भाजश नेता उमा भारती को समझ आ गई है कि समस्या पैदा करने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है। उनके अंदर उपजे इसी अहसास ने जड की तरफ लौटने के लिए विवश कर दिया। अब उनका एक ही लक्ष्य है लालकृष्ण आडवाणी को प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाना और इसके लिए वह समूचे देश में भाजपा के पक्ष में माहौल बनाएंगी। अंतरआत्मा की आवाज पर भाजपा की तरफ झुकी उमा ने इसमें शामिल होने जैसी अटकलों को यह कहकर विराम दे दिया कि न वह भाजपा में आने वाली हैं न भाजश का विलय होने जा रहा है। बुधवार को पत्रकार वार्ता में अचानक आडवाणी के प्रति जागे प्रेम को उन्होंने कुछ इस तरह बयां किया। आडवाणी के साथ आने का निर्णय लेने के पीछे उन्होंने तीन कारण गिनाए। आडवाणी से राजनीतिक शिक्षा मिलना, उनसे भावनात्मक संबंध होना और वर्तमान राष्ट्रीय चुनौती से निपटने में आडवाणी का देश के समक्ष विकल्प नहीं होना। पिछले दिनों आडवाणी से उनकी दो मुलाकातें हुई। इस दरमियान समर्थन में आने की बात तय हुई। उन्होंने भेंट में हुई चर्चा का खुलासा तो नहीं किया, लेकिन इतना जरूर बताया कि वह भाजपा शासित राज्यों की बजाय दूसरे प्रदेशों में प्रचार करेंगी। उन्होंने कहा, प्रचार में भेजने का कार्यक्रम भाजपा चुनाव समिति तय करेगी। भाजपा शासित राज्यों में नहीं जाने का कारण बताते हुए वह बोली कि वह ऎसी किसी जगह नहीं जाएंगी जहां समस्या पैदा हो। उन्होंने कहा कि मैं अच्छे सहयोगी की भूमिका निभाना चाहती हूं। अब मेरा इरादा समस्या खडा करने का नहीं है। उन्होंने कहा कि वह अपने आप को बदलने में लगी हुई हैं इसलिए अब ऎसी कोई बात नहीं कहेंगी जिससे परेशानी खडी हो। भाजपा से नाराजगी के प्रसंग को वह टाल गई। राजनाथ-जेटली विवाद पर बोली, लेकिन बहुत नपे-तुले शब्दों में। जेटली से वापस लौटने की अपील करते हुए कहा कि यह वक्त आडवाणी को ताकत पहुंचाने का है। चुनाव तक सारे गिले-शिकवे भूलकर वह काम में लग जाएं, चुनाव के बाद बैठ कर इसको निपटाया जा सकता है। उन्होंने कल्याण को जरूर आडे हाथों लिया। बोली कि कल्याण मुलायम से हाथ मिलाने की बजाय घर बैठ जाते तो उनका मान रह जाता, लेकिन उन्होंने राजनीतिक हित के लिए सिद्धान्तविहीन समझौता करके कई लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है। उन्होंने कहा कि राजनीति में आडवाणी से उन्हें इतना कुछ मिला है कि यदि उनके समर्थन से उन्हें एक वोट भी मिलता है वह उनके लिए गौरव की बात होगी।
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