गर्मी की आहट के साथ ही जबरर्दस्त बिजली संकट से जूझ रहे उत्तर प्रदेश में बिजली लोकसभा चुनाव में एक बार फिर से चुनावी मुद्दा बनने को तैयार है।देश की सर्वाधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में बिजली दशकों से एक जटिल समस्या के रूप में जानी जाती है।राज्य की कमान संभालने वाले सभी दलों ने राज्य को बिजली संकट से निजात दिलाने का वादा किया, लेकिन हर दल की सरकार का कार्यकाल इस महत्वाकांक्षी परियोजना पर कोई खास असर नहीं छोड सका और बिजली को तरसता यह राज्य प्रत्येक चुनाव में अपनी तकदीर संवरने की बाट जोहता रहा। राजनीतिक दलों की कमजोर इच्छाशक्ति के कारण पिछले कई सालों से यहां कोई नया विद्युत संयंत्र स्थापित नहीं हुआ।हालांकि इस दौरान अनपरा और परीछा समेत कुछ विद्युत संयंत्रों का विस्तार अवश्य हुआ, लेकिन रखरखाव के अभाव में 1442 मेगावाट के ओबरा ताप विद्युत गृह समेत अनेक विद्युत संयंत्रों की उत्पादन क्षमता लगातार घटती रही। विद्युत विभाग से जुडे विषेषज्ञों की मानें तो वर्ष 1962 में अलीगढ के हरदुआगंज क्षेत्र में कोयले और तेल से बिजली बनाने का संयंत्र लगाया गया था। इस कवायद के तहत यहां 30 मेगावाट की दो इकाइयों की स्थापना की गईं थी। इसके बाद राज्य बिजली के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने के कदम बढाता चला गया। वर्ष 1994 में राज्य की कुल उत्पादन क्षमता 4634 मेगावाट थी। उसके बाद इस क्षेत्र में पतन का जो सिलसिला चला वह आज भी थमता नजर नहीं आ रहा है।
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