कांग्रेस की "टिकट पाओ" राजनीति पर कोई डेढ दशक से पकड रखने वाले राजकुमार पटेल की मुश्किलें बढती जा रही हैं। उनका नामंाकन फॉर्म जिस सूरत में निरस्त हुआ, उससे संदेह उठने के कई कारण हैं। संयोग से उनके भाई एवं पूर्व विधायक देवकुमार पटेल की ओर से डमी के तौर पर भरे गए नामांकन पत्र के खारिज होने के भी ऎसे तकनीकी कारण रहे कि जिससे संदेह और गहरा हो गया। शुक्रवार को भोपाल आए पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव एवं प्रदेश प्रभारी बीके हरिप्रसाद के सामने विदिशा और रायसेन के सैकडों कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने जिस तरह अपना गुबार निकाला, वह इसी संदेह का परिणाम है। राजकुमार पटेल पर कार्रवाई होना तय है, लेकिन भाई देवकुमार पटेल की फाइल भी अब खुल गई है। राजकुमार पटेल के नामंाकन में "ए" फॉर्म नहीं होने की स्थिति में देवकुमार ने भी निर्दलीय के तौर पर फॉर्म भर दिया था। देवकुमार भी ऎसी गलती कर गए, जिसकी उम्मीद ऎसे नेता से नहीं की जा सकती, जो विधायक रह चुका हो। देवकुमार ने अपने नामांकन के साथ शपथपत्र नहीं लगाया। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि राजकुमार पटेल के पास लगभग 45 मिनट का समय था, ऎसे में किसी और को नामंाकन फॉर्म भरने का मौका दिया जाता तो आज भाजपा की सुषमा स्वराज को वॉकओवर नहीं मिलता और कांग्रेस की फजीहत भी नहीं हो रही होती। पार्टी विधानसभा चुनाव के समय ये प्रयोग भोपाल की हुजूर विस सीट पर कर चुकी है। उस समय कांग्रेस के उम्मीदवार मखमल सिंह मीणा के गलत फॉर्म भरे जाने की जानकारी सामने आने के बाद उसी वक्त राजेन्द्र सिंह मीणा से नामंाकन फॉर्म भरवा दिया गया और कांग्रेस मैदान से बाहर होने से बच गई थी।
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