बार कांग्रेस एक बार फिर द्रमुक के साथ मिलकर चुनाव लड रही है। चुनाव प्रक्रिया आरंभ होने तक दोनों दलों की स्थिति ठीक -ठाक बताई जा रही थी, लेकिन श्रीलंका ने लिट्टे पर हमला बोल प्रदेश की राजनीति को गर्मा दिया। द्रमुक नेता व मुख्यमंत्री करूणानिधि ने शुरू में हमले के विरोध के साथ आतंकवादी प्रभाकरण को अपना मित्र बता प्रदेश की राजनीति को गर्माने की शुरूआत की। उसका असर यह हुआ कि अन्नाद्रमुक भी हमले के विरोध में खुलकर सामने आ गई। जयललिता ने तो श्रीलंका में तमिलों के लिए अलग राज्य बनाने की बात तक कह डाली। यही नहीं जयललिता तो अब प्रधानमंत्री की कुंजी अपने हाथों में बता केंद्र की राजनीति को भी प्रभावित करने लगी हैं। जयललिता के आक्रामक रूख को देखते हुए करूणानिधि ने भी सोमवार को भूख हडताल में बैठने का ड्रामा कर दिल्ली में भी कुछ देर के लिए हलचल पैदा की। यहीं पर कांग्रेस दुविधा में फंसती दिखी। कांग्रेस का संकट यह था कि न तो वह भूख हडताल का समर्थन कर सकती थी और ना ही विरोध। यही नहीं युद्व विराम का श्रेय लेने से भी कांग्रेस ने बचने की कोशिश की। कांग्रेस ने गठबंधन का धर्म निभाते हुए जयललिता पर ही निशाना साधा। दरअसल कांग्रेस की परेशानी यही है कि वह इस पूरे मामले में खुलकर बोलने के पक्ष मे नहीं है। इसी का फायदा जयलिता उठाने जा रही हैं। जानकारों की मानें तो अब अन्नाद्रमुक गठबंधन 39 सीटों पर उलटफेर करने की स्थिति में आ गया है।
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