Monday, March 16, 2009

जीविका के साधन बने क्षेत्रीय दल

भारतीय राजनीति में पिछले दो दशक से क्षेत्रीय दलों के बढते प्रभुत्व ने अनजाने में ही आर्थिक तंगी के शिकार कई परिवारों को रोजगार मुहैया कराने का काम किया है। वैश्विक मंदी के चलते देश के उद्योग- धंधें भले ही प्रभावित हुए हों, लेकिन इनके बीच राजनीतिक दलों के लिए पोस्टर, बैनर और कम्प्यूटर सीडी जैसे प्रचार माध्यमों का कारोबार जोर-शोर से फल-फूल रहा है। हालांकि चुनाव आचार संहिता के लागू होने के बाद चुनाव आयोग के कडे रूख के चलते सडकों और गलियों से बैनर- पोस्टर भले ही गायब हो गए हों, लेकिन किसी न किसी बहाने नेता इन्ही प्रचार माध्यमों के जरिए पिछले एक वर्ष से लोगों के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। झंडे, पोस्टर जैसे प्रचार का सामान बनाने के कारोबार से जुडे राजेश अग्रवाल ने बताया कि सत्तर के दशक में उनके पिता चुनाव के समय राजनीतिक दलों के झंडे और पोस्टर तैयार करते थे और इस काम में वह और उनके दो भाई मदद करते थे। उनके इस कारोबार में 300 से अधिक कारीगर प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से जुडे हैं। चुनाव प्रचार सामग्री के फुटकर व्यापारी नासिर का धंधा इन दिनों खूब फलफूल रहा है। नगर निगम से सेवानिवृत्त होने के बाद इस कारोबार से जुडे नासिर बताते हैं कि उनके पांच सदस्यों वाले परिवार का भरण पोषण इसी छोटी दुकान से होने वाली आमदनी से चलता है। वहीं, कटआउट तैयार करने के काम में माहिर अहसान का कहना है कि चुनाव के समय कटआउट बनाने के आर्डर इस कदर बढ जाते है कि मांग को पूरा करने के लिए उन्हें कारीगरों की दो शिफ्टें लगानी पडती हैं।

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