Sunday, March 29, 2009

विपक्ष के मतों को काटने के लिए दोस्ताना मुकाबला

संप्रग में हो रहा बिखराव क्या चुनावी रणनीति का हिस्सा हैक् कांग्रेस व उसकी सहयोगी राकांपा के रूख से तो यही लग रहा है। कांग्रेस भी जहां बराबर दोहरा रही है कि गठबंधन नहीं टूटा है, वहीं राकांपा नेता शरद पंवार भी इसी तरह का बयान दे रहे हैं। जानकारों की मानें तो यह सब चुनावी रणनीति का ही हिस्सा लगता है। उत्तर प्रदेश और बिहार में जो कुछ हो रहा है उससे यही लगता है कि दोस्ताना मुकाबला कर विपक्ष के मतों को काटने के लिए चुनाव लडा जा रहा है। दरअसल बिहार में इस बार राजद नेता लालू यादव के फिर से 2004 वाले करिश्मा के दोहराने की उम्मीदें नहीं के बराबर थीं। इसके बाद ही राजद नेता लालू ने जहां पासवान की सभी शर्तें मानी, वहीं कांग्रेस को भी एक प्रकार से अकेले चुनाव लडने के लिए छोड दिया। इसके पीछे की रणनीति यही मानी जा रही है कि जहां पर लालू-पासवान का प्रत्याशी मजबूत होगा वहां पर कांग्रेस जातिगत आधार पर विपक्ष के मतों को काटने वाला प्रत्याशी खडा करेगी। इसी प्रकार कांग्रेस को दोनों नेता फायदा पहुंचाएं। उत्तर प्रदेश में तो सपा के साथ पहले ही दोस्ताना मुकाबला तय हो गया था। कांग्रेस व सपा की कोशिश इतनी भर है कि बसपा को अघिक सीटें न जीतने दी जाएं। यही वजह है कि दोनों तरफ से प्रत्याशी मैदान में उतारे जाने के बाद भी एक दूसरे के खिलाफ कोई बयानबाजी नहीं की जा रही है। सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी व राहुल गांधी भी उन्हीं सीटों पर प्रचार के लिए जाएंगे जहां पर कांग्रेस के मजबूत प्रत्याशी होंगे। प्रत्येक सीट पर दोनों नेता नहीं जाएंगे। इसी प्रकार मुलायम भी अपनी मजबूत सीटों तक ही प्रचार सीमिति रखेंगे। बिहार में भी कमोबेश प्रचार की यही रणनीति रहेगी।

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