भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी जहां देश भर में घूम-घूम कर अपने और अपनी पार्टी के लिए समर्थन मांग रहे हैं, वहीं आडवाणी को उनके संसदीय क्षेत्र की जड ही पिछले दस वर्षो से समर्थन नहीं दे रही है। आडवाणी गांधीनगर संसदीय क्षेत्र से भले ही लगातार तीन चुनाव जीत चुके हों, लेकिन पिछले दस वर्षो से "असली गांधीनगर" उन्हें नकार रहा है। आडवाणी की जीत तय करता है अहमदाबाद शहर।आडवाणी गांधीनगर संसदीय क्षेत्र से अब तक चार बार चुनाव लड चुके हैं और हर बार उन्हें जीत हासिल हुई है। पहली बार आडवाणी ने 1991 में गांधीनगर का रूख किया, जब दिल्ली में राजेश खन्ना से चुनौती मिली थी। गांधीनगर संसदीय क्षेत्र में 1977 से 2004 तक गांधीनगर जिले की एकमात्र गांधीनगर विधानसभा सीट थी। शेष छह सीटें अहमदाबाद शहर के सरखेज, साबरमती, एलिसब्रिज, दरियापुर, शाहपुर और असारवा थीं।भाजपा का वैसे गांधीनगर में 1989 से लगातार दबदबा रहा है। यहां तक कि 1998 तक गांधीनगर विधानसभा क्षेत्र के लोग भी भाजपा के शंकरसिंह वाघेला, आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी और फिर आडवाणी का समर्थन करते रहे, लेकिन फिर स्थितियां बदलीं। 1999 और 2004 दोनों ही चुनावों में भाजपा और आडवाणी को जीत तो मिली, लेकिन "मूल गांधीनगर" ने आडवाणी को नकार दिया। आंकडे बताते हैं कि 1999 के लोकसभा चुनाव में आडवाणी को गांधीनगर विधानसभा क्षेत्र में 48 हजार 228 मत हासिल हुए, जबकि कांग्रेस के टी.एन. शेषन ने 51 हजार 312 मत पाकर बढत बनाई।इसी प्रकार 2004 के चुनाव में भी आडवाणी को यहां 54 हजार 97 मत ही मिले, तो दूसरी तरफ कांग्रेस के गाभाजी ठाकोर 63 हजार 54 मत हासिल करके आगे रहे। यह तो अच्छा है कि गांधीनगर संसदीय क्षेत्र में भाजपा के गढ अहमदाबाद शहर की छह विधानसभा सीटें थीं। आम तौर पर शहरी जनाधार भाजपा का हमेशा मजबूत रहा है। खासकर अहमदाबाद शहर तो भाजपा का मजबूत गढ रहा है। यही कारण है कि आडवाणी पिछले दो चुनावों में तो कम से कम अहमदाबाद की वजह से जीते। हालांकि गत विधानसभा चुनाव-2007 में गांधीनगर सीट से भाजपा को जीत मिली थी।
No comments:
Post a Comment