यूपी की हवा में लोकसभा चुनाव को लेकर परिवर्तन के मामले में गंध नहीं है, लेकिन अन्दर ही अन्दर सियासी समीकरण बदल रहे हैं। सपा और बसपा में मुस्लिम वोटों के लिए जबरदस्त जोर आजमाइश चल रही है। यूपी के पूर्वांचल, पश्चिम और रूहेलखण्ड में कई सीटों पर मुस्लिम असरकारी है। मुस्लिम और यादव गठजोड के बूते पर ही समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव सत्ता पर काबिज हुए थे। इसके बाद करीब डेढ दशक की लम्बी पारी पूरी कर अब मुलायम सिंह राजनीति में नए प्रयोग कर रहे है। उन्होंने मुस्लिम वोट बैंक की परवाह न करते हुए पिछले वर्ष परमाणु करार के मुद्दे पर कांग्रेस के नेतृत्व में वाली केन्द्र की यूपीए सरकार को समर्थन दिया था। इसी मुद्दे पर बसपा नेता मायावती ने करार का पुरजोर विरोध करते हुए मुस्लिम वोट बैंक को अपने पक्ष में मोडने का प्रयास शुरू कर दिया था। मुलायम ने मायावती के इस रूख की कोई परवाह नहीं की और इसके बाद फिर एक नया प्रयोग करते हुए भारतीय जनता पार्टी छोडने वाले रामजन्मभूमि आन्दोलन के नायक और बाबरी मस्जिद विध्वंस के मामले में अभियुक्त कल्याण सिंह से दोस्ती की और उनके पुत्र राजवीर को पार्टी में राष्ट्रीय महासचिव बनाया। मुलायम ने प्रदेश के तीन से चार फीसदी लोध वोट अपने पक्ष में करने के लिए यह प्रयोग किया। कल्याण सिंह चूंकि स्वयं लोध है इसलिए मुलायम को उम्मीद है कि प्रदेश का लोध मतदाता उनके पक्ष में मुडेगा। कल्याण सिंह से दोस्ती के कारण कई मुस्लिम नेता मुलायम की पार्टी छोडकर बहुजन समाज पार्टी में चले गए। उधर, मायावती मुस्लिम वोट बैंक को अपने पक्ष में करने के लिए कभी राष्ट्रीय मुस्लिम सम्मेलन आयोजित करती हैं और कभी दलित, मुस्लिम और ईसाई को आरक्षण दिलाने का वायदा करती है। हालत यह है कि सपा और बसपा के बीच मुस्लिम वोट बैंक का बंटवारा कितना-कितना होगा निश्चित तौर पर कोई नहीं बता सकता। बहरहाल कांग्रेस ने भी अपने से नाराज मुस्लिम मतदाता को मनाने के प्रयास जारी रखते हुए बार-बार दोहराया है कि बाबरी मस्जिद विध्वंस के मामले में अपनी जिम्मेदारी को लेकर कांग्रेस माफी मांग चुकी है, लेकिन मुस्लिम नेतृत्व इस बात पर मौन ही है कि उसने कांग्रेस को माफी दी है या नहीं। अब चुनाव ही बता सकता है कि कितना मुस्लिम कांग्रेस के पक्ष में गया है। समाजवादी पार्टी की तरह ही इस बार राष्ट्रीय लोकदल ने भी मुस्लिम वोट बैंक की परवाह नहीं की है और भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबन्धन कर लिया है। रालोद के भाजपा के इस गठबन्धन के विरोध में रालोद के मुस्लिम नेता पलायन कर गए। रालोद का प्रभाव क्षेत्र पश्चिमी यूपी है और वहां भी मुस्लिम मतदाता असरकारक होने के कारण उसे मुस्लिम भावनाओं का ध्यान रखना होता था। लेकिन इस बार लोकदल ने इस बात की परवाह नहीं की और भाजपा के साथ गठजोड कर लिया।
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