भारत के अटार्नी जनरल की सलाह पर सीबीआई ने बोफोर्स रिश्वत कांड के आरोपी ओटावियो क्वात्रोची के खिलाफ रेड कार्नर नोटिस वापस ले लिया है, गरमाए चुनावी माहौल के बीच मिली यह खबर भाजपा के लिए बिल्ली के भाग्य से छींका फूटने जैसी साबित हुई। विपक्षी पार्टी ने इसे मुद्दा बनाने देर भी नहीं की।अहमदाबाद में खुद लालकृष्ण आडवाणी ने कांग्रेस और सीबीआई को लताडा तो यहां मुख्य चुनाव प्रबंधक अरूण जेटली ने खरी-खोटी सुनाई। नोटिस वापस लेने को सरकार के दबाव में किया गया फैसला करार देते जेटली ने ऎलान किया कि केंद्र में भाजपा की सरकार बनी तो सबसे पहले साख खो चुकी सीबीआई को दुरूस्त करेगी। एक आयोग बनाया जाएगा जो आरोपियों के साथ इसकी साठगांठ के मामलों की जांच करेगा और, यह सिफारिश भी देगा कि केंद्रीय जांच एजेंसी की स्वायत्तता कैसे बहाल की जाए।-सीबीआई पर सरकार के इशारे पर काम करने का आरोप मढते जेटली ने कहा कि केंद्रीय जांच एजेंसी का गठन इसलिए किया गया था ताकि सरकारी कामकाज में शुचिता बनी रहे और सरकार के अंदर पलते भ्रष्टाचार की जांच हो सके लेकिन, पिछले पांच सालों के दौरान इसने अपनी विश्वसनीयता खो दी है। बोफोर्स से लेकर न जाने कितने ऎसे मामले हैं जिसमें साठगांठ कर आरोपी को क्लीनचिट दी गई। राजनीतिक असर के चलते सीबीआई ने कैप्टन सतीश शर्मा पर मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं दी। शिबू सोरेन के विरूद्ध आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में अपील फाइल नहीं हुई, लालू प्रसाद यादव से जुडे भ्रष्टाचार मामले में लोक अभियोजक का बदला जाना, तथ्यपूर्ण साक्ष्यों को छिपाना, आईटीएटी की विशेष पीठ का गठन करने के साथ अपील न करना, बसपा सुप्रीमो मायावती ने संप्रग को समर्थन दिया तब ताज कारीडोर मामले में शिथिल पडना और खटपट की स्थिति में उनके भ्रष्टाचार मामलों की फाइल खोल देना, सपा प्रमुख मुलायम के विरूद्ध भी कांग्रेस से संबंधों के हिसाब से कार्रवाई करना अन्य उदाहरण हैं।-यह कहना गलत न होगा कि सीबीआई आपराधिक मामलों में सेल्फ गोल कर उन्हें बिगाडने में महारथ हासिल कर चुकी है। क्वात्रोची के खिलाफ रेड कार्नर नोटिस लेने का समय भी राजनीतिक लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है। इससे एक बात साफ हो गई है कि कांग्रेस ने मान लिया है कि सत्ता में दोबारा वापसी कठिन होगी लिहाजा विदा होने से पहले मित्रों की मदद कर दी जाए। क्वात्रोची के कांग्रेसी नेतृत्व के साथ पारिवारिक संबंध जगजाहिर हैं। उसके पक्ष में सीबीआई का निर्णय दरअसल विदाई वेला में दिया गया सरकारी तोहफा है।
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